फ़ातेमा ज़हरा की शख़्सियत इमाम अली की नज़र में

अमीरुल-मोमनीन (अ) फ़रमाते हैं: फातिमा (स) कभी भी मुझसे नाराज़ नहीं हुईं, और न मुझको नाराज़ किया.जब भी मैं उनके चेहरे पर नज़र करता हूं, मेरे सभी दुख दूर हो जाते हैं और सारी तकलीफ़ें समाप्त हो जाती हैं। न उन्हों ने कभी मुझे क्रोधित किया और न कभी मै ने उनको,

जब इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की ईश्वर के आदेश से शादी हो गई तो

शादी के दूसरे दिन जब पैग़म्बर (स) ने अली (अ) से पूछा: हे अली तुमने मेरी बेटी फ़ातेमा (स) को कैसा पाया?

इमाम ने जवाब दिया, फातिमा (स) अल्लाह की इताअत में सबसे अच्छी मददगार हैं।

अमीरुल-मोमनीन (अ) फ़रमाते हैं: फातिमा (स) कभी भी मुझसे नाराज़ नहीं हुईं, और न मुझको नाराज़ किया.जब भी मैं उनके चेहरे पर नज़र करता हूं, मेरे सभी दुख दूर हो जाते हैं और सारी तकलीफ़ें समाप्त हो जाती हैं। न उन्हों ने कभी मुझे क्रोधित किया और न कभी मै ने उनको,.

रसूल्लाह (स) फ़रमाते हैं अगर अली (अ) न होते तो फ़ातिमा (स) के कोई बराबर न होता।

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