हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) पैग़म्बर की पत्नियों की नज़र में

ऐ हुमैराः (ये हज़रत आयशा का लक्ब था) जिस रात मुझे पर मेराज ले जाया गया जिब्रईल ने मुझे जन्नत के दरख्तों में से एक दरख्त की तरफ रहनुमाई की ... पस मैंने उस दरख्त का फल खाया, जो मेरी सुल्ब में क़रार पा गया और जब मैं वापस हुआ और ख़दीजा के पास गया तो उससे...

ख़ुदावन्दे आलम ने बज़्मे इंसानी के अंदर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से बेहतर किसी को ख़ल्क नहीं फरमाया।

आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़ात क़ुरआन के आईने में अख़्लाक़े करीमा का मुजस्समा है। जिसकी गवाही क़ुरआने मजीद ने यह कह कर दी है (इन्नका लअला खुलुक़िन अज़ीम) परवरदिगारे आलम ने आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ख़िलक़त को कायनात की ख़िलक़त का सबब क़रार दिया है। चुनाँचे एक मशहूर हदीस क़ुद्सी में आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की क़द्रो मंज़ेलत यूं बयान की गई है। (लौ लाक लमा ख़लक्तुल अफलाक) ऐ मेरे हबीब अगर आप न होते तो मैं कायनात को ख़ल्क़ न करता।

इंसान अल्लाह की बेहतरीन मख़लूक है और अल्लाह ने उसे मर्दो ज़न के क़ालिब में ख़ल्क़ करने के बाद मुख्तलिफ़ ख़ानदान और क़बीले और रँगो नस्ल में ढाला है। साथ ही उसकी हिदायत के लिए नबीयों और रसूलों का एक तूलानी सिलसिला क़ायम किया।

राहे नूर की तरफ़ हिदायत करने वाले ये अम्बिया व मुरसलीन इन्सानों को जेहालत की तारीकियों से निकाल कर इल्म और नूर की फिज़ा में लाते रहे और उन्हें खुदा से करीब करते रहे। लेकिन उन्हीं के साथ साथ कुछ ऐसे अनासिर भी थे जो शैतान के फ़रेब में मुब्तला होकर गुमराह होते रहे या खुद शैतान बन कर दूसरे इन्सानों को गुमराहियों और तरीकियों में ढ़केलते रहे। खुदावन्दे आलम ने मर्दो ज़न को अपनी इलाही फित्रत पर पैदा किया है और उनमें से हर एक के फरायज़ व वज़ायफ़ मुअय्यन किऐ हैं जो उनकी तबीयत, मेज़ाज और जिस्मानी साख़्त से हम आहँगी रखते हैं। घर की साख़्त और पुर अम्न ख़ान्वादे की तश्कील के लिए बाज़ जेहतों से मर्द को फ़ौक़ीयत देकर फरमाया कीः (अर रेजालो क़व्वामूना अलन निसा) और बाज़ जेहतों से दोनों की एक दूसरे पर सरपरस्ती को बयान किया। (अल मोमेनूना वल मोमेनाते बाज़ो हुम अवलियाओ बाज़) इस तरह से ज़ेहन से ये बात दूर कर दी कि औरत मर्द से पस्त और हक़ीर कोई मख्लूक़ है।

जब आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की रेसालत का ज़हूर होने वाला था उस दौरान जाहिल अरबों के दरमियान औरत इन्तेहाई पस्त और हक़ीर वुजुद थी। लूट मार और क़त्लो ग़ारत की ज़िन्दगी बसर करने वाले अरब अपनी शिकस्त के बाद झूठी बे इज़्ज़ती और बे आबरुई से बचने के लिए घरों में पैदा होने वाली लड़कियों को ज़िन्दा दफ्न कर देते थे।

परवरदिगारे आलम ने ऐसे माहौल में अपने हबीब रहमतुल लिल आलमीन और खुल्क़े अज़ीम पर फायज़ पैग़म्बर को मुरसले आज़म बना कर भेजा और अपनी ख़ास हिक्मत के तहत आप सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को बेटी अता फ़रमाई और उसके लिए आला हस्बो नस्ब से आरास्ता मक्का की अज़ीम ख़ातून जनाबे ख़दीजा की आगोश का इन्तेख़ाब किया। आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की मशहूर व मारुफ़ हदीस जिसे तमाम उलमा ए इस्लाम ने अपनी किताबों में नक्ल किया है यानी (फ़ातेमतो बज़अतो मिन्नी) फ़ातेमा मेरा टुकड़ा हैं। मुम्किन है इसी हकीक़त के तहत हो की एक तरफ़ तो बेटी बाप के वुजुद का हिस्सा होती है उस ऐतेबार से भी क़ाबिले ऐहतेराम है और दूसरी तरफ़ हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा, आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के वुजुद का हिस्सा होने के सबब पूरी उम्मत के लिए मोहतरत हैं। इसलिए की क़ुरआने करीम पूरी वज़ाहत के साथ आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को आम इन्सान के बजाय सिर्फ़ रसूल जानता है। (वमा मुहम्मद इल्ला रसूल) ----- मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम रसूल के अलावा और कुछ नहीं हैं। लेहाज़ा इस आयत की रौशनी में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जुज़् ए रेसालत हैं।

