ग़दीरे ख़ुम की कहानी

ग़दीर मक्के से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक स्थान था जहां पोखरा था। इसके आस पास पेड़ थे। कारवां वाले इसकी छाव में अपनी यात्रा की थकान उतारते और स्वच्छ पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। समय बीतने के साथ यह छोटा का पोखरा

ग़दीर मक्के से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक स्थान था जहां पोखरा था। इसके आस पास पेड़ थे। कारवां वाले इसकी छाव में अपनी यात्रा की थकान उतारते और स्वच्छ पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। समय बीतने के साथ यह छोटा का पोखरा एक अथाह झील में परिवर्तित हो गया कि जहां हजरत अली अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम का उत्तराधिकारी बनाए जाने की घटना का संदेश सर्वत्र फैल गया। हज़रत अली की पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्ति की महाघटना ग़दीरे ख़ुम की ज़मीन पर घटी इसलिए यह नाम इतिहास में अमर हो गया।

दस हिजरी क़मरी की अट्ठारह ज़िलहिज्ज को हज से लौटने वाले कारवांनों को पैग़म्बरे इस्लाम के आदेश पर रोका गया। सब ग़दीरे में एकत्रित हुए। हाजी हाथों को माथे पर रखकर आंखों के लिए छांव बनाए हुए थे। उनके मन की उत्सुकता आंखों से झलक रही। सब एक दूसरे को देख कर यह पूछ रहे थे कि पैग़म्बर को क्या काम है? अचानक चेहरे प्रकाश में डूब गए। पैग़म्बरे इस्लाम ने ऊंटों की काठियों से बने ऊंचे मिम्बर पर खड़े होकर हज़रत अली को अपने पश्चात अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और धर्म के अंतिम संदेश को लोगों तक पहुंचाया। लोग इस प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बधाई देने व उनके हाथों को चूमने के लिए उनकी ओर लपक लपक कर बढ़ रहे थे कि हज़रत अली उस भीड़ में दिखाई नहीं दे रहे थे। वह सबके स्वामी व पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी नियुक्त हुए थे।

पैग़म्बरे इस्लाम के साथियों ने हे अली आपको बधाई हो! आप सभी मोमिनों के मार्गदर्शक व स्वामी हैं! जैसे वाक्यों से ईश्वर की ओर से उनकी नियुक्ति की उन्हें बधाई दी।

ग़दीर दिवस को ईद मानना और इसके विशेष संस्कार को अंजाम देना इस्लामी जगत की परंपराओं में है यह केवल शीया समुदाय से विशेष नहीं है। इतिहास के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के समय इस दिन को मुसलमानों की बड़ी ईद माना गया और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों व इस्लाम पर आस्था रखने वालों ने इस परंपरा को जारी रखा। इस्लामी जगत के महाविद्वान अबु रैहान बीरूनी ने अपनी किताब आसारुल बाक़िया में लिखा हैः ग़दीर की ईद इस्लाम की ईदों में है। इस संदर्भ में सुन्नी समुदाय के विख्यात धर्मगुरु इब्ने तलहा शाफ़ई लिखते हैः यह दिन इसलिए ईद है कि पैग़म्बर इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को लोगों का स्वामी चुना और उन्हें समूची सृष्टि पर वरीयता दी।

ग़दीर की घटना इतनी प्रसिद्ध है कि बहुत ही कम ऐसे इतिहासकार होंगे जिन्होंने इसका उल्लेख न किया हो। ईरान के विख्यात धर्मगुरु अल्लामा अमीनी ने ग़दीर की महाघटना के संबंध में अपनी कितबा अलग़दीर में शीया विद्वानों के अतिरिक्त सुन्नी समुदाय की विश्वस्त किताबों से 360 साक्ष्य इकट्ठा किए हैं।

