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हुसैन पर मातम इबादत या मात्र परम्परा
आमपौर पर हमारी ज़बानों से एक वाक्य सुनने को मिलता है रवासिमे अज़ा मरासिमे अज़ा (प्रथाऐं) जिसका अर्थ हर वह कार्य होता है जिसका सम्बन्ध अज़ादारी से हो। शाब्दिक दृष्टि से रस्म के विभिन्न अर्थ होते हैं इनमें शक्ल, सूरत, निशान, अलामत के साथ साथ तरीक़ा क़ानून,
तेरह मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
इबने ज़ियाद ने अपने दरबार में पैग़म्बर (स) के परिवार वालों का अपमान किया कभी वह हुसैन (अ) के होठों पर छड़ी मारता था तो कभी हज़रत ज़ैनब (स) से पूछता था कि बताओं को ख़ुदा ने तुम्हारे साथ किया वह कैसा था और कभी इमाम सज्जाद (अ) की बेबसी पर हसता था
बारह मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ख़ानदान पर वह बारह मोहर्रम का ही मनहूस दिन था कि जब यह लुटा हुआ काफ़िला पूरी रात कूफ़े के द्वार पर रुकने के बाद कूफ़े में पहुँचा है, इसी दिन अहलेबैत (अ) का लुटा काफ़िला कैदी बना कूफ़ा आया है। (1)
आसमान, करबला, इमाम हुसैन
'एंग्लो सैक्सन के युग की घटनाएं' नमाक पुस्तक जो कि 1996 में प्रकाशित हुई है ने आशूरा के दिन सन 61 हिजरी में -जो कि एक एहतिहासिक और सदैव याद की जाने वाली घटना है- इग्लैंड में ख़ून की बारिश का ज़िक्र किया है।
इमाम हुसैन, कर्बला, 61 हिजरी
इमाम हुसैन (अ) के साथियों और यज़ीदी सेना के बीच युद्ध जारी ही था कि ज़ोहर की नमाज़ का समय आ गया तब आपके एक साथी "अबू समाम सैदावी" ने इमाम हुसैन (अ) से कहा कि मौला ज़ोहर की नमाज़ का समय हो गया है, और हम आपकी जमाअत में अन्तिम नमाज़ पढ़ना चाहते हैं, इमाम
ग्यारह मोहर्रम हुसैनी काफ़िले के साथ
उमरे साद मलऊन ग्यारह मोहर्रम को ज़ोहर के समय तक कर्बला में रुका और उसने अपने नर्क जाने वाले साथियों और यज़ीदी सेना के मरने वालों सिपाहियों पर नमाज़ पढ़ी और उनको दफ़्न किया, लेकिन पैग़म्बर (स) के बेटे को दफ़्न करना किसी को गवारा नहीं हुआ और वह हुसैन (अ) जो
आमाले आशूरा
इसके बाद दो रकअत नमाज़े ज़्यारते आशूरा सुबह की नमाज़ की तरह पढ़े फिर दो रकअत नमाज़, ज़्यारते इमाम हुसैन अ. इस तरह कि क़ब्रे इमाम हुसैन अ. की तरफ़ इशारा करे और नियत करे कि दो रकअत नमाज़े ज़्यारत इमाम हुसैन अ. पढ़ता हूँ क़ुरबतन इलल्लाह नमाज़ तमाम करने के बा
दस मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
सुबह की नमाज़ के बाद इमाम हुसैन (अ) ने अपनी सेना को व्यवस्थित करना आरम्भ किया आपने ख़ैमों के सामने अपनी सेना को जिसमें 32 घुड़सवार और 40 पैदल सैनिक थे को तीन हिस्सों में बांटा, और दाहिने भाग के लिये "ज़ोहैर इबने क़ैन" को सेनापति बनाया,
आशूर की रात को इमाम हुसैन के एक साथी "मोहम्मद बिन बशीर हज़रमी" को सूचना दी गई की तुम्हारा बेटा शत्रु के सेना के हाथों "रय" शहर की सीमा पर गिरफ़्तार हो गया है उन्होंने उत्तर में कहाः उसपर और मुझ पर पड़ी इस मुसीबत के सवाब की मैं ईश्वर से आशा रखता हूँ और मुझ
नवीं मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
शिम्र इमाम हुसैन (अ) के ख़ैमों के पास आया और उसने हज़रत उम्मुल बनीन के बेटो हज़रत अब्बास, अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान को बुलाया, यह लोग बाहर आये तो उसने कहा कि मैंने तुम लोगों के लिये इबने ज़ियाद के अमान ले ली है। सभी ने कहाः ईश्वर तुम्हारी अमान और...
