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शाहदत स्पेशल, हज़रत इमाम सज्जाद (अ) का जीवन परिच
हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का नाम अली व आपकी मुख्य उपाधियां सज्जाद व ज़ैनुल आबेदीन हैं। सज्जाद अर्थात अत्यअधिक सजदे करने वाला। ज़ैनुल आबेदीन अर्थात इबादत की शोभा।
माँ, बाप, अल्लाह, पेट और पड़ोसी का हक़ चौथे इमाम की नज़र में
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) ने फ़रमाया: अल्लाह का तुम पर हक़ यह है कि उसकी आराधना करो और किसी चीज़ को उसका साथी न बनाओ, और अगर सच्चे दिल से यह किया तो अल्लाह ने वादा किया है कि वह तुम्हारे दुनिया और आख़ेरत के कार्यों को पूरा करे और जो तुम उसस चाहो वह तुम्हारे
ज़ैनब करबला की नायिका
ज़ैनब, शहीदों के ख़ून का संदेश लानी वाली, अबाअब्दिल्लाहिल हुसैन (अ) की क्रांति की सूरमा, अत्याचारियों और उनके हामियों को अपमानित करने वाली, सम्मान, इज़्ज़त, लज्जा, सर बुलंदी और श्रेष्ठता की उच्चतम चोटी पर स्थित महिला का नाम है।
सब कुछ जानते बूझते हुसैन कर्बला क्यों गए?
इमाम हुसैन (अ) ने जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सुन रखा था कि कर्बला में क्या होगा और उनपर कितने अत्याचार किये जाएंगे और इमाम होने के नाते उनको स्वंय इन चीज़ों का ज्ञान था तो फिर वह कर्बला क्यों गये?
करबला का इतिहास
करबला की जंग 10 मोहर्रम सन 61 हिजरी 10 अक्तूबर 680 ई0 (1) को हुई जिसको हम आशूरा की जंग के नाम से भी जानते हैं, यह जंग पैग़म्बरे इस्लाम के छोटे नवासे इमाम हुसैन और बनी उमय्या के दूसरे बादशाह यज़ीद के बीच करबला में हुई जो इस समय इराक़ का एक पवित्र और...
इमाम हुसैन की ज़ियारत पर जाने का सवाब
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम पदयात्रा करते हुए इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के सवाब के बारे में फ़रमाते हैं: जो भी पद यात्रा करते हुए इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को जाये ईश्वर उसके द्वारा उठाये गये हर क़दम के बदले में उसको एक नेकी लिखता है और एक पाप मिटा देता है...
उन्नीस मोहर्रम, हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
उन्नीस मोहर्रम सन 61 हिजरी को कर्बला के क़ैदियों का काफ़िला शाम की तरफ़ भेजा गया, और चूँकि शाम की सत्ता मोआविया के ही युग से बनी उमय्या के हाथों में थी और बनी उमय्या अहलेबैत (अ) से शत्रुता में प्रसिद्ध थे और और दूसरी तरफ़ से मोआविया पैग़म्बरे इस्लाम (स)
बीस मोहर्रम, हुसैनी काफ़िले के साथ
आशूर के दस दिन के बाद बनी असद के कुछ लोगों ने हज़रत अबूज़र ग़फ़्फ़ारी के दास हज़रत जौन के पवित्र शरीर को देखा इस अवस्था में कि उनके चेहरे से प्रकाश फैल रहा था और उनके शरीर से सुगंध आ रही थी, इन लोगों ने हज़रत जौन को दफ़्न किया।
वहाबियत और मक़बरों की तामीर
इस्लाम धर्म की निशानियों की सुरक्षा और उनका सम्मान महान ईश्वर की सिफारिश है। पवित्र क़ुरआन के सूरये हज की ३२वीं आयत में महान ईश्वर ने ईश्वरीय चिन्हों की सुरक्षा के लिए मुसलमानों का आह्वान किया है। इस संबंध में महान ईश्वर कहता है” जो भी ईश्वर की निशानियों
वहाबियत के बारे में पैग़म्बर (स.) की भविष्यवाणी
पूर्व की तरफ़ से कुछ लोग निकलेंगे जो क़ुरआन पढ़ते हैं लेकिन वह उनके गलों से आगे नहीं बढ़ता है, वह धर्म से बाहर (विधर्मी) होंगे जिस प्रकार तीर कमान से बाहर हो जाता है, उनकी निशानी सर मूंड़ना है।
हुसैन आज भी अकेले हैं!!