ग़दीरे की घटना कई आयामों से महत्वपूर्ण है। इसका एक महत्वपूर्ण आयाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम की अद्वितीय विशेषता व नैतिक महानता पर आधारित है। ग़दीर नामक घाटी में मौजूद बहुत से लोगों ने, जो इस घटना के साक्षी थे, हज़रत अली की विशेषताओं को निकट से देखा था और वे जानते थे कि वह वीरता, ईमान, निष्ठा व न्याय की दृष्टि से लोगों के मार्गदर्शन के लिए सबसे अच्छा विकल्प हैं। मुसलमान विद्वान इबने अबिल हदीद पहली व दूसरी हिजरी क़मरी के इतिहासकार मोहम्मद बिन इस्हाक़ के हवाले से लिखते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली को संबोधित करते हुए कहा: यदि इस बात का भय न होता कि लोग तुम्हारे बारे में भी वही बातें कहने लगेंगे जो हज़रत ईसा के अनुयाईयों ने उनके बारे में कहा था तो तुम्हारे बारे में ऐसी बात कहता कि तुम जहां से गुज़रते लोग तुम्हारे पैरों के नीचे की धूल मिट्टी को प्रसाद के रूप में उठाते।

पवित्र क़ुरआन में भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सदगुणों की प्रशंसा की गयी है। उन आयतों में कि जिनके बारे में क़ुरआन के शीया और सुन्नी व्याख्याकार सहमत हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम की प्रशंसा में उतरी है, सूरए माएदा की आयत क्रमांक 55 भी है जो विलायत के नाम से प्रसिद्ध है। इस आयत में ईश्वर कहता हैः ईमान वालो! बस तुम्हारा स्वामी व अभिभावक ईश्वर, और उसका दूत और वे ईमान वाले जो नमाज़ क़ाएम करते हैं, और रुकू की हालत में ज़कात देते हैं। यह आयत भी मुबाहले, तत्हीर और सूरए इंसान की आयतों की भांति इस वास्तविकता का उल्लेख करती है कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन और उनमें सबसे ऊपर हज़रत अली ने ईमान पवित्रता व ईश्वर की पहचान की उच्च चोटियों को एक के बाद एक जीता और उस स्थान तक पहुंचे कि ईश्वर और उसके दूत के पश्चात स्वामी के रूप में पहचनवाए जाएं।

पैग़म्बरे इस्लाम के एक अतिमहत्वपूर्ण साथी हज़रत अबूज़र ग़फ़्फ़ारी कहते हैः जब पैग़म्बरे इस्लाम को यह सूचना मिली कि अली अलैहिस्सलाम ने रुकू की हालत में अपनी अंगूठी एक फ़क़ीर को दे दी है तो फ़रमायाः हे प्रभु! मेरे भाई मूसा ने तुझसे प्रार्थना की कि उनके मन को विस्तृत कर दे, कामों को उनके लिए सरल बना दे और उनकी ज़बान की लड़खड़ाहट को दूर कर दे ताकि लोग उनकी बातों को समझें। उन्होंने प्रार्थना की कि उनके भाई हारून को उनका वज़ीर व सहायक बना दे और उनके माध्यम से उनकी शक्ति बढ़ा दे और उनके कामों में उन्हें भागीदार बनादे। हे प्रभु! मैं मोहम्मद तेरा दूत हूं, मेरे मन को विस्तृत कर दे और कामों को मेरे लिए सरल कर दे, मेरे परिवार से अली को मेरा वज़ीर बना दे ताकि उनके माध्यम से मुझे शक्ति मिले।

अभी पैग़म्बरे इस्लाम की यह प्रार्थना पूरी भी नहीं हुयी थी कि जिबरईल नामक फ़रिश्ता सूरए माएदा की आयत क्रमांक 55 लेकर पैग़म्बरे इस्लाम के पास उतरे।

