पैदल कर्बला तक.

करबला तक पैदल यात्रा समय के बदलने के साथ साथ बदलती गई और जितना समय बीतता गया विभिन्न अवसरों पर इमाम हुसैन के ज़ाएरों का जमवाड़ा इराक़ के करबला में बढ़ता गया और इमाम हुसैन के ज़ाएर पैदल करबला का सफ़र तै करते रहे लेकिन इन तमाम अवसरों में इमाम हुसैन के

बुशरा अलवी

अहलेबैत के रौज़ों की ज़ियारत के बारे में बहुत सी रिवायतों हमारी हदीसी किताबों में मौजूद हैं और जो भी ज़ियारत को जाए उसके लिए सवाब और आख़ेरत में उसके मक़ाम को बयान किया गया है जैसे कि कुछ रिवायतो में आया है कि अहलेबैत अपने जाएरों की ज़ियारत को आते हैं और उनको क़यामत के डर और भय से नजात दिलाते हैं (1) उनकी शिफ़ाअत करते हैं (2) इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के बारे में भी बहुत सी हदीसों में आया है जैसे कि हदीसों में है कि इमाम हुसैन की जियारत दोज़ख़ की आग से बचाती है (3) आपकी ज़ियारत हज़ार हज उमरे और ग़ुलाम आज़ाद करने जैसा.... (4)

पैदल ज़ियारत को जाना सदैव से रहा है जैसा कि बयान किया गया है कि हज़रत आदम अल्लाह के घर की ज़ियारत के लिए हज़ार बार पैदल गए। (5) वैसे अगर देखा जाए तो पवित्र स्थलों, तीर्थयात्राओं आदि के लिए पैदल यात्रा किसी विशेष धर्म से मख़सूस नहीं है बल्कि यह लगभग हर धर्म में दिखाई देती है जैसे हम अपने हिन्दुस्तान में देखते हैं कि कावण यात्रा करते हुए पैदाल अपने तीर्थस्थल जाते हैं, या फिर कुछ लोग धामों की यात्रा पर पैदल जाते हैं, या इतिहास में रूस का बादशाह क़ैसर बैतुल मुक़द्दस पैदल गया। (6)

इस्लाम में भी पैदल ज़ियारत को जाने के अच्छा माना गया है और उसके लिए बहुत ताकीद की गई है जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) अल्लाह से क़रीब होने का सबसे बेहतरीन माध्यम काबे की बैदल ज़ियारत को मानते हैं, आप फ़रमाते हैं: एक पैदल हज सत्तर हज के बराबर है। (7) अहलेबैत के रौज़ों की पैदल ज़ियारत के बारे में भी बहुत ताक़ीद की गई है इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं: जो भी पैदल अमीरुल मोमिनीन की ज़ियारत को जाए अल्लाह उसके उठने वाले हर क़दम पर एक हज और एक उमरे का सवाब लिखता है और अगर पैदल वापस आए तो उसके उठने वाले हर क़दम पर दो हज और दो उमरे का सवाब लिखता है। (8) आप एक दूसरी रिवायत में फ़रमाते हैं: जो भी पैदल इमाम हुसैन (अ) जियारत को जाए अल्लाह उसके उठने वाले हर क़दम पर एक हज़ार नेकियां लिखता है औऱ एक हज़ार गुनाह मिटा देता है। (9)

ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि पैदल मासूमीन की ज़ियारत को जाना ख़ुद इमामों के ज़माने से ही प्रचलित था। (10) और इस्लामी देशों यह अंजाम दिया जाता था। (11) लेकिन इस्लामी देशों की बदलती स्थिति और वहां अलग अलग प्रकार की हुकूमतों के चलते इसने अलग अलग मौसम देखें हैं और कभी कभी यह ज़ियारत बहुत मुश्किल हो चुकी है।

