जाने आख़िर क्यों इस्राईल फ़िलिस्तीनियों की हत्या करता रहता है

फ़िलिस्तीनियों पर इस्राईल द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों और जनसंहारों की ख़बरें हेडलाइन में आती रहती है, अब तो इसको आम बात समझ के न सही से देखा जाता है और न मीडिया दिखाती है लेकिन प्रश्न यह है कि इस्राईल आख़िर क्यों फ़िलिस्तीनियों की हत्या करता रहता है

बुशरा अलवी

फ़िलिस्तीनियों पर जब तब इस्राईल की तरफ़ के किए जाने वाले अत्याचारों और जनसंहारों की ख़बरें हेडलाइन में आती रहती है, अब तो लोग इसको आम बात समझ के न सही से देखते हैं और न मीडिया दिखाती है, लेकिन प्रश्न यह है कि इस्राईल का ज़ायोनी शासन आख़िर क्यों फ़िलिस्तीनियों की हत्या करता रहता है।

इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमको यहूदियों की प्रवृति को समझना होगा, इस संसार में यहूदी एक ऐसी क़ौम है जिसका विश्वास है कि जो कुछ है सब कुछ इस दुनिया में ही है यानी वह महाप्रलय, क़यामत या मरने के बाद के जीवन पर विश्वास नहीं रखते हैं, इसलिए यह सीधी सी बात है कि वह अपनी इस दुनिया को आबाद करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं अब चाहे वह किसी की हत्या करना या फिर घर उजाड़ना ही क्यों न हो।

यहूदियों की दूसरी सबसे ख़ास बात यह है कि पूरे संसार में इन लोगों से अधिक कट्टरपंधी और जातिवादी कोई दूसरा धर्म नहीं है। यहूदियों का विश्वास है कि पूरे संसार में यहूदी केवल वही है जिसके माँ बाप दोनो यहूदी हो, यानी एक यहूदी की औलाद को ही यहूदी बनने का हक़ है, और यही कारण है कि आपको पूरी दुनिया में यहूदियों का कोई धर्म प्रचारक नहीं दिखाई देगा, इनके विश्वासों के अनुसार धर्म परिवर्तन के माध्यम से कोई यहूदी नहीं बन सकता है, यह और बात है कि अपना यह विश्वास यह लोग दुनिया के सामने प्रकट नहीं करते हैं।

जहां यहूदी यह मानते हैं कि कोई दूसरा यहूदी नहीं बन सकता है वहीं उनको अत्याचारों और ज़ुल्म के लिए प्रेरित करने वाला एक और विश्वास उनके धर्म में पाया जाता है और वह यह है कि सारी दुनिया के लोग यहूदियों के लिए नौकर और उनके सामने जानवारों की हैसियत रखते हैं और करेला ऊपर से नीच चढ़ा यह कि ख़ुद उनकी पवित्र किताब में लोगों की हत्या के लिए प्रेरित किया जा रहा है!

“और मैं लोगों को तुम्हारी मीरास में दे दूँगा और ज़मीन को तुम्हारी सम्पत्ती बना दूँगा, उनको लोहे के डंडे को क़त्ल करोगे और कूज़े की भाति उनको तोड़ देगे”।

“गोश्त खाओ और ख़ून पियो, लोगों का गोश्त खाओगे और दुनिया के बड़े लोगों (बादशाहों) का ख़ून पियोगे”।

“इन लोगों को ज़िब्ह करने के लिए भेड़ की भाति बाहर खींच लो और इनकी हत्या कर दो”

यह यहूदियों की पवित्र पुस्तक की कुछ झलकियां है जो आपके सामने पेश की हैं। आब ज़ाहिर सी बात है कि जिस कौम की पवित्र पुस्तक यह कह रही हो वह तो अत्याचार करेगी है।

यहूदियों की एक और ख़ासियत यह है कि वह दूसरों के एहसानों को बहुत आसानी के साथ भुला देते हैं जैसा कि क़ुरआन में आया है कि जब हज़रत मूसा ने अपनी क़ौम (यहूदियों) को अल्लाह की नेमतें याद दिलाईं और बताया कि याद करो कि फ़िरऔन किस प्रकार तुम्हारे बेटों की हत्या कर देता था और तुम्हारी महिलाओं को कनीज़ बना लिया करता था.... लेकिन यह यहूदी जैसे ही नील नदी के इस पार पहुँचे उन लोगों के एहसानों को भुला दिया जिन्होंने उनको वहाँ तक सुरक्षित पहुँचाया था, यहां तक की नदी पार करते समय अल्लाह की तरफ़ से मिलने वाली नेमतों तक को भुला दिया, और यही चीज़ हमको आज के यहूदियों में देखने को मिलती है कि जब यह हिटलर हिटलर चिल्लाते हुए फ़िलिस्तीन पहुँचते हैं तो वह के मुसलमान उन पर ऐहसान करते हुए रहने का स्थान देते हैं, खाने को ख़ाना देते हैं, पहनने को कपड़े देते हैं, लेकिन कुछ समय बाद यही यहूदी हैं और फ़िलिस्तीन के बेचारे मुसलमान!

