हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की शहादत

पैग़म्बरे इस्लाम सललल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों में सबसे कम आयु हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को मिली। वे एक कथन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के नब्बे दिन के बाद शहीद हो गयीं। आज भी मदीन की गलियों में उनके अस्तित्व की सुगंध का आभास होता

पैग़म्बरे इस्लाम सललल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों में सबसे कम आयु हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को मिली। वे एक कथन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के नब्बे दिन के बाद शहीद हो गयीं। आज भी मदीन की गलियों में उनके अस्तित्व की सुगंध का आभास होता है और मस्जिदे नबी उनकी सुन्दर यादों की याद दिलाती है। मस्जिदे नबी के एक किनारे पर हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा का दुखों से भरा घर था। एक ओर पैग़म्बरे इस्लाम का बिछड़ना और दूसरी ओर उनकी सुपुत्री का घाव के कारण बीमार होना, हज़रत अली और उनकी संतानों के लिए दुखों का पहाड़ बन गया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने जीवन की अंतिम घड़ियां व्यतीत कर रही थीं। पिता से दूरी ने हज़रत फ़ातेमा के सुख चैन छीन लिए थे।

पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद घटने वाली घटनाओं का सहन करना उनके लिए इतना कठिन था जिसने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की पवित्र आत्मा को दुखी कर दिया किन्तु उनके पिता की बातें उन्हें एक प्रकार की शांति प्रदान करती थीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने स्वर्गवास के समय उनसे कहा था कि पुत्री, मेरे स्वर्गवास के बाद, मेरे परिजन में तुम पहली होगी तो मुझसे मिलोगी।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुलल्लाह अलैहा के स्वर्गवास के समय हज़रत अली और उनकी चार संतानें हज़रत फ़ातेमा के पास बैठी हुई थीं। हज़रत अली अपनी प्रिय पत्नी के चेहरे को निहार रहे थे और उनकी दुखों से भरी अल्पायु उनकी नज़रों से गुज़रने लगी। उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम का वह कथन याद आ गया जिसमें उन्होंने कहा था कि हे अली, फ़ातेमा मेरे दिल का टुकड़ा है, ईश्वर की सौगंध, फ़ातेमा ने कभी भी मुझे नाराज़ नहीं किया।

धैर्य व शांति के क्षण धीरे धीरे गुज़रते रहे, हज़रत अली ने हज़रत फ़ातेमा के हाथों को अपने हाथ में लिया और उस दिन को याद करने लगे जब हज़रत फ़ातेमा ने उनसे कहा था कि हे अली, हर हाल में, मैं आपके साथ जीना चाहती हूं चाहे ख़ुशी की घड़ियां हो या परेशानी या दुखों की।

हज़रत अली यह सोच रहे थे कि फ़ातेमा ने कितने अच्छे ढंग से अपनी बातों पर अमल किया। हज़रत फ़ातेमा के रोते बिलखते बच्चे भी अपनी मां को हसरत भरी निगाहों से देख रहे थे और अतीत की बातें याद कर रहे थे। हज़रत ज़ैनब ने बारम्बार देखा था कि उनकी मां ने कभी भी किसी को अपने घर से ख़ाली हाथ नहीं लौटाया और हज़रत इमाम हसन अपनी मां की दिनो रात की उपासनाओं और प्रार्थनाओं को याद कर रहे थे जो आधी रात को अपने बिस्तर से उपासना के लिए उठती थीं और मुसलमानों के लिए दुआएं करती थीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने देखा था कि मां ने किस प्रकार वाकपटुता से लोगों का मार्गदर्शन किया।

हज़रत अली झुके और उन्होंने धीरे से अपनी प्रिय पत्नी से कहा कि हे फ़ातेमा, तुम्हारा अस्तित्व मुझे शांति प्रदान करता है, तुमने कभी भी मुझे अप्रसन्न नहीं किया, मेरी नज़र जब भी तुम पर पड़ती थी, मैं अपने दुखों को भूल जाता था, तुम सबसे बेहतरीन महिला हो।

हज़रत फ़ातेमा ने आंखे खोली और अपने पत्नी व बच्चों पर मामता भरी नज़र डाली। मानो वह अपनी संतानों के बारे में अपनी अंतिम वसीयत करना चाहती हों कि बच्चों का ख़्याल रखना और रात के अंधेरे में मुझे दफ़्न करना।

