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रफसंजानी
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हाशमी रफसंजानी ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद ईरानी राजनीतिक के बहुत बड़े खिलाड़ी रहे हैं जिनकी सियासत इस प्रकार की रही है कि हमेशा लोग उनके समर्थन या फिर विरोध में खड़े दिखाई देते है, क्योंकि उनकी सिसायत का सबसे बड़ा पहलू यह है
ग़दीर का संदेश
१८ ज़िलहिज्जा सन दस हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने ईश्वर के आदेश पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। आज ही के दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने
ग़दीर क्या है
ग़दीर का मतलब है इल्म, सदाचार, परहेज़गारी और अल्लाह के रास्ते में क़ुर्बानी और बलिदान और इस्लाम के मामले में दूसरों से आगे बढ़ना और उन्हीं चीज़ों के आधार पर समाज की सत्ता का निर्माण करना, यह एक मूल्य सम्बंधी मुद्दा है। इन मानों में गदीर केवल शियों के लिए
आयतुल्लाह ख़ामेनेई
एक हदीस है जिसे हम (हदीसे उख़ूवत) के नाम से पहचानते हैं वह हज़रत अली (अ) के बुलंद मक़ाम की गवाही देती है। इस हदीस का माजरा कुछ इस तरह है कि जब रसूले ख़ुदा तमाम मुहाजिर व अंसार को एक दूसरे का भाई बना रहे थे तब आपने हज़रत अली (अ) को अपना भाई बनाया
ग़दीर का महत्व
सूले इस्लाम को मालूम था कि इस सफ़र के अंत में उन्हें एक महान काम को अंजाम देना है जिस पर दीन की इमारत तय्यार होगी और उस इमारत के ख़म्भे उँचे होंगे कि जिससे आपकी उम्मत सारी उम्मतों की सरदार बनेगी, पूरब और पश्चिम में उसकी हुकूमत होगी मगर इसकी शर्त यह है कि
विलायत
इस्लाम में विलायत अर्थात संरक्षण एवं सरपरस्ती पैग़म्बरी की निरंतरता एवं ऐसे दीप की भांति है कि जो अंधेरों को छांट देता है और सच्चाई एवं वास्तविकता के प्रतीक के रूप में मनुष्यों का मार्गदर्शन करता है। जिस किसी पर भी विलायत का प्रकाश पड़ जाता है तो मानो वह
ग़दीर के आमाल
ग़दीर का दिन वह महान दिन है जिसमें सभी शिया बल्कि सच्चाई को चाहने वाला हर व्यक्ति प्रसन्न होता है यह वही दिन है जिस दिन रसूले इस्लाम (स) ने जह से पलटते समय ग़दीर के मैदान में इस्लामी दुनिया के सबसे बड़ा और महत्व पूर्ण संदेश दिया यही वह दिन है जिस दिन...
ग़दीर
ग़दीर मक्के से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक स्थान था जहां पोखरा था। इसके आस पास पेड़ थे। कारवां वाले इसकी छाव में अपनी यात्रा की थकान उतारते और स्वच्छ पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। समय बीतने के साथ यह छोटा का पोखरा
इस्लामी एकता
ग़दीर या उस से मुतअल्लिक़ हदीस या वाक़ेयात पर तबसेरा या तज़किरा बाज़ हज़रात को मनाफ़ी ए इत्तेहाद नज़र आता है। बहुत से ज़ेहनों में यह बात भी आती होगी कि ग़दीर के ज़िक्र के साथ यह इत्तेहाद, जो हम मुख़्तलिफ़ इस्लामी फ़िरक़ों में वुजूद में लाना चाहते हैं, कैस
ग़दीर का महत्व
दसवीं हिजरी क़मरी का ज़माना था। पैग़म्बरे इस्लाम ने हज का एलान किया और लोगों को यह कहलवा भेजा कि जिस जिस व्यक्ति में हज करने की क्षमता है वह ज़रूर हज करे क्योंकि ईश्वर के दो संदेश अभी भी संपूर्ण रूप में लोगों तक नहीं पहुंचे थे। एक हज और दूसरा पैग़म्बरे इस
शेख़ निम्र
मोहम्मद अन्निम्र शेख़ निम्र के साथ अंतिम मुलाक़ात के बारे में कहते हैं: मैं, मेरी माँ, हमारे भाई और मेरी बहन शेख़ निम्र की बेटी सकीना के साथ सुबह ही रियाज़ की जेल हाएर पहुँच गए, लेकिन उन्होंने हमको 12 बजे दिन तक मिलने नहीं दिया मेरी माँ और भाई अबू मूसा पर
शेख़ निम्र
निम्र बाक़िर अलनिम्र 1959 ईसवी में सऊदी अरब के अलअवामिया में एक धार्मिक घराने में पैदा हुए (1) आप एक शिया मुज्तहिद (2) और सऊदी अरब के सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता थे (3) आपने अपनी आरम्भिक शिक्षा अलअवामिया में ही ग्रहण की उसके बाद 1989 में धार्मिक शिक्षा..