यह तो थी यहूदियों की प्रवृति लेकिन एक प्रश्न अब भी बाक़ी है कि वह फ़िलिस्तीन के लोगों पर ही क्यों अत्याचार कर रहे हैं किसी दूसरे पर क्यों नहीं?

अगर हम यह सोंचते हैं कि यहूदी केवल फ़िलिस्तीन के लोगों पर ज़ुल्म कर रहे हैं तो यह हमारी ख़ुश फ़हमी है, ऐसा नहीं है बल्कि इतिहास में इन लोगों ने ईसाईयों का भी क़त्लेआम किया है, हां यह और बात है कि यह मुसलमानों से ख़ास दुश्मनी रखते हैं, और मुसलमानों से इनकी यह शत्रुता ही है जिसके कारण इस्राईल को मुसलिम देशों के बीच में बसाया गया ताकि मुसलमान कभी चैन से न जी सके, इसके लिए होलोकास्ट जैसी बे बुनियाद कहानी को बहाना बनाया गया।

पवित्र क़ुरआन के अनुसार यहूदी मुसलमानों के सबसे बड़े शत्रु है, (لَتَجِدَنَّ أَشَدَّ النّاسِ عَداوَةً لِلَّذینَ آمَنُوا الْیهُودَ وَ الَّذینَ أَشْرَکُوا؛مائده/82) और मुसलमानों पर ज़ायोनी अत्याचारों का सबसे बड़ा कारण भी यही है क्योंकि इस्लाम के आने से पहले यहूदी अपने आप को सबसे श्रेष्ठ क़ौम समझते थे, लेकिन इस्लाम ने उनका यह रुत्बा छीन लिया।

यहूदियों द्वारा फ़िलिस्तीन और लेबनान की मुसलमान जनता या फिर दाइश और जिबहतुन्नुस्रा फ़्रंट के माध्यम से सीरिया और इराक़ की मुसलमान जनता के जनसंहार की एक और बड़ी वजह अक़ीदों और विश्वासों का टकराव है, एक तरफ़ जहां यहूदियों का दीन ग़ैर यहूदी इंसानों को जानवर मानता है, उनकी हत्या के लिए प्रेरित करता है, उनकी महिलाओं को दासी बनाने की सीख देता है वहीं दूसरी तरफ़ इस्लाम, इंसानों को अल्लाह का बंदा मानता है, उनका सम्मान करना सिखाता है, आज़ादी और स्वतंत्रता की सीख देता है.... इस संसार में केवल एक इस्लाम ही है जो हर विभाग में यहूदियों की विचारधारा के विरुद्ध खड़ा हुआ है तो अब ज़ाहिर सी बात है कि इस्लाम और मुसलमान ही यहूदियों और ज़ायोनी शासन से सबसे बड़े शत्रु भी बनते हैं , तो ज़ाहिर सी बात है मुसलमानों से शत्रुता तो पैदा होगी ही, और इतिहास इस शत्रुता का गवाह रहा है कि उन्होंने मुसलमानों से युद्ध भी किए और जब उसमें जीत न सके तो पैग़म्बर की हत्या की साज़िशें कीं, लेकिन जब अल्लाह के रसूल के ख़िलाफ़ उनकी साज़िशें कामयाब न हो सकीं तो उन्होंने अपने दिल में मुसलमानों के विरुद्ध कीना धर लिया, और यह कीना आज भी जब तब निकलता रहता है कभी फ़िलिस्तीन में बेगुनाह बच्चों और औरतों की हत्या की सूरत में तो कभी लेबनान पर फौजी चढ़ाई की सूरत में, लेकिन यह ख़ुदा का वादा है कि वह अपने दीन को सारे दीनों पर ग़लबा देगा चाहे मुशरेकीन को यह बात ना गवार ही क्यों न गुज़रे।

और यह दुश्मनी कभी ख़त्म होने वाली नहीं है मगर यह कि इस संसार से य तो यहूदियत समाप्त हो जाए या फ़िर मुसलमान उनके दीन की पैरवी करने लगें जैसा कि क़ुरआन कहता है

وَ لَنْ تَرْضی عَنْکَ الْیهُودُ وَ لاَ النَّصاری حَتّی تَتَّبِعَ مِلَّتَهُمْ قُلْ إِنَّ هُدَی اللّهِ هُوَ الْهُدی؛ بقره/120

इस्लामी दुनिया का यह कैंसर ज़ायोनी शासन चाहे कितने भी जुल्म कर ले लेकिन इसको समाप्त हो जाना है और इस्लामी क्रांति के लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई के अनुसारः इस्राईल समाप्त हो जाएगा।

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