हज़रत अली का दुख से बुरा हाल हो रहा था। हज़रत अली मस्जिद गये ताकि अपने दुख दर्द को ईश्वर से बयान करें। अभी कुछ समय ही बीता था कि हज़रत फ़ातेमा के स्वर्गवास का समय निकट हो गया। हज़रत फ़ातेमा ने आसमान की ओर देखा और कहा सलाम हो जिब्राइल पर, सलाम हो पैग़म्बरे इस्लाम पर। इस समय आसमान के फ़रिश्ते आ चुके हैं और मेरे पिता कह रहे हैं कि मेरी बेटी मेरी ओर जल्दी आओ। जो तुम्हारे पास है वह तुम्हारे लिए सबसे बेहतरीन चीज़ है। सलाम हो आप पर हे मेरे पिता, सलाम हो आपके सच्चे वचनों पर।

हज़रत फ़ातेमा का स्वर्गवास हो गया, जब हज़रत अली घर पहुंचे तो उनका साहस जवाब दे चुका था, उन्होंने हज़रत फ़ातेमा के पवित्र शव को देखने के बाद कहा कि तुम्हारे बाद जीवन का कोई लाभ नहीं है, मैं इस बात से भयभीत हूं कि तुम्हारे बाद मेरा जीवन लंबा हो जाए।

इस प्रकार से तीन जमादिउस्सानी सन ग्यारह हिजरी क़मरी को हज़रत फ़ातेमा ईश्वर से जा मिलीं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा महान महिला थीं जिनका आचरण सत्य प्रिय लोगों के लिए प्रकाशमयी हो गया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम 18 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहीं किन्तु समस्त मानवीय विशेषताओं की स्वामी थीं। उन्होंने ईश्वर को इस ढंग से पहचाना था कि जिन्होंने परिपूर्णता के मार्ग में कल्याणमयी जीवन का आदर्श पेश कर दिया। उन्होंने अपने पूरे अस्तित्व से ईश्वर की परिपूर्ण पहचान की कि जीवन में उसके और उसकी प्रसन्नता के अतिरिक्त किसी और चीज़ के बारे में नहीं सोचती थीं। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम हज़रत फ़ातेमा के इस सच्चे प्रेम की गवाही देते हुए अपने एक साथी से कहते हैः हे सलमान, ईश्वर ने हज़रत फ़ातेमा के हृदय, उनकी जान और उनके पूरे अस्तित्व को ईमान से इतना ओतप्रोत कर दिया है कि उन्होंने ईश्वर की उपासना और उसके अनुसरण के लिए, स्वयं को हर चीज़ से स्वतंत्र कर दिया है।

हज़रत फ़ातेमा की श्रेष्ठ आत्मा, सांसारिक श्रंगार से दूर थी। हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के घर में फ़ाल्तू के और मूल्यवान सामान नहीं थें और साथ ही यह ऐसा घर था जिसमें ईमान, प्रेम और पवित्रता का वातावरण था और उसमें दायित्वों के निर्वाह और न्याय प्रिय की भावना और लोगों को उसका अधिकार दिलाने का प्रयास रचा बसा था। हज़रत फ़ातेमा अपने समय की सबसे अधिक उपासना करने वाली महिला थीं किन्तु यह संसार से मुंह मोड़ने के अर्थ में नहीं है बल्कि इस अर्थ में है कि संसार उनकी आत्मा पर नियंत्रण स्थापित करने में विफल रहा। ईश्वरीय भय में भी हमें उन जैसी कोई महिला नहीं मिलती, उनके जो कुछ रहता वह ईश्वर के मार्ग में ख़र्च कर देतीं और स्वयं रूखा सूखा खाकर जीवन व्यतीत करती थीं।

एक दिन की बात है युद्ध में प्राप्त कुछ माल हज़रत अली को मिला और उन्होंने उसे पैग़म्बरे इस्लाम के पास भेज दिया। हज़रत अली यह सामान लेकर पैग़म्बरे इस्लाम के पास पहुंचे और पैग़म्बरे इस्लाम सल्ललाहो अलैह व आलेही को हज़रत फ़ातेमा का संदेश दिया कि हे ईश्वरीय दूत! आपकी सुपुत्री आपको सलाम कहती हैं और कहती हैं कि इस माल में हमारे भाग को ईश्वर के मार्ग में ख़र्च कर दें। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत फ़ातेमा के इस क़दम से इतना प्रसन्न हुए कि उन्होंने तीन बार कहा तुम्हारा पिता तुम पर क़ुर्बान।

