आयतुल्लाह ख़ामेनाई की निगाह में ग़दीर का महत्व

ग़दीर यानी रसूलल्लाह (स.अ.) की तरफ़ से अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ. को मुसलमानों का वली बनाने का विषय बहुत अहेम विषय है। इसके द्वारा रसूलल्लाह (स.अ.) नें मुसलमानों के भविष्य के लिये एक सिस्टम का परिचय किया है जिसे मुस्लिम सुसाइटी का मैनेजमेंट सिस्टम कह सकत

सबसे बड़ी ईद

हमारे यहां ईदे ग़दीर के दिन को "عید اللہ الاکبر" यानी सबसे बड़ी ईद कहा जाता है। इस ईद को सबसे बड़ी ईद इस लिये कहा जाता है क्योंकि इसका संबंध इमामत और विलायत से है क्योंकि विलायत और इमामत ही की छाया तले इस्लाम के सारे अहकाम और क़ानून लागू हो सकते हैं । विलायत का क्या मतलब है? विलायत का मतलब यह है कि अल्लाह तआला की तरफ़ से इन्सानों के लिये जो क़ानून आया है उसे लागू करने वाला भी अल्लाह ही की तरफ़ से निर्धारित किया गया है और सारे मुसलमानों पर उसकी बात मानना और उसे अपना वली (गार्जियन) मानना वाजिब और ज़रूरी है। अगर लोग इस्लाम पर ईमान रखते हों, उसके सिद्धांतों को मानते हों, उसके क़ानून को भी दिल से मानते हों लेकिन हुकूमत दूसरे लोगों के हाथ में हो तो वहाँ क़ुरआन और इस्लाम का क़ानून लागू नहीं हो सकता जैसे कल बोसनिया मे और आज फ़िलिस्तीन में हम देख रहे हैं कि लोग इस्लाम के क़ानून पर ईमान रखते हैं लेकिन उस पर अमल नहीं कर सकते। स्वंय हमारे ईरान में भी सालों तक ऐसी सिचुवेशन रही है। अगर हुकूमत थोड़ा बहुत इन्साफ़ करेगी तो केवल इस हद तक कि अपने घर में या मुहल्ले में मुसलमान अपने अक़ीदों, उसूलों और सिद्धांतों के अनुसार ज़िन्दगी बिताएं, लेकिन फिर भी वहां सुसाईटी में इस्लाम नहीं होगा।

अगर गदीर से मुँह न मोड़ा गया होता

आज की दुनिया में लोग भूखे हैं, भेद भाव बहुत ज़्यादा है, किसी एक जगह नहीं बल्कि हर जगह है, ग़ुंडा गर्दी है, एक इंसान दूसरे इंसान को ज़बरदस्ती अपना ग़ुलाम बनाए हुए है। वही चीज़ें जो आज से चार हज़ार साल पहले, दो हज़ार साल पहले थीं, आज भी हैं केवल शक्ल बदल गई, रंग बदल गया है, नाम बदल दिया गया है। ग़दीर इतिहास का एक मोड़ था जो इंसान को इन चीज़ों से निकाल कर सही रास्ते पर ला सकता था। वह सिस्टम जिसकी नींव रसूलल्लाह नें डाली थी और अपने बाद अपने ख़लीफ़ा (हज़रत अली अ.) को निर्धारित कर के उसकी सुरक्षा का इन्तेज़ाम किया था लेकिन सब ने उस से मुँह मोड़ लिया, अगर उस से मुँह न मोड़ा गया होता तो आज मुसलमानों के हालात इतने ख़राब न होते। यह है ग़दीर। रसूलल्लाह (स.अ.) के बाद इमाम हसन असकरी अ. की शहादत तक यानी 250 सालों के ज़माने में सभी इमामों नें यह कोशिश की कि मुसलमानों को उसी रास्ते पर ले आयें जिस पर वह रसूलल्लाह (स.अ.) के ज़माने में थे और जो रास्ता रसूल (स.) नें अपने बाद मुसलमानों के लिये बताया था लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अलबत्ता आज हमें मौक़ा मिला है किसी हद तक इस रास्ते को आगे बढ़ाने का, इंशाअल्लाह अगर अल्लाह तआला तौफ़ीक़ (अवसर) दे तो अच्छी तरह आगे बढ़ेगा।

