حضرت فاطمه زهرا ( س )

फ़ातेमा ज़हरा
फ़ातेमा एक बेटी थीं, एक ऐसी बेटी जिनकी कोई मिसाल नहीं है। शिष्टाचार के शिखर पर विराजमान, पवित्रता और गुणों से सुसज्जित। वे रचना और इंसानियत की पहेली का रहस्य थीं। उनकी उपाधी उम्मे अबीहा अपने बाप की मॉ की, यह उपाधी पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें प्रदान किया था
शहादते हज़रत ज़हरा
आज पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की तिथि है। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा वह हस्ती हैं जिन्होंने महानता व परिपूर्णता का मार्ग अत्यधिक उचित ढंग से तय किया और संसार वासियों के लिए मूल
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा आदर्श बेटी, माँ और पत्नी
नौ वर्ष की आयु तक हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा अपने पिता के घर पर रहीं।जब तक उनकी माता हज़रत ख़दीजा जीवित रहीं वह गृह कार्यों मे पूर्ण रूप से उनकी साहयता करती थीं। तथा अपने माता पिता की अज्ञा का पूर्ण रूप से पालन करती थीं
फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा का जीवन परिचय
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा के पिता पैगम्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा व आपकी माता हज़रत ख़दीजातुल कुबरा पुत्री श्री ख़ोलद हैं। हज़रत ख़दीजा वह स्त्री हैं,जिन्होने सर्व- प्रथम इस्लाम को स्वीकार किया। आप अरब की एक धनी महिला थीं तथा आप का व्यापार पूरे अरब मे
 हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की फ़ज़ीलतें अहले सुन्नत की किताबों से
रसूले की इकलौती बेटी और इमामत एवं रिसालत को मिलाने वाली कड़ी, वह महान महिला जिसकों सारी दुनियां की औरतों का सरदार कहा गया, रसूल जिसका इतना सम्मान करते थे कि आपने म्मेअबीहा यानी अपने बाप की मां कहा, इमामत की सुरक्षा में शहीद होने वाली पहली महिला, वह महिला
सही बुख़ारी
अगर मान भी लिया जाए कि बीबी ज़हरा कुछ समय के लिए शेख़ैन नाराज भी हुईं थीं, लेकिन यह भी अपने स्थान पर साबित है कि बीबी ज़हरा के जीवन के अंतिम दिनों में शेख़ैन बीबी के पास आए और उनसे क्षमा मांग कर उन्हें प्रसन्न कर लिया था, जैसा कि बयाकी और दूसरों ने नकल कि
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की शहादत
पैग़म्बरे इस्लाम सललल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों में सबसे कम आयु हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को मिली। वे एक कथन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के नब्बे दिन के बाद शहीद हो गयीं। आज भी मदीन की गलियों में उनके अस्तित्व की सुगंध का आभास होता
आयते मुबाहेला और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स)
अहमद बिन हंमबल अल मुसनद में रिवायत करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह पवित्र आयत उतरी तो आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ), जनाबे फ़ातेमा और हसन व हुसैन (अ) को बुलाया और फ़रमाया: ख़ुदावंदा यह मेरे अहले बैत हैं।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) पैग़म्बर की पत्नियों की नज़र में
ऐ हुमैराः (ये हज़रत आयशा का लक्ब था) जिस रात मुझे पर मेराज ले जाया गया जिब्रईल ने मुझे जन्नत के दरख्तों में से एक दरख्त की तरफ रहनुमाई की ... पस मैंने उस दरख्त का फल खाया, जो मेरी सुल्ब में क़रार पा गया और जब मैं वापस हुआ और ख़दीजा के पास गया तो उससे...
फ़िदक छीनने पर हज़रत फ़ातेमा (स) का अबूबक्र पर क्रोधित होना
जब पहले ख़लीफ़ा ने उनको फ़िदक वापस नहीं दिया और यह हदीस पढ़ी कि पैग़म्बर ने फ़रमाया है कि हम अंबिया मीरास नहीं छोड़ते हैं और जो कुछ छोड़ते हैं वह सदक़ा है तो आप बहुत क्रोधित होती हैं और आपका क्रोध इन लोगों से इतना अधिक होता है कि आप वसीयत करती है कि...
फ़िदक क्या है और पैग़म्बर को कैसे मिला?