शिया राजाओं जैसे आले बूये और सफ़वियों ने भी इस रीत को आगे बढ़ाया और शियों के बीच उसका प्रचार किया है इब्ने जौज़ी लिखता है कि 431 हिजरी में जलालुद्दौला अपने बेटों और कुछ साथियों के साथ ज़ियारत के लिए नजफ़ गया और रास्ते में कूफ़े की खाई के पास से अमीरुल मोमिनीन के रौज़े तक जिसकी दूरी लगभग एक फ़रसख़ थी को पैदल तै किया। (12)

हमारे ओलेमा ने भी अहलेबैत का अनुसरण करते हुए इस सुन्नत और रीत की जीवित रखा है और जहां तक संभव हो सका है इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए पैदल कर्बला की यात्रा की है, और यह रीत स्वर्गीय शेख़ अंसारी के ज़माने तक बाक़ी थी (13) और बयान किया जाता है कि स्वर्गीय आख़ूनद ख़ुरासानी भी अपने साथियों के साथ पैदल करबला इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए जाया करते थे। (14) इमाम हुसैन की ज़ियारत को पैदल जाने की यह रीत मिर्ज़ा हुसैन नरी के ज़माने में और आगे बढ़ी उनके बारे में कहा जाता है कि वह हर साल बक्रईद में इमाम हुसैन के कुछ दूसरे ज़ाएरों के साथ पैदल नजफ़ से करबला जाते थे और उनकी यह यात्रा तीन दिन तक चलती थी। (15)

मोहद्दिस नूरी के ज़माने तक ओलेमा और धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों के बीच पैदल यात्रा प्रचलित थी लेकिन जैसे जैसे गाड़ियों का चलन बढ़ता गया पैदल यात्रा अपना रंग खोती गई लेकिन नजफ़ में प्रसिद्ध शिक्षक और धर्मगुरु सैय्यद महमूद शाहरूदी के आने और करबला तक पैदल यात्रा करने पर आपकी ताकीद ने इस रीत मों दोबारा नई जान फूंक दी और इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए पैदल जाना एक पवित्र यात्रा के तौर पर माना जाने लगा और धीरे धीरे यह इराक़ के लोगों के बीच भी प्रचलित हो गया। (16)

महमूद शाहरूदी के बारे में है कि आपने लगभग 260 बार कर्बला की पैदल यात्रा की (17) जिसमें आपकी शागिर्द और दूसरे हौज़े का तालिबे इल्म आप का साथ दिया करते थे, कहा जाता है कि अल्लामा अमीनी जब भी करबला की यात्रा पर गए तो आप नजफ से करबला के बीच की अधिकतर दूरी पैदल तै किया करते थे (18) धीरे धीरे यह रीत इतनी फैल गई की हौज़े के अधिकतर विद्यार्थी नजफ से करबला पैदल जाने लगे यहाँ तक कि वह जब चेहलुम या अरफ़ा का ज़माना नहीं होता था तब भी पैदल ही ज़ियारत को जाया करते थे। (19)

करबला तक पैदल यात्रा समय के बदलने के साथ साथ बदलती गई और जितना समय बीतता गया विभिन्न अवसरों पर इमाम हुसैन के ज़ाएरों का जमवाड़ा इराक़ के करबला में बढ़ता गया और इमाम हुसैन के ज़ाएर पैदल करबला का सफ़र तै करते रहे लेकिन इन तमाम अवसरों में इमाम हुसैन के चेहलुम की पदयात्रा या अरबईन की प्यादारवी का अपना अलग महत्व और वैभव है, अगरचे इराक़ में सद्दाम की सत्ता आने के बाद और उसके द्वारा इमाम हुसैन के ज़ाएरों की हत्या किए जाने के बाद यह पदयात्रा लगभग समाप्त हो गई लेकिन सद्दाम के तख़्तापलट और उसकी मौत के साथ ही इश्क़े हुसैनी ने इमाम हुसैन के चाहने वालों को एक बार फिर अपनी तरफ़ ख़ींच लिया और इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए की जाने वाली यह पदयात्रा एक बार फिर अपने पूरे जोश के साश शुरू हो गई, और आज आलम यह है कि पूरी दुनिया से लाखों लोग चेहलुम के अवसर पर होने वाली इस महान पदयात्रा में शामिल होते हैं और आध्यात्म का एक नया अध्याय लिखते हैं, इस पदयात्रा के वैभव का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया में इतना बड़ा धार्मिक जमावड़ा किसी और स्थान पर नहीं होता है, हिन्दुस्तान में होने वाला कुंभ का मेला भी चेहलुम के ठाठे मारते समुद्र के आगे एक बूंद की भाति दिखाई देता है जहां हर तरफ़ केवल इश्क़ है, हुसैन हैं, हुसैनियत है,

इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए करोड़ों लोगों का एक साथ पैदल यात्रा करना एक बार फिर उस हदीस को याद दिला देता है जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

قال رسول الله (ع) :« إنَّ لِقَتْلِ الْحُسَیْنِ حَرَارَةٌ فِی قُلُوبِ الْمُؤْمِنِینَ لَنْ تَبْرُدَ أَبَداً

हुसैन के क़त्ल ने मोमिनों के दिल में वह गर्मी भर दी है जो क़यामत तक ठंडी होने वाली नहीं है (20)
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1.    कामेलुज़्ज़ियारात इब्ने क़ूलवैह, जाफर बिन मोह्म्मद, पेज 11
2.    कामेलुज़्ज़ियारात पेज 12
3.    कामेलुज़्जियारात पेज 122
4.    कामेलुज़्ज़ियारात पेज 142-143-164
5.    वसाएलुश्शिया, हुर्रे आमुली मोहम्मद बिन हसन जिल्द 11, पेज 132
6.    (10) फ़रोग़े अब्दियत, जाफ़र सुब्हानी, पेज 696
7.    (11) मन ला यहज़ोरोहुल फ़क़ीह, शेख़ सदूक़, जिल्द 3, पेज 53
8.    (12) फ़रहतुर ग़रा, इब्ने ताऊस अब्दुल करीम बिन अहमद, पेज 75
9.    (13) कामेलुज़्ज़ियारात पेज 183-184-185
10.    (18) तारीख़े करबला व हाएरे हुसैन (अ) कलीददार अब्दुल जवाद पेज 86
11.    (19) रेहला इब्ने बतूता, तोहफ़तुन नज़ार फ़ी ग़राएबिल अमसार, इब्ने बतूता मोहम्मद बिन अबदुल्लाह, जिल्द 3, पेज 133
12.    (21) अलमुनतज़िम फ़ी तारीख़िल मुलूक वल उमम, इब्ने जौज़ी अबिल फ़रज अब्दुर्रहमान बिन अली जिल्द 8, पेज 105
13.    (24) नजमुस्साक़िब दर अहवाले इमाम ग़ाएब, नूरी हुसैन बिन मोहम्मद तक़ी, पेज 25
14.    (26) रूहे मुजर्रद, हुसैनी तेहरानी सैय्यद मोहम्मद हुसैन पेज 553
15.    (27) नजमुस्साक़िब दर अहवाले इमाम ग़ाएब, नूरी हुसैन बिन मोहम्मद तक़ी, पेज 26
16.    (28) ज़िन्दगी व मुबारेज़ाते आयतुल्लाह सैय्यद महमूद शाहरूदी बे रिवायते असनाद, पेज 41
17.    (29) सीमाए शाहरूदी, बूस्ताने कवीर, रियायती जाफ़र, पेज 101
18.    (30) फ़रहंगे ज़ियारत, मोहद्देसी जवाद पेज 67
19.    (31) जैसे पहली रजब, 15 शाबान, आशू.....
20.    वसाएलुश्शिया जिल्द 10, पेज 318

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