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हज़रत ज़ैनब (स) के जीवन के कुछ पहलू
इस में कोई शक नहीं है कि इमाम हुसैन (अ) के सारे सहाबी और बनी हाशिम इस शहादत के मर्तबे में और पड़ने वाली मुसीबतों में हुसैन (अ) के साथ बराबर के शरीक थे। लेकिन इमाम और दूसरों में फ़र्क़ यह है कि हुसैन (अ) सदाए हक़ बुलंद करने वाले थे जबकि दूसरे इमाम हुसैन
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़तिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हैं। आप अपने माता पिता की द्वितीय सन्तान थे।
चेहलुम हमें क्या सिखाता है?
जनाबे ज़ैनब और दूसरे लोगों के करबला में जमा होने और चेहलुम मनाने का मक़सद यह था कि लोगों को बताया जाए कि इमाम हुसैन (अ) ने इतनी बड़ी क़ुरबानी क्यों कर दी, बनी उमय्या औऱ यज़ीद का असली चेहरा दिखाया जाए यहीं से “तव्वाबीन” का आन्दोलन शुरू हुआ
इमाम हुसैन (अ.) का पहला चेहलुम
वह दिन जब जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अन्सारी इमाम की ज़ियारत करने पहुँचे चेहलुम यानि इमाम की शहादत का चालीसवाँ दिन था। जाबिर के साथ हज़रत अली (अ.) के एक सहाबी भी थे जो कूफ़े के रहने वाले थे और उनका नाम अतिया इब्ने हारिस था। इन दिनों जाबिर मदीने में रहते थे
इमाम हुसैन (अ) महात्मा गाँधी की नजर में
महात्मा गाँधी ने लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया क्यों कि वह जानते थे कि जो काम अहिंसा कर सकती है वह हिंसा से नहीं हो सकता है वह जानते थे कि अगर हिंसा में जीत होती हो आज से 1400 साल पहले कर्बला के मैदान में यज़ीद जीत गया होता और इमाम हुसैन हार गए होते।
चेहुलम, इमाम हुसैन के ज़ाएरों के लिये इमाम सादिक़ की अजीब दुआ
इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के आते ही इमाम हुसैन (अ) के चाहने वालों और शियों के बीच एक अलग ही प्रकार का जोश भर जाता है और उनके दिल हुसैन (अ) की मोहब्बत में और भी तीव्रता से धड़कने लगते हैं। आख़िर क्या कारण हैं कि इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के लिये उनके चाहने
पैदल कर्बला तक.
करबला तक पैदल यात्रा समय के बदलने के साथ साथ बदलती गई और जितना समय बीतता गया विभिन्न अवसरों पर इमाम हुसैन के ज़ाएरों का जमवाड़ा इराक़ के करबला में बढ़ता गया और इमाम हुसैन के ज़ाएर पैदल करबला का सफ़र तै करते रहे लेकिन इन तमाम अवसरों में इमाम हुसैन के
रोक़य्या बिन्तुल हुसैन ऐतेहासिक दस्तावेज़ों में
इमाम हुसैन (अ) की एक तीन साल की बेटी थी इमाम हुसैन (अ) के सर को एक तश्त में रखा था और उसपर एक कपड़ा डाल रखा था, वह उनके सामने लाए और उस पर से कपड़ा हटा दिया। इमाम हुसैन (अ) की बेटी ने उस सर को देखा और पूछा यह किसका सर है? कहाः यह तुम्हारे पिता का सर है
यज़ीद के दरबार में हज़रत ज़ैनब का ऐतिहासिक खुतबा
हे यज़ीद! क्या अब जब कि ज़मीन और आसमान को तूने (विभिन्न दिशाओं से) हम पर तंग कर दिया और और क़ैदियों की भाति हम को हर दिशा में घुमाया, तू समझता है कि हम ईश्वर के नज़दीक अपमानित हो गए और तू उसके नज़दीक सम्मानित हो जाएगा?
