اهل بیت علیهم السلام

ग़दीर व वहदते इस्लामी
चूँकि मुसलमानों के बहुत से मुशतरक दुश्मन हैं जो चाहते हैं इस्लाम और मुसलमानों को नीस्त व नाबूद कर दें लिहाज़ा हमें चाहिये कि सब मुत्तहिद होकर इस्लाम के अरकान और मुसलमानों की हिफ़ाज़त की कोशिश करें, लेकिन इसके यह मायना नही है कि दूसरी ज़िम्मेदारियों...
ग़दीर इस्लामी एकता का आधार
असरे हाज़िर में बाज़ लोग ग़दीर और हज़रते अली अलैहिस्सलाम की इमामत की गुफ़्तुगू (चूँकि इसको बहुत ज़माना गुज़र चुका है) को बेफ़ायदा बल्कि नुक़सानदेह समझते हैं, क्योकि यह एक तारीखी वाक़ेया है जिसको सदियाँ गुज़र चुकी हैं। यह गुफ़्तुगू करना कि पैग़म्बरे इस्लाम
हदीसे ग़दीर के 110 रावी
पैगम्बरे इस्लाम स. ने अमीरूल मोमेनीन अली अ. को अपना जानशीन बनाने के बाद फ़रमाया “ कि ऐ लोगो अभी अभी वही लाने वाला फ़रिश्ता मुझ पर नाज़िल हुआ और यह आयत लाया कि (( अलयौम अकमलतु लकुम दीनाकुम व अतमम्तु अलैकुम नेअमती व रज़ीतु लकुमुल इस्लामा दीना)
ईदे ग़दीर का महत्व
ग़दीर का दिन वह महान दिन है जिसमें सभी शिया, हर मुसलान बल्कि सच्चाई को चाहने वाला हर व्यक्ति प्रसन्न होता है यह वही दिन है जिस दिन रसूले इस्लाम (स) ने जह से पलटते समय ग़दीर के मैदान में इस्लामी दुनिया के सबसे बड़ा और महत्व पूर्ण संदेश दिया यही वह दिन है ज
ग़दीर के दिन के आमाल
यह दिन, ख़़ुशी और प्रसन्नता का दिन है और इस दिन का रोज़ा ख़ुदा के शुक्र का रोज़ा है, इसलिए इस दिन का रोज़ा 60 हराम महीनों (हराम महीने ज़ीक़ादा, ज़िलहिज, मोहर्रम और रजब) के रोज़े के बराबर है, और जो भी इस दिन किसी भी समय इस नमाज़ के पढ़ने का बेहतरीन समय ज़ो
अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) की संक्षिप्त जीवनी
अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) की संक्षिप्त जीवनी
पैग़म्बरे इस्लाम (स) की शख़्सियत शिया सुन्नी एकता का केन्द्र
एकता व एकजुटता उन सिद्धांतों और नियमों का भाग है जिन पर पैग़म्बरे इस्लाम ने हमेशा बल दिया। पैग़म्बरे इस्लाम ने इसके लिए बड़े प्रयत्न भी किए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने सामाजिक खाइयों को एकता की भावना से भरा और दूरियो
इमाम अली (अ) की श्रेष्ठता सिद्ध करती आयतें व हदीसें
सुयूती इब्ने अब्बास से रिवायत करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयत नाज़िल हुई तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आपके वह रिश्तेदार कौन है जिनकी मुहब्बत हम लोगों पर वाजिब है? तो आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया: अली, फ़ातेमा और उनके दोनो बेटे
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मशहद मे है। जहाँ पर हर समय लाखो श्रद्धालु आपकी समाधि के दर्शन व सलाम हेतू एकत्रित रहते हैं। यह शहर वर्तमान समय मे ईरान मे स्थित है।
आयतुल्लाह ख़ामेनाई की निगाह में ग़दीर का महत्व
