ग़दीर की अहमियत आयतुल्लाह ख़ामेनेई के बयानों में

एक हदीस है जिसे हम (हदीसे उख़ूवत) के नाम से पहचानते हैं वह हज़रत अली (अ) के बुलंद मक़ाम की गवाही देती है। इस हदीस का माजरा कुछ इस तरह है कि जब रसूले ख़ुदा तमाम मुहाजिर व अंसार को एक दूसरे का भाई बना रहे थे तब आपने हज़रत अली (अ) को अपना भाई बनाया

पैग़म्बरे अकरम (स) की जानशीनी शियों के अक़ीदे के मुताबिक़ एक इलाही मंसब है कि जो ख़ुदावंदे आलम की तरफ़ से उसके हक़दार को मिलता है। रसूले गिरामी ने इस्लाम के शुरु ही से कि जब उन्होने इस्लाम की दावत को आम लोगों में भी करना शुरु किया और उन्होने अपने आइज़्ज़ा व अक़ारिब को अपनी रिसालत से आगाह किया और क़यामत के अज़ाब से डराया और उन्ही तबलीग़ी महफ़िलों में अपनी जानशीनी के मसअले को भी बयान किया और बनी हाशिम में से 45 लोगों को बुला कर इस हुक्मे इलाही को बयान किया। पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया कि तुम में से जो कोई सबसे पहले मेरी दावत को क़बूल करेगा और मेरी मदद करेगा मेरा भाई, वसी और जानशीन होगा और तारीख़ ने भी इस बात की गवाही दी कि सिवाए हज़रत अली (अ) के कोई अपनी जगह से खड़ा न हुआ और किसी ने रसूले अकरम (स) दावत को क़बूल और मदद करने में हिमायत नही की लिहाज़ा रसूले अकरम (स) ने उस मजमे में फ़रमाया कि यह नौजवान (हज़रत अली (अ)) मेरा वसी और जानशीन है। जैसा कि यह वाक़ेया रावियान तारीख़ और मुफ़स्सेरीन के दरमियान (यौमुद्दार) और (बदउद्ददअवा) के नाम से मशहूर है। इसके अलावा भी रसूलल्लाह ने अपनी 23 साला रिसालत में मुख़्तलिफ़ मक़ामात और मुनासेबात पर हज़रत अली (अ) की जानशीनी के मसअले को उम्मते मुसलेमा के सामने बयान किया और उनके मक़ाम को सबसे ज़्यादा बरतर और अहम क़रार दिया दिया है और सबसे ज़्यादा अहम और ख़ास इम्तियाज़ कि जो हज़रत अली (अ) के मानने वालों को और उनके दोस्तों के लिये ख़ुशी का बाइस बनती है (हदीसे मंज़िलत) यानी हज़रत अली (अ) को पैग़म्बर इस्लाम (स) से वही निस्बत थी जो मूसा (अ) को हारुन (अ) से थी।

इसके अलावा एक और हदीस (हदीसे सद्दे अबवाब) है मदीने में हिजरत के बाद असहाबे पैग़म्बर (स) के घरों के दरवाज़े मस्जिदे नबवी में खुला करते थे कुछ ही असरे बाद रसूले ख़ुदा (स) को हुक्मे इलाही होता है कि ऐ मुहम्मद, मस्जिद नबवी में खुलने वाले तमाम दरवाज़े बंद कर दिये जायें सिवाए हज़रत अली (अ) के घर के दरवाजे के।

इसी तरह एक और हदीस कि जिसे हम (हदीसे उख़ूवत) के नाम से पहचानते हैं हज़रत अली (अ) के बुलंद मक़ाम की गवाही देती है। इस हदीस का माजरा कुछ इस तरह है कि जब रसूले ख़ुदा (स) तमाम मुहाजिर व अंसार को एक दूसरे का भाई बना रहे थे तो उस वक़्त आपने हज़रत अली (अ) को अपना भाई बनाया।

उसके अलावा और दूसरी अहादीस मसलन हदीसे इबलाग़ (पयामे बराअत) भी हज़रत अली (अ) के इफ़्तेख़ारों में से एक इफ़्तेख़ार है और ख़ास तौर पर अबू बक्र के मुक़ाबले में एक बड़ा इफ़्तेख़ार है और सबसे बढ़ कर रोज़े मुबाहला जिस दिन ख़ुदा वंदे आलम ने (सूरह आले इमरान) में हज़रत अली (अ) को रसूले ख़ुदा का नफ़्स क़रार दिया और यक़ीनन सबसे ज़्यादा वाज़ेह और मुसतनद (हदीसे ग़दीर) है जो रसूले ख़ुदा ने अपने आख़िरी हज (10 हिजरी) से वापसी पर बयान फ़रमाई।