हुसैन के नन्हे सिपाही "अली असग़र" की जीवनी
ज़ियारते नाहियाः सलाम हो हुसैन के बेटे अब्दुल्लाह पर, तीर खाकर, ज़मीन पर गिरा ख़ून में रंगा बच्चा जिसका ख़ून आसमान में चला गया और अपने पिता की गोद में तीर से ज़िब्ह कर दिया गया, अल्लाह तीर चलाने वाले और उसको मारने वाले हुर्मुला बिन काहिल असदी पर लानत करे।
इमाम ज़माना की नज़र में हज़रत अब्बास का मक़ाम
सलाम हो अबुल फ़ज़्ल पर, अब्बास अमीरुल मोमिनीन के बेटे, भाई से सबसे बड़े हमदर्द जिन्होंने अपनी जान उन पर क़ुरबान कर दी, और गुज़रे हुए कल (दुनिया) से आने वाले कल (आख़ेरत) के लिये लाभ उठाया, वह जो भाई पर फ़िदा होने वाला था, और जिसने उनकी सुरक्षा की और...
आठवी मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
उमरे साद ने सर झुका लिया और कहाः हे हमदानी मैं जानता हूँ कि इस ख़ानदान को दुख देना हराम है, मैं एक बहुत ही भावनात्मक मोड़ पर हूँ मैं नहीं जानता कि मुझे क्या करना चाहिए, रय की हुकूमत को छोड़ दूँ? वह हुकूमत जिसके शौक़ में मैं जल रहा हूँ...
 सातवीं मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
मोहर्रम की सातवीं तारीख़ को "उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद" ने एक पत्र लिखकर "उमरे साद" को आदेश दिया कि वह अपने सिपाहियों के लेकर जाए और हुसैन एवं फ़ुरात के बानी के बीच रुकावट बनके पानीं को हुसैन और उनके बच्चों तक पहुंचने से रोके और, सचेत रहे कि किसी भी अवस्था मे
हज़रत अली अकबर की संक्षिप्त जीवनी
कर्बला के मैदान में जब अली अकबर (अ) और हज़रत अब्बास (अ) आये हैं तो चूक़ि अली अक़बर (अ) पैग़म्बरे इस्लाम (स) से बहुत मेल खाते थे इसलिये उमरे साद की सेना वालों ने आपके चेहरे को देखा तो कहाः فتبارک الله احسن الخالقین
हज़रत क़ासिम इबने हसन (अ) का संक्षिप्त परिचय
हमीद ने रिवायत कीः हुसैन के साथियों में से एक लड़का जो ऐसा लगता था कि जैसे चाँद का टुकड़ा हो बाहर आया उसके हाथ में तलवार थी एक कुर्ता पहन रखा था और उसने जूता पहन रखा था जिसकी एक डोरी काटी गई थी और मैं कभी भी यह नही भूल सकता कि वह उसके बाएं पैरा का जूता थ
छठी मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
बीब रात के अंधेरे में बनी असद के पास पहुँचे और फ़रमायाः मैं तुम्हारे लिये बेहतरीन उपहार लाया हूँ, मैं तुम को अल्लाह के रसूल के बेटे की सहायता की निमंत्रण देता हूं, उनके पास वह साथी हैं जिनमें से हर एक हज़ार लड़ाकों से बेहतर है और वह कभी भी उनके अकेला नहीं
हुर्र बिन यज़ीदे रियाही के जीवन पर एक नज़र
हुर्र बिन यज़ीद बिन नाजिया बिन क़अनब बिन अत्ताब बिन हारिस बिन उमर बिन हम्माम बिन बनू रियाह बिन यरबूअ बिन हंज़ला, तमीम नामक क़बीले की एक शाख़ा से संबंधित हैं (1) इसीलिये उनको रियाही, यरबूई, हंज़ली और तमीमी कहा जाता है (2) हुर्र का ख़ानदान जाहेलीयत और इस्ला
इमाम हुसैन (अ.) कौन थे
सभी मुसलमान इस बात पर सहमत हैं कि कर्बला के महान बलिदान ने इस्लाम धर्म को विलुप्त होने से बचा लिया! हालांकि, कुछ मुसलमान इस्लाम की इस व्याख्या से असहमत हैं और कहते हैं की इस्लाम में कलमा के "ला इलाहा ईल-लल्लाह" के सिवा कुछ नहीं है!
पाँचवी मोहर्रम हुसैनी काफ़िले के साथ
चार मोहर्रम को कूफ़े की मस्जिद में इब्ने जियाद के ख़ुत्बे का असर यह हुआ की बहुत से लोग इमाम हुसैन (अ.) से युद्ध करने के लिये तैयार हो गए और पाँचवी मोहर्रम को उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने “शबस बिन रबई” (1) नामक एक व्यक्ति को 1000 की सेना के साथ करबला...

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