वास्तव में ग़दीर का सबसे महत्वपूर्ण आयाम हज़रत अली के स्वामी बनने का विषय है। इस्लामी समाज में स्वामित्व का अधिकार ईश्वर से विशेष है और फिर ईश्वर से पैग़म्बरे इस्लाम तक और फिर उनसे मोमिनो के स्वामी तक स्थानांतरित होता है। इसलिए ईश्वर की ओर से हज़रत अली अलैहिस्सलाम को स्वामित्व व मार्गदर्शन का अधिकार दिया जाना उनके उच्च स्थान का सूचक है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई के शब्दों मेंः बहुत गहरे अर्थ से संपन्न ग़दीर और पैग़म्बरे इस्लाम के हाथों हज़रत अली अलैहिस्सलाम की मोमिनों के स्वामी के रूप में नियुक्ति का सार यह है कि पूरी ज़मीन पर एक सुखी व न्यायसंगत समाज की स्थापना तक मनुष्यों की शिक्षा व प्रशिक्षण जारी रहे। सभी ईश्वरीय दूतों को भेजने का उद्देश्य मनुष्य की शिक्षा व प्रशिक्षण रहा है। और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने इस अभियान को जारी रखने व अमर बनाने के लिए मोमिनों के सरदार को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया ताकि इस्लामी शासन व पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र उत्तराधिकारियों के हाथों मनुष्य का नियमित प्रशिक्षण होता रहे और मानव समाज अपने वास्तविक जीवन के आरंभिक बिन्दु तक पहुंच जाए।

इसलिए जो व्यक्ति समाज का स्वामी होना चाहता है, दूसरों का मार्गदर्शन व विकास करना चाहता है वह स्वंय पवित्र मानवीय मूल्यों से सुसज्जित हो। उदाहरण स्वरूप न्याय, लोगों के स्वामी बनने की शर्तों में है। एक न्यायी मार्गदर्शन की चिंता इसलिए है कि समाज से भेदभाव समाप्त हो जाए और लोगों का कल्याण की ओर मार्गदर्शन हो।

यदि सामाजिक मामलों की बागडोर संभालने वाला व्यक्ति अत्याचार व भेदभाव करने लगे तो लोगों के स्वामी होने का अधिकार उससे छिन जाएगा। दूसरे शब्दों में इस्लाम में विलायत से अभिप्राय ऐसे सदाचारी, वीर, संयमी व बुद्धिमान मनुष्यों द्वारा शासन से है जो मानव शक्ति व संसाधन को सत्य की ओर ले जाने के लिए प्रयोग करे। वह व्यक्ति लोगों का स्वामी व मार्गदर्शक है जो समाज की मूल नीति की इस्लामी शिक्षा के आधार पर व्याख्या करे, धार्मिक शिक्षाओं में मौजूद राजनैतिक व सामाजिक विषयों को आपस में समन्वित कर लोगों के जीवन में व्यवहारिक बनाए। चूंकि जटिल समस्याएं मामलों की प्रगति में रुकावट का कारण बनती हैं इसलिए लोगों के मार्गदर्शक व स्वामी को चाहिए कि समाधान पेश करे और समाज से अन्याय व अत्याचार को समाप्त करे क्योंकि उसके हाथ में निर्णय लेने का अधिकार है और वह सही निर्णय लेने की योग्यता रखता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इन विशेषताओं से संपन्न थे इसलिए ईश्वर ने उन्हें लोगों का स्वामी व अभिभावक नियुक्त किया और इस नियुक्ति से मानव इतिहास में नया अध्याय जुड़ गया।

इसलिए ग़दीर की एक आस्था के रूप में पहचान बहुत आवश्यक है। पवित्र क़ुरआन के सूरए माएदा की आयत क्रमांक तीन में ईश्वर ग़दीर की चार बड़ी महत्वपूर्ण विशेषताओं की ओर संकेत करते हुए कहता हैः आज काफ़िर तुम्हारे धर्म को क्षति पहुंचाने की ओर से निराश हो गए। आज तुम्हरे धर्म को हमने संपूर्ण किया। अपनी नेमतें तुम पर पूरी कीं और इस्लाम के तुम्हारा धर्म होने से प्रसन्न हूं। पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ग़दीर के महत्व के संबंध में कहते हैः ईश्वर की सौगंध यदि लोग ग़दीर दिवस के महत्व को पहचानते तो दिन में दस बार फ़रिश्ते उनसे हाथ मिलाते।(एरिब डाट आई आर

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