जाने आख़िर क्यों इस्राईल फ़िलिस्तीनियों की हत्या करता रहता है
फ़िलिस्तीनियों पर इस्राईल द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों और जनसंहारों की ख़बरें हेडलाइन में आती रहती है, अब तो इसको आम बात समझ के न सही से देखा जाता है और न मीडिया दिखाती है लेकिन प्रश्न यह है कि इस्राईल आख़िर क्यों फ़िलिस्तीनियों की हत्या करता रहता है
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की शहादत
पैग़म्बरे इस्लाम सललल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों में सबसे कम आयु हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को मिली। वे एक कथन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के नब्बे दिन के बाद शहीद हो गयीं। आज भी मदीन की गलियों में उनके अस्तित्व की सुगंध का आभास होता
आयते मुबाहेला और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स)
अहमद बिन हंमबल अल मुसनद में रिवायत करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह पवित्र आयत उतरी तो आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ), जनाबे फ़ातेमा और हसन व हुसैन (अ) को बुलाया और फ़रमाया: ख़ुदावंदा यह मेरे अहले बैत हैं।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) पैग़म्बर की पत्नियों की नज़र में
ऐ हुमैराः (ये हज़रत आयशा का लक्ब था) जिस रात मुझे पर मेराज ले जाया गया जिब्रईल ने मुझे जन्नत के दरख्तों में से एक दरख्त की तरफ रहनुमाई की ... पस मैंने उस दरख्त का फल खाया, जो मेरी सुल्ब में क़रार पा गया और जब मैं वापस हुआ और ख़दीजा के पास गया तो उससे...
फ़िदक छीनने पर हज़रत फ़ातेमा (स) का अबूबक्र पर क्रोधित होना
जब पहले ख़लीफ़ा ने उनको फ़िदक वापस नहीं दिया और यह हदीस पढ़ी कि पैग़म्बर ने फ़रमाया है कि हम अंबिया मीरास नहीं छोड़ते हैं और जो कुछ छोड़ते हैं वह सदक़ा है तो आप बहुत क्रोधित होती हैं और आपका क्रोध इन लोगों से इतना अधिक होता है कि आप वसीयत करती है कि...
फ़िदक क्या है और पैग़म्बर को कैसे मिला?
हमको यह जान लेना चाहिए कि फ़िदक एक बहुत ही आबाद और उपजाऊ धरती थी जो यहूदियों की सम्पत्ती थी, हिजाज़ में कुछ यहूदी रहते थे और वह पैग़म्बर के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे जैसा कि स्वंय क़ुरआन ने इस बात को बयान किया है, इन यहूदियों के पास बहुत सी ज़मीनें थीं..
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की श्रेष्ठता सिद्ध करती हदीसें
रसूले ख़ुदा (स.) ने फ़रमायाः ख़ुदा वन्दे आलम ने मेरी बेटी फ़ातेमा, उन के बच्चों और उन के चाहने वालों को आग से दूर और उसके तकलीफ़ पोहचाने से रोका है, इसी लिये उन का नाम फ़ातेमा है। (कनज़ुल उम्माल जिल्द 6 सफ़्हा 219)
फ़ातेमा ज़हरा (स) की आख़िरी ख़्वाहिश
बिलाल ने दूर से बड़े ध्यान से दृष्टि डाली। मदीना नगर के हरे- भरे और ऊंचे-२ खजूरों के पेड़ दिखाई दे रहे थे और उनके पीछे मदीना नगर के छोटे- छोटे कच्चे घर दिखाई दे रहे थे। बिलाल ने एक गहरी सांस ली ताकि वह मदीने से आने वाली ठंडी मधुर समीर का आभास कर सकें

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