ग़दीर यानी रसूलल्लाह (स.अ.) की तरफ़ से अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ. को मुसलमानों का वली बनाने का विषय बहुत अहेम विषय है। इसके द्वारा रसूलल्लाह (स.अ.) नें मुसलमानों के भविष्य के लिये एक सिस्टम का परिचय किया है जिसे मुस्लिम सुसाइटी का मैनेजमेंट सिस्टम कह सकत
ग़दीर में पैगम्बरे इस्लाम का खुत्बा
अल्लाह मेरा मौला है और मैं मोमेनीन का मौला हूँ और मैं उनके नफ़सों पर उनसे ज़्यादा हक़्क़े तसर्रुफ़ रखता हूँ। हाँ ऐ लोगो “मनकुन्तो मौलाहु फ़हाज़ा अलीयुन मौलाहु अल्लाहुम्मावालि मन वालाहु व आदि मन आदाहु व अहिब्बा मन अहिब्बहु व अबग़िज़ मन अबग़ज़हु व अनसुर मन
ग़दीर के ख़ुत्बे का सारांश
जिबरईल (अ) तीन मरतबा मेरे पास सलाम व हुक्मे ख़ुदा लेकर नाज़िल हुए कि मैं इसी मक़ाम पर ठहर कर हर सियाह व सफ़ेद को यह इत्तेला दे दूँ कि अली बिन अबी तालिब मेरे भाई, वसी, जानशीन और मेरे बाद इमाम हैं
इनसे मुबाहेला ईसाईयों का विनाश कर देगा
जब हेजाज़ में इस्लाम का उदय हुआ तो उस समय केवल यही क्षेत्र एसा था जहां के लोगों ने मूर्ति पूजा छोड़कर ईसाई धर्म गले लगाया था। सन दस हिजरी क़मरी में पैग़म्बरे इस्लाम ने इस क्षेत्र के लोगों को...
आय -ए- मुबाहेला और हज़रते फ़ातेमा ज़हरा (स) से तवस्सुल
जब भी (ईसाईयों के बारे में) उस ज्ञान एवं जानकारी के बाद जो तुम तक पहुंची है (फिर भी) जो लोग तुमसे हुज्जत करें उनसे कह दीजिएः आओं हम अपने बेटों को बुलाएं, तुम अपने बेटों को, हम अपनी औरतों को लाएं और तुम अपनी औरतों को, हम अपने नफ़्सों को लाएं तुम अपने नफ़्स
वेद और पुराण में पैग़म्बर के आने की भविष्यवाणी
मुहम्मद (स) अरब में छठी शताब्दी में पैदा हुए, मगर इससे बहुत पहले उनके आगमन की भविष्यवाणी वेदों में की गई हैं। महाऋषि व्यास के अठारह पुराणों में से एक पुराण ‘भविष्य पुराण’ हैं। उसका एक श्लोक यह हैं:
इमाम मेहदी (अ) की अदालत और इन्साफ़
कुछ रिवायतों में मिलता है कि सबसे पहला ज़ुल्म कुफ़्र व शिर्क है, जब हज़रत इमाम महदी (अ) की अदालत कायम होगी तो इस तरह का ज़ुल्म का दुनिया से नाम व निशान मिट जायेगा। इस बारे में अबु बसीर की रिवायत है...
इमाम हुसैन (अ) कौन थे?
आपका जन्म 3 शाबान, सन 4 हिजरी, 8 जनवरी 626 ईस्वी को पवित्र शहर मदीना, सऊदी अरब) में हुआ था और आपकी शहादत 10 मुहर्रम 61 हिजरी (करबला, इराक) 10 अक्टूबर 680 ई. में वाके हुई!
इन कारणों से लड़ी गई कर्बला की जंग
जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि...
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत
ज़ीक़ादा का अन्तिम दिन पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के पौत्र इमाम जवाद की शहादत का दिन है। सन 220 हिजरी क़मरी को आज ही के दिन अब्बासी शासक “मोतसिम” के आदेश पर इमाम मुहम्मद बिन अली को शहीद कर दिया गया।

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