हज़रत फ़ातेमा का व्यवहार और उनकी बातें शिष्टाचार व सम्मान से इतनी सुसज्जित होती थीं कि उनकी एक दासी असमा कहती हैं कि मैंने हज़रत फ़ातेमा से बढ़कर कोई शिष्ट महिला नहीं देखी, उन्होंने ईश्वर से शिष्टाचार सीखा है। जब ईश्वर ने यह आयत उतारी और लोगों से कहा कि पैग़म्बर को उनके नाम से न पुकारें तो हज़रत फ़ातेमा ने भी अपने पिता को पैग़म्बरे इस्लाम पुकारना आरंभ कर दिया, यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम ने स्वयं कहा कि यह आयत तुमसे संबंधित नहीं है।

पारिवारिक जीवन में भी हज़रत फ़ातेमा का शिष्टाचार और प्रेम ने उनके और पति के मध्य गहरे संबंध पैदा कर दिए गये हैं जो सदैव मज़बूत रहे।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने सलामुल्लाह अलैहा के साथ जब तक वे जीवित थे और हज़रत अली के साथ न्याय के विस्तार और सत्य की स्थापना के लिए भरपूर प्रयास किया ताकि इस्लाम का उज्जवल दीप सदा के लिए जलता रहे। वे दायित्वों की पहचान के उच्च मनोबल की स्वामी थीं। हज़रत फ़ातेमा जानती थीं कि जीवन समस्त उतार चढ़ाव के बावजूद, ईश्वरीय दायित्व अंजाम देने का एक अवसर है। कल्याणमयी वह है जो अपनी ज़िम्मेदारियों को जीवन में सही ढंग से पहचाने और उस पर अमल करे। महत्त्वपूर्ण यह है कि हमें जीवन के हर क्षण में यह देखना होगा कि ज़िम्मेदारी क्या है और क्या करना चाहिए?  दायित्वों पर अमल के लिए होशियारी, जागरूकता और दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने इस संबंध में अपनी ज़िम्मेदारियों को भलि भांति समझा और उसे अंजाम दिया। यही कारण है कि उन्होंने इस संबंध में भरसक प्रयास किये। अलबत्ता एक कोन में बैठकर ईश्वर की उपासनाओं में व्यस्त रह सकती थीं किन्तु वे भलिभांति जानती है कि एक ज़िम्मेदार व्यक्ति की शान इस सीमा से आगे है और प्रलय के दिन हर एक को अपने दायित्वों के बारे में उत्तरदायी होना होगा।

उन्होंने अपनी दूरदर्शिता और गहन दृष्टि से पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद अज्ञानता के काल में प्रचलित बातों की वापसी के ख़तरनाक परिणाम को भांप लिया और इस संबंध में मुसलमानों को सचेत किया। हज़रत फ़ातेमा बहुत ही दूरदर्शिता और होशियारी से घटनाओं और तूफ़ानों के समक्ष डट गयीं और सत्य के मोर्चे को एक क्षण के लिए भी ख़ाली नहीं छोड़ा। वे पैग़म्बरे इस्लाम की उपलब्धियों की रक्षा की मार्ग में नतमस्तक नहीं हुई और बहुत बेबाकी से इस्लाम धर्म की रक्षा करती रहीं।

हज़रत फ़ातेमा की मूल्यवान यादों में उनका वह प्रसिद्ध भाषण है जो उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद इस्लामी समुदाय में पड़ने वाली फूट के खतरे को भांपते हुए दिया था। उन्होंने इस भाषण में इस्लाम की सही छवि पेश की। यह भाषण, उन लोगों के लिए बेहतरी मार्गदर्शन है जो सत्य के मार्ग पर क़दम बढ़ाना चाहते हैं। हज़रत फ़ातेमा ने इस भाषण में बयान किया कि मनुष्य की मुक्ति का मार्ग, ईश्वरीय नियमों का अनुसरण और सत्य धर्म का पालन बताया है। इस भाषण में हम पढ़ते हैं कि हे लोगो, आप आग की कगार पर खड़े थे, अपमानित जीवन व्यतीत कर रहे थे, हर समय तुम्हें शत्रुओं के आक्रमण और उनके द्वारा बंदी बनाए जाने ख़तरा सताए हुए था, यहां तक कि ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम के हाथों तुम्हें मुक्ति दिलाई, उन्होंने अनकेश्वर के अंधेरों को छाट दिया,  अंधेरों के बादल छाट दिए और आंखों को अंधेरों की धूल से प्रकाशमयी किया।

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