ग़दीर मुसलमानों में झगड़े की वजह नहीं बनना चाहिये

शहीद उस्ताद मुतह्हरी (र.ह) का एक आर्टिकेल है “ग़दीर और मुसलमानों में एकता” इस आर्टिकेल में उन्होंने यह बात कहने की कोशिश की है कि ग़दीर को लेकर किसी तरह मुसलमानों के दिलों को एक दूसरे से क़रीब किया जा सकता है। मरहूम अल्लामा अमीनी (र.अ) नें भी किताब, अलग़दीर में ग़दीर के बारे में शियों के अक़ीदे को साबित किया है लेकिन इस किताब का अंदाज़, बयान, तरीक़ा, ढंग ऐसा है कि मुसलमानों को अपनी तरफ़ खींचता है। मिस्र, सीरिया और दुनिया के दूसरे मुसलमान मुल्कों के कुछ उल्मा नें इस किताब के बारे में जो विचार पेश किये हैं अगर आप उसे देखें तो आपको अंदाज़ा होगा कि इस किताब नें मुसलमानों पर कितना असर डाला है। इस लिये हमें ख़्याल रखना होगा कि हम ग़दीर को उस ढ़ंग से बयान न करें कि मुसलमानों को इस से दूर कर दे। आज दुनिया में मुसलमानों की बहुत बड़ी संख्या हमारे मज़हब पर ईमान रखती है। आज ईरान, इराक़, लेबनान और दुनिया के दूसरे मुल्कों में करोड़ो लोग हैं जो स्वंय को अली अ. और अहलेबैत (अ.) का चाहने वाला कहते हैं और उन्हे इस बात पर गर्व भी है। इस लिये हम शियों को इस तरह अपने अक़ीदों, ग़दीर और विलायत का विषय इस तरह पेश करना चाहिये कि जो मुसलमान हम से नज़दीक हैं वह दूर न हो जाएं। हमें अपने अक़ीदे को बयान करना चाहिये लेकिन इसके बयान करने में हम जो ग़लतियां करते हैं उन्हे दूर करना चाहिये।

ग़दीर यानी इस्लामी समाज को आगे बढ़ाने का सही सिस्टम

ग़दीर यानी रसूलल्लाह (स.अ.) की तरफ़ से अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ. को मुसलमानों का वली बनाने का विषय बहुत अहेम विषय है। इसके द्वारा रसूलल्लाह (स.अ.) नें मुसलमानों के भविष्य के लिये एक सिस्टम का परिचय किया है जिसे मुस्लिम सुसाइटी का मैनेजमेंट सिस्टम कह सकते हैं। इस्लाम की नज़र में इसकी बहुत अहमियत है। इस्लाम मुसलमानों को उनके हाल पर नहीं छोड़ना चाहता कि वह जिस तरह चाहें ज़िन्दगी बिताएं बल्कि उसके लिये एक सिस्टम है जिसे ग़दीर में रसूलल्लाह (स.अ) नें बयान किया जिसे हम इमामत व विलायत का सिस्टम कहते हैं। रसूलल्लाह (स.अ.) नें अपने बाद अली अ. को इस सिस्टम का हेड बनाया जो सारे सहाबा के बीच तक़वा, इल्म, बहादुरी, क़ुरबानी और इन्साफ़ करने में सब से आगे थे इससे यह भी मालूम होता है कि मुसलमानों का शासक और उनका इमाम किस तरह का इंसान हो सकता है। जो लोग हज़रत अली अ. को रसूलल्लाह (स.अ।) के फ़ौरन बाद (बिला फ़स्ल) उनका ख़लीफ़ा नहीं भी मानते हैं वह भी इस बात को मानते हैं कि हज़रत अली तक़वा, इल्म, बहादुरी, बलिदान और इन्साफ़ और न्याय करने में सब से आगे थे, जो मुसलमान हज़रत अली अ. को जानते हैं वह इन चीज़ों को मानते हैं। इस से समझ में आता है कि इस्लाम और रसूले इस्लाम (स.) की निगाह में इस्लामी समाज को कैसा होना चाहिये।

ईदे ग़दीर क़ौमी और मज़हबी ईद

ईदे ग़दीर हमारी (ईरानियों की) क़ौमी ईद भी है क्योंकि हमारी क़ौम इसी अक़ीदे को मानती है जो ग़दीर से जुड़ा है यानी इमामत व विलायत के सिस्टम पर ईमान रखती है और इस क़ौम की पहचान भी यही अक़ीदा है। दुश्मन की एक कोशिश यह है कि हमारी इस पहचान को हम से छीन ले। लेकिन हमारी और आप सब की ज़िम्मेदारी है कि हम अपनी इस पहचान को हमेंशा बचा कर रखें (और इस बात पर गर्व करें कि हमारा रिश्ता विलायत से है, हमारा रिश्ता हज़रत अली (अ.) और अहलेबैत (अ.) से है) इस लिये ग़दीर हमारी क़ौमी ईद भी है और मज़हबी ईद भी है।

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