हमको यह जान लेना चाहिए कि फ़िदक एक बहुत ही आबाद और उपजाऊ धरती थी जो यहूदियों की सम्पत्ती थी, हिजाज़ में कुछ यहूदी रहते थे और वह पैग़म्बर के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे जैसा कि स्वंय क़ुरआन ने इस बात को बयान किया है, इन यहूदियों के पास बहुत सी ज़मीनें थीं..
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की श्रेष्ठता सिद्ध करती हदीसें
रसूले ख़ुदा (स.) ने फ़रमायाः ख़ुदा वन्दे आलम ने मेरी बेटी फ़ातेमा, उन के बच्चों और उन के चाहने वालों को आग से दूर और उसके तकलीफ़ पोहचाने से रोका है, इसी लिये उन का नाम फ़ातेमा है। (कनज़ुल उम्माल जिल्द 6 सफ़्हा 219)
फ़ातेमा ज़हरा (स) की आख़िरी ख़्वाहिश
बिलाल ने दूर से बड़े ध्यान से दृष्टि डाली। मदीना नगर के हरे- भरे और ऊंचे-२ खजूरों के पेड़ दिखाई दे रहे थे और उनके पीछे मदीना नगर के छोटे- छोटे कच्चे घर दिखाई दे रहे थे। बिलाल ने एक गहरी सांस ली ताकि वह मदीने से आने वाली ठंडी मधुर समीर का आभास कर सकें
फ़ातेमा ज़हरा (स.) आयते "सिराते मुस्तक़ीम" में
ईश्वर ने इस आयत में सीधे रास्ते को बताया है और कहा है कि सीधा रास्ता वह रास्ता है कि जिस पर चलने वालों पर नेमतें नाज़िल की गई हैं और ख़ुदा ने लोगों के चाहा है कि उससे प्रार्थना करें कि वह भी सीधे रास्तें पर रहें ताकि उन पर भी उसकी नेमतें नाज़िल हों।
फ़ातेमा ज़हरा की शख़्सियत इमाम अली की नज़र में
अमीरुल-मोमनीन (अ) फ़रमाते हैं: फातिमा (स) कभी भी मुझसे नाराज़ नहीं हुईं, और न मुझको नाराज़ किया.जब भी मैं उनके चेहरे पर नज़र करता हूं, मेरे सभी दुख दूर हो जाते हैं और सारी तकलीफ़ें समाप्त हो जाती हैं। न उन्हों ने कभी मुझे क्रोधित किया और न कभी मै ने उनको,
फ़ज़ाएले हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा
ऐ पैग़म्बर, इल्म के आ जाने के बाद जो लोग तुम से कट हुज्जती करें उनसे कह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ, हम अपने बेटे को बुलायें तुम अपने बेटे को और हम अपनी औरतों को बुलायें और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलाये और तुम अपने जानों को, उसके बाद हम स
जो लोग तुमसे हुज्जत करें उनसे कह दीजिएः आओं हम अपने बेटों को बुलाएं, तुम अपने बेटों को, हम अपनी औरतों को लाएं और तुम अपनी औरतों को, हम अपने नफ़्सों को लाएं तुम अपने नफ़्सों को फिर हम मुबाहेला करें और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें
मुसहफ़े फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की तारीख़
अहलेबैत (अ) से नक़्ल होने वाली रिवायतों में से कुछ रिवायतों में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा के मुसहफ़ की बात कही गई है, और एक किताब की आपकी तरफ़ निस्बत दी गई है जैसा कि मोहम्मद बिन मुस्लिम इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत करते हैं
फ़ातेमा ज़हरा, आयतुल्लाह ख़ामेनेई के बयानों में
आप ऐसी महिला हैं जो ख़ानदाने वही के लिऐ गर्व और सम्मान का कारण हैं सूरज की तरह इस्लामी आकाश पर चमकती रहेंगी। इस्लामी इतिहास गवाह है कि आप के सम्मान में ख़ुद पैगंबरे इस्लाम (स) खड़े हो जाते थे और आपका अत्याधिक सम्मान करते थे।
 फ़ातेमा ज़हरा (स) पर ईश्वर की अनुकंपाएं अहले सुन्नत की किताबों से
अल्लामा अब्दुर्रऊफ़ मनावी लिख़ते हैं फ़ातेमा का अली के साथ विवाह ईश्वर के आदेश से था। इस बारे में इब्ने मसऊद से रिवायत है कि पैग़म्बर (स) ने फ़रमायाः जान लो कि ईश्वर ने मुझे आदेश दिया है कि फ़ातेमा की शादी अली से कर दूं इस चीज़ की तबरानी ने रिवायत की है

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