बहरहाल बेटी की हैसियत से औरत के मरतबे और उसकी मन्ज़ेलत को बज़्मे इन्सानी और ख़ुसुसन दुनिया ए इस्लाम में नुमायाँ करने के लिए क़ुदरत ने आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की शक्ल में ये गौहरे आबदार अता फरमाया था। अब हम देखते हैं कि ये अज़ीम अतीया जो अल्लाह ने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को बख्शा कितना क़ीमती था। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा कितने सेफ़ात व कमालात की हामिल थीं और खुद पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने इस्लामी और कुरआनी तालीम के गहवारे में अपनी बेटी की कैसी तरबीयत फरमाई थी।

सरेदस्त इस मक़ाले में उस ग्रान क़द्र शख्सीयत की अज़मत का जाएज़ा उम्महातुल मोमिनीन के अक़वाल में लेते हैं और ये देखते हैं कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा अज़्वाजे पैग़म्बर की निगाह में किस फज़्लो शरफ़ की हामिल थीं।

जन्नत का मेवा

दामने इस्लाम में परवान चढ़ने वाली इस नौ मौलूद दुख्तर की अज़्मत और करामत के लिए हम यहाँ सबसे पहले उम्मुल मोमेनीन आयशा से हस्बे ज़ैल रिवायत नक्ल करते हैं जिसे शिया और अहले सुन्नत दोनों उलमा ने नक्ल किया है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम शफ़क़त और मुहब्बत से अपनी बेटी फ़ातेमा का बोसा लिया करते थे। आयशा इस हालत को देख कर तअज्जुब किया करती थीं आख़िर उन्होंने आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से सवाल कर लिया कि आप अपनी बेटी फ़ातेमा से इस तरह मुहब्बत का बर्ताव करते हैं जैसे किसी से नहीं करते। मैंने नहीं देखा की कोई इस तरह अपनी बेटी से शफ़क़त व मुहब्बत का बर्ताव करता हो। आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने फरमायाः

ऐ हुमैराः (ये हज़रत आयशा का लक्ब था) जिस रात मुझे पर मेराज ले जाया गया जिब्रईल ने मुझे जन्नत के दरख्तों में से एक दरख्त की तरफ रहनुमाई की ... पस मैंने उस दरख्त का फल खाया, जो मेरी सुल्ब में क़रार पा गया और जब मैं वापस हुआ और ख़दीजा के पास गया तो उससे फ़ातेमा वुजुद में आईं। लिहाज़ा जब भी मैं जन्नत और उसकी खुशबू का मुश्ताक होता हूँ तो फ़ातेमा को सूँघता हुँ और उसे बोसा देता हुँ। ऐ हुमैराः फातेमा दुनिया की दूसरी औरतों के मानिन्द नहीं हैं और न वह माहाना नेजासत में मुब्तेला होती हैं।

मज़कूरा बाला रिवायत से ये बात ज़ाहिर होती है कि हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा आम और मामुली ख़्वातीन की तरह नहीं थीं बल्की दुख़्तरे रेसालते मऑब और रहमतुल लिल आलमीन की लख़्ते जिगर होने के सबब आम औरतों से जुदा अज़ीम खुसुसियात की हामिल थीं जिन्हें इस्लामी मॉ अखज़ में हज़रत के फज़ाऐल व कमालात की फेहरिस्त में देखा जा सकता है।

फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा अपनी मां के गर्भ में

इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम ने मुफज़्ज़ल बिन उमर से एक हदीस ब्यान करते हुऐ फरमाया कि जब पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने जनाबे खदीजा से शादी की तो मक्का की औरतों ने जनाबे ख़दीजा से राब्ता तोड़ लिया। न उनके घर जाती थीं और न उनको सलाम करती थी।

