चेहलुम हमें क्या सिखाता है?

जनाबे ज़ैनब और दूसरे लोगों के करबला में जमा होने और चेहलुम मनाने का मक़सद यह था कि लोगों को बताया जाए कि इमाम हुसैन (अ) ने इतनी बड़ी क़ुरबानी क्यों कर दी, बनी उमय्या औऱ यज़ीद का असली चेहरा दिखाया जाए यहीं से “तव्वाबीन” का आन्दोलन शुरू हुआ

सय्यद इब्ने ताऊस और दूसरे बहुत से उल्मा ने लिखा है कि जनाबे ज़ैनब (स) इमाम सज्जाद (अ) और आशूरा के बाद बंदी बनाए जाने वाले दूसरे लोग भी चेहल्लुम के दिन कर्बला में आये और जब यह लोग कर्बला पहुंचे हैं तो वहां केवल जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी और अतिया कूफ़ी ही नहीं बल्कि उनके अलावा बनी हाशिम के और भी बहुत से लोग थे जो जनाबे ज़ैनब का स्वागत करने आए थे। जनाबे ज़ैनब से शाम से कर्बला जाने पर जो इतना ज़ोर दिया था शायद उसका एक मक़सद यही था कि इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र के पास कुछ लोग इकठ्ठा हों और वहाँ से इमाम (अ) के मक़सद को बयान करने की और कर्बला का मैसेज पहुंचाने के मिशन की शुरूआत की जाए। जनाबे ज़ैनब और दूसरे लोगों के यहाँ जमा होने और चेहलुम मनाने का मक़सद यह था कि लोगों को बताया जाए कि इमाम हुसैन (अ) ने इतनी बड़ी क़ुरबानी क्यों कर दी, बनी उमय्या औऱ यज़ीद का असली चेहरा दिखाया जाए यहीं से “तव्वाबीन” का आन्दोलन शुरू हुआ और इसी के बाद जनाबे मुख़्तार ने भी अपना आन्दोलन शुरू किया, फिर लोगों में धीरे धीरे जागरुकता पैदा हुई है और बनी उमय्या का राज ख़त्म हुआ है, उसके बाद मरवानी आए तो इमाम हुसैन (अ) के रास्ते पर चलने वाले उनसे भी लड़ते रहे इसलिए चेहलुम सिर्फ़ एक हिस्ट्री नहीं है बल्कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत भी है, उनके मक़सद को बयान करना भी है, और हर पीरियड की यज़ीदियत का चेहरा दिखाना भी है।

चेहलुम के बाद आशूरा और इमाम हुसैन (अ) का ज़िक्र और उनका मक़सद हमेशा के लिए ज़िंदा हो गया और इस काम की नींव चेहलुम के दिन जनाबे ज़ैनब और इमाम सज्जाद (अ) के हाथों इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र के पास पड़ी, अगर इमाम हुसैन (अ) के बाद इमाम सज्जाद (अ) औऱ दूसरे बंदियों ने कर्बला की घटना और आशूरा की असलियत बयान न की होती तो आज कर्बला ज़िन्दा न होती, जितना बड़ा जिहाद उनके बाद उनके मिशन को सही तरीके बताने वालों और उसे बचाने वालों ने किया है चेहलुम हमें यह सिखाता है कि दुश्मनों के ग़लत प्रोपगण्डों के तूफ़ान के बीच रह कर कर्बला की हक़ीक़त को कैसे ज़िंदा रखना है।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से एक हदीस बयान की जाती है कि आपने फ़रमाया: “जो आदमी कर्बला के बारे में एक शेर (पंक्ति) कहे और उससे लोगों को रुलाए उसके लिए जन्नत है” इस तरह की हदीसों का क्या मक़सद है? उस वक़्त हालात ऐसे थे कि जितनी भी प्रोपगण्डा फ़ैक्ट्रियाँ थीं उनकी यही एक कोशिश थी कि आशूरा की घटना को उल्टा पेश किया जाए, उसकी हक़ीक़त छुपाई जाए, लोग यह न जानने पाऐं कि हुसैन (अ) कौन थे।

अहलेबैत (अ) कौन हैं, उन दिनों भी आज की तरह बड़ी बड़ी ज़ालिम हुकूमतें पैसे और ताक़त के बल पर अपने शैतानी इरादों को पूरा करने के लिए आम लोगों को हक़ीक़त से दूर किया करते और जिस चीज़ को जिस तरह चाहते थे बयान करते थे क्या ऐसी स्थिति में सम्भव था कि आशूरा की इतनी महत्वपूर्ण घटना जो एक बंजर भूमि में घटी थी जहाँ कोई भी नहीं रहता था, उसकी असलियत लोगों के सामने आती और उसे सही तरह से बयान किया जाता? अगर जनाबे ज़ैनब (स) और इमाम सज्जाद (अ) का जेहाद न होता तो यह असम्भव था। (इसी लिए बाद के इमामों ने भी कर्बला और आशूरा को ज़िंदा रखने पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया और मजलिस, अज़ादारी, इमाम हुसैन के ग़म, आँसुओं की श्रेष्ठता बयान की है।) चेहलुम का सबसे बड़ा मक़सद वही होना चाहिए जिससे जनाबे ज़ैनब (स) और इमाम सज्जाद (अ) ने हमें सचेत किया है।

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