करबला में इमाम हुसैन (अ) के इतने भाई हुए शहीद
कर्बला में जिन नेक और अच्छे इंसानों ने सही और कामयाब रास्ते को अपनाया और अपने ज़माने के इमाम के नेतृत्व में बुरे लोगों के मुक़ाबले, अपनी ख़ुशी के साथ जंग की और शहीद हुए उनमें से कुछ वीर ह़ीज़रत अली (अ) के बेटे भी थे जो अमीरूल मोमिनीन (अ) की तरफ़ से इमाम
इमाम हुसैन का पहला ज़ाएर
अतिया औफ़ी कहते हैः जाबिर बिन अब्दुल्लाहे अंसारी के साथ इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत के लिये बाहर निकले, जब हम कर्बला पहुँचे जाबिर फ़ुरात के किनारे पहुँचे और वहां ग़ुस्ल किया, उसके बाद एक लुंगी बांधी और एक कपड़ा अपने कांधे पर डाला, और एक थैला निकाला
हिज़्बुल्लाह महासचिव हसन नसरुल्लाह की जीवनी
हिज़्बुल्लाह के महासचिव और शिया धर्मगुरु सैय्यद हसन नसरुल्लाह 31 अक्तूबर 1960 को बैरूत के ग़रीब महल्ले अलबाज़ूरिया में पैदा हुए और इस्राईली सेना द्वारा सैय्यद अब्बास मूसवी की हत्या के बाद 1992 में हिज़्बुल्लाह के महासचिव का पद संभला।
 करबला के बहत्तर शहीद और उनकी संक्षिप्त जीवनी
करबला के बहत्तर शहीद और उनकी संक्षिप्त जीवनी
हबीब इब्ने मज़ाहिर एक बूढ़ा आशिक़
हबीब इस्लामी इतिहास की वह महान हस्ती हैं जिनका चेहरा सूर्य की भाति इस्लामी इतिहास में सदैव चमकता रहेगा, क्योंकि आप पैग़म्बर (स) के सहाबियों में से थे और आपने बहुत सी हदीसें पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सुन रखीं थी, और दूसरी तरफ़ आपने 75 साल की आयु में कर्बला क
इब्ने ज़ियाद के दरबार में हज़रत ज़ैनब (स) का ख़ुत्बा
जब असीरों का क़ाफ़ेला दरबारे इब्ने ज़ेयाद में पहुंचा तो इब्ने ज़ेयाद ने पूछा के वह औरत कौन है जो अपनी कनीज़ों के हमराह एक गोशे में बैठी है? आपने जवाब न दिया उसने दो तीन बार इस्तेफसार किया मगर कोई जवाब न पाया फिर कनीज़ों ने जवाब दिया के यह नवासीए रसूल
करबला जाने से पहले काबे की छत पर हज़रत अब्बास का ख़ुत्बा
आठ ज़िलहिज्जा सन साठ हिजरी यानी हुसैनी काफ़िले के कर्बला की तरफ़ कूच करने से ठीक एक दिन पहले क़मरे बनी हाशिम हज़रत अबुल फ़ज़लिल अब्बास (अ) ने ख़ान –ए- काबा की छत पर जाकर एक बहुत ही भावुक और क्रांतिकारी ख़ुत्बा दिया।
इमाम हुसैन की ज़ियारत पर न जाने का अज़ाब
हलबी ने इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः जो भी इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को छोड़ दे, जब कि वह इस कार्य पर सामर्थ हो तो उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की अवहेलना की है।
ख़ूने हुसैन का बदला लेने वाले हज़रत मुख़्तार के बारे में जानें
जब हज़रत मुख़्तार ने ख़ूने हुसैन के इन्तेक़ाम का नारा बुलंद किया तो आपके इस आन्दोलन में आशूर के दिन इमाम हुसैन की हत्या में शरीक रहने वाले अधिकतर मुजरिमें को मौत के घाट उतार दिया गया।
वहाबियों का मक्के पर हमला
अब्दुल अज़ीज़ इब्ने सऊद ने वहाबी क़बीलों के सरदारों की उपस्थिति में अपने पहले भाषण में कहा कि हमें सभी नगरों और समस्त आबादियों पर क़ब्ज़ा करना चाहिए...
कर्बला के बाद यज़ादे के विरुद्ध पहला विद्रोह “क़यामे तव्वाबीन”
करबला की दुखद घटना के बाद यज़ीद की हुकूमत के विरुद्ध होने वाला पहला आन्दोलन "क़यामे तव्वाबीन" ने नाम से जाना जाता है जो इमाम हुसैन के ख़ून का इन्तेक़ाम लेने के लिए 65 हिजरी में अहलेबैत के चाहने वालों के माध्यम से यज़ीद की सेना के विरुद्ध ऐनुल वरदा में सुल

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