इन्सान आज भी जब इतिहास में झांक कर देखता है तो उसे दूर तक रेगिस्तान में दौड़ते हुए घोड़ें की टापों से उठती हुई धूल के बीच खिंची हुई तलवारों, टूटी हुए ढालों और टुकड़े टुकड़े लाशों के बीच में टूटी हुई तलवार से टेक लगाकर बैठा हुआ एक ऐसा व्यक्ति दिखाई देता, ज
अगर ज़ैनब न होतीं...?
अगर ज़ैनब (स) न होती तो इमामत का सिलसिला चौथे इमाम की इमामत के आरम्भ के बाद ही इस संसार को सबसे तुच्छ, अत्याचारी व्यक्ति के हाथों टूट गया होता। अब्बास महमूद ओक़ाद, कर्बला के बारे में लिखते हैं
यज़ीद के दरबार में इमाम सज्जाद का ख़ुत्बा
मैं मक्का और मिना का बेटा हूँ, मैं सफ़ा और ज़मज़म का बेटा हूँ, मैं उसका बेटा हूँ जिसने हजरे असवद को अपनी चादर में उठाया और उसके स्थान पर स्थापित किया, मैं बेहतरीन तवाफ़ और सई करने वालों का बेटा हूँ, मैं बेहतीन हज और बेहतरीन तलबिया कहने वाले का बेटा हूँ
और दो शिया काफ़िर हो गए
मैं यहां पर किसी वहाबी, बहाई या किसी और मुनहरिफ़ समुदाय की बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि यह कहानी शुद्ध रूप से दो पक्के शिया मुसलमानों की है। वह शिया जो कुछ दिन पहले तक एक साथ एक ही महल्ले में रहा करते थे, उन्होंने एक साथ एक ही स्कूल में पढ़ाई की थी और हद...
लो क़मा और ज़ंजीर के बाद अब गोलियों का मताम आ गया
अज़ादारी को अगर अहलेबैत की बताई हुई सीमाओं में रखा गया तो उसका सवाब जन्नत होता है, एक आँसू की क़ीमत यह हो जाती है कि सय्यदए कौनैन उसके अपने रूमाल में जगह देती हैं, लेकिन जब वह अहलेबैत की बताई हुई सीमाओं से आगे निकल जाती है तो कभी हमको हज़रत क़ासिम की शादी
हज़रत ज़ैनब और कर्बला की जंग
शिम्र ने कहा उबैदुल्लाह बिन जि़याद ने कहा हैः हुसैनी की सारी औलादों को कत्ल कर दो, उसके बाद जब उसने सैय्यदे सज्जाद को मारने का इरादा किया तो तो ज़ैनब नें जवाब में कहाः वह मारा नहीं जाएगा मगर यह कि मैं भी क़त्ल कर दी जाऊँ
पंद्रह मोहर्रम, हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
"इबने ज़ियाद" एक (या कई) दिनों तक कर्बला के शहीदों के सरों को कूफ़ा शहर की गलियों कूचों और महल्लों में घुमाता रहा उसके बाद उसके पास "यज़ीद इबने मोआविया" मलऊन का आदेश आता है कि अली (अ) के बेटे इमाम हुसैन (अ) के सर को दूसरे कर्बला के शहीदों के सरों के साथ
आयतुल्लाह सीस्तानी और ख़ामेनेई से सवाल
आयतुल्लाह सीस्तानी और ख़ामेनेई से सवाल
बैअत से इनकार पर यह आयत पढ़ी हुसैन ने
मदीने के हाकिम ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को बुलाया और उनसे यज़ीद की बैअत करने के लिए कहा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने स्वीकार नही किया और देरी की।
अल्लाह कहां है?
आत्मबोध, ईश्वरवाद तक पहुंचने का मार्ग है और वास्तव में ईश्वरवाद का मार्ग आत्मबोध द्वारा तय होता है। जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा हैः जिसने स्वयं को पहचान लिया उसने अपने पालनहार को पहचान लिया है। अर्थात जो यह यह समझ ले कि किस प्रकार वह एक तुच्छ अस्

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