पैग़म्बरे अकरम (स) ने दसवीं हिजरी में हज़ारों लोगों के दरमियान जो सब के सब उम्मते मुसलेमा में से थे हज्जे इब्राहीमी को अदा किया और सारे जम़ान ए जाहिलीयत के क़वानीन को एक बार फिर ग़लत साबित करके ख़त्म किया और मदीन की तरफ़ वापस सफ़र शुरु किया अभी मक्के से कुछ ही दूर गये थे कि यह आयत नाज़िल हुई। (आय ए बल्लिग़ सूरह मायदा आयत 28) यह एक ऐसा अहम फ़रीज़ा था कि जिसका अदा न करना इबलाग़े रिसालत अदा न करने के बराबर था और फिर ख़ुदा वंद इस आयत के तसलसुल में बयान फ़रमाता है। (वल्लाहो यअसिमुका मिनन नास) यानी ख़ुदावंद तुम को लोगों के शर से बचायेगा और इस आयत के इतनी वाज़ेह वज़ाहत के साथ नाज़िल होने पर पैग़म्बरे अकरम (स) के लिये उनका फ़रीज़ा वाज़ेह और रौशन हो गया।

आयत के नाज़िल होने के फ़ौरन बाद रसूले खु़दा (स) ने कारवान को रोकने का हुक्म दिया और वह भी ऐसी हालत में कि जब हाजी एक ऐसे मक़ाम के नज़दीक हो चुके थे कि जहाँ से मदीना, मिस्र और इराक़ के मुसाफ़िर अलग अलग हो जाते थे। अमीने वहयी फरमाते हैं कि आज वहयी के बयान के साथ साथ आप लोगों से कुछ और भी कहना चाहूँगा। यह एक ऐसा मक़ाम था कि जहाँ रसूले ख़ुदा (स) जो कुछ इरशाद फ़रमाते वहाँ मौजूद हज़ारों सुनने वाले वापसी पर अपने इलाक़ों में उसे दूसरों तक पहुचाते और फिर आख़िर कार मक़ामें ग़दीर खुम पर सब क़ाफ़िले जमा हो गये, मौसम बहुत गर्म था और लोगों को बहुत शिद्दत से इस बात का इंतिज़ार था कि आख़िर कौन सा हुक्मे इलाही है कि जिसके लिये रसूले ख़ुदा (स) ने सारे काफ़िलों को रोका है। पैगम़्बरे अकरम (स) हज़ारों लोगों के दरमियान में से मिम्बर पर तशरीफ़ लो गये कि जो पालाने शुतुर से बनाया गया था। रसूले ख़ुदा (स) ने एक नज़र अपने चारो तरफ़ मजमें पर डाली जिस पर सुकूत तारी था, तमाम लोगों की नज़रे पैग़म्बर (स) पर जमी हुई थीं ऐसे आलम में इरशाद फ़रमाना शुरु किया और सबसे पहले ख़ुदी की हम्द व सना की फिर अपनी सदाक़त के बारे में लोगों से ज़बानी तजदीदे बैअत की लोगों ने यह आलम देख कर रोना शुरु कर दिया उसी दौरान रसूले ख़ुदा ने मजमे पर निगाह डाली और हज़रत अली (अ) को अपने पास बुलाया हज़रत अली (अ) रसूले ख़ुदा (स) के पास मिम्बर पर उनके बराबर में खड़े हो गये उसके बाद रसूले ख़ुदा (स) ने लोगों से फ़रमाया: या अय्योहन नास, मन कुन्तो मौला फ़हाज़ा अलीयुन मौला और फिर फ़रमाया कि ख़ुदाया उन लोगों के दोस्त रख जो अली को दोस्त रखते हों और उन लोगों को दुश्मन रख जो अली से दुश्मनी रखते हों और तमाम बातों पैग़म्बरे अकरम (स) ने इस हालत में बयान फ़रमाई कि जब आप हज़रत अली के हाथों को अपने हाथ में लेकर ऊपर उठाये हुए थे। रसूलल्लाह (स) की इस गुफ़्तुगू के ख़त्म होते ही एक ख़ैमा बनाया गया कि जिसमें लोगों ने क़ाफ़िलों की सूरत में आना शुरु किया और हज़रत अली (अ) के हाथों पर इस उनवान से कि वह रसूलल्लाह (स) के बाद उनके जानशीन और ख़लीफ़ ए बर हक़ हैं, बैअत करने लगे।

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