जब जनाबे ख़दीजा के बत्न में जनाबे फ़ातेमा आईं तो आप अपनी माँ से बातें करती थीं और उन्हें सब्र दिलाती थीं, जनाबे ख़दीजा इस बात को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से छुपाती थीं। एक रोज़ पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम घर में दाख़िल हुए तो आपने ख़दीजा को किसी से बात करते हुए सुना। हज़रत ने दरयाफ्त फ़रमाया कि ऐ खदीजा आप किस से बातें कर रही थीं तो उन्होंने कहाः या रसूलल्लाह मेरे शिक्म में जो बच्चा है वह मेरी तन्हाई का मुनीस है और मुझसे बातें करता है। पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने फरमायाः ऐ खदीजा ये जिब्रईल हैं और मुझे ख़बर दे रहे हैं कि ये बच्चा दुख्तर है। उससे पाकीज़ा नस्ल वुजुद में आयेगी और मेरी नस्ल भी उसी बेटी से होगी और उसकी नस्ल से अईम्मा पैदा होंगे।

मज़कूरा रिवायत से कई बातें मालूम होती हैं

एक यह की जनाबे ख़दीजा जैसी मक्का की बा अज़मत ख़ातून ने जब अख़लाक़ व किरदार के अज़ीम पैकर और बज़ाहीर माद्दी ऐतेबार से कमदर्जे के इंसान हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से शादी की तो दुनिया के ज़ाहरी शॉनो शौकत पर मरने वाली ख़्वातीन ने जनाबे ख़दीजा से रॉब्ता तोड़ लिया, लेकिन जनाबे ख़दीजा ने इसका कोई मलाल न किया और अपने अज़ीम अख्लाक़ व किरदार के हामिल शौहर की वफादार रहीं। ये बात जनाबे ख़दीजा के आला किरदार की अक्कासी करती है।

दूसरे यह की ख़ुदा वन्दे आलम ने ऐसी पाकीज़ा ख़ातून की तन्हाई और अफ्सुर्दगी को दूर करने के लिए जनाबे फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा को उस वक्त उनका मूनिस बना दिया जब आप माँ के शिक्म में थीं।

तीसरी बात यह की जिब्रईल ने पैग़म्बर सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को बेटी की बशारत दी जो खुदा की नज़र में औरत के मरतबे को ज़ाहिर करती है। उसका ऐहसास बेटी या औरत के सिलसिले में आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के हर उम्मती को होना चाहिए।

चौथी बात यह की अगरचे आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को ख़ुदा ने एक बेटी दी लेकिन उससे आपकी पाकीज़ा नस्ल का सिल्सिला जारी है और इस सिलसिले में उलमा ए इस्लाम ने बेशुमार रिवायतें नक्ल की हैं कि पैग़म्बर सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की नस्ल हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाहे अलैहा के ज़रीऐ सुल्बे हज़रते अली अलैहिस्सलाम से चली।

और आख़िरी बात यह है की आप ही नस्ल से रूए ज़मीन पर अइम्मा और ख़ुलफ़ा ए इलाही वुजुद में आये।

विलादते हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा

जब हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की वेलादत के ऑसार ज़ाहिर हुए तो हज़रत ख़दीजा ने मक्के की औरतों को मदद के लिए बुलाया लेकिन उन्होंने आने से इन्कार कर दिया, जिस पर जनाबे ख़दीजा बहुत ग़मज़दा हुईं। उस वक्त परवरदिगारे आलम ने चार जन्नती औरतें ग़ैबी इम्दाद की शक्ल में जनाबे ख़दीजा के पास भेजीं, उन ख़्वातीन ने आकर अपना तआरुफ़ कराया कि ऐ ख़दीजा आप परेशान न हों हम खुदावन्दे आलम की तरफ़ से आपकी मदद को आये हैं। मैं सारा ज़ौजए हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हूँ, ये आसीया बिन्ते मुज़ाहीम हैं जो जन्नत में आपकी हम नशीन हैं, वह मरियम बिन्ते इमरान हैं और वह कुलसूम ख़्वाहरे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हैं। इस तरह उन ख़्वातीन की मदद से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की वेलादत के मराहिल तय हुए। आपको आबे कौसर से ग़ुस्ल दिया गया और जन्नत का लिबास पहनाया गया, फिर वह ख़्वातीन आपसे हम कलाम हुईं। उस वक्त हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने फरमायाः

(मैं गवाही देती हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई और माबूद नहीं है और मेरे पेदरे बुज़ुर्गवार अल्लाह के रसूल और तमाम अम्बिया के सय्यदो सरदार हैं मेरे शौहर सय्यदुल औसिया हैं और मेरे बेटे अम्बिया के बेहतरीन नवासे हैं। फिर आपने उन तमाम ख़्वातीन को सलाम किया और एक एक करके सब का नाम लिया...) जारी है।

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