اهل بیت علیهم السلام

आशूर की रात को इमाम हुसैन के एक साथी "मोहम्मद बिन बशीर हज़रमी" को सूचना दी गई की तुम्हारा बेटा शत्रु के सेना के हाथों "रय" शहर की सीमा पर गिरफ़्तार हो गया है उन्होंने उत्तर में कहाः उसपर और मुझ पर पड़ी इस मुसीबत के सवाब की मैं ईश्वर से आशा रखता हूँ और मुझ
नवीं मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
शिम्र इमाम हुसैन (अ) के ख़ैमों के पास आया और उसने हज़रत उम्मुल बनीन के बेटो हज़रत अब्बास, अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान को बुलाया, यह लोग बाहर आये तो उसने कहा कि मैंने तुम लोगों के लिये इबने ज़ियाद के अमान ले ली है। सभी ने कहाः ईश्वर तुम्हारी अमान और...
इमाम ज़माना की नज़र में हज़रत अब्बास का मक़ाम
सलाम हो अबुल फ़ज़्ल पर, अब्बास अमीरुल मोमिनीन के बेटे, भाई से सबसे बड़े हमदर्द जिन्होंने अपनी जान उन पर क़ुरबान कर दी, और गुज़रे हुए कल (दुनिया) से आने वाले कल (आख़ेरत) के लिये लाभ उठाया, वह जो भाई पर फ़िदा होने वाला था, और जिसने उनकी सुरक्षा की और...
आठवी मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
उमरे साद ने सर झुका लिया और कहाः हे हमदानी मैं जानता हूँ कि इस ख़ानदान को दुख देना हराम है, मैं एक बहुत ही भावनात्मक मोड़ पर हूँ मैं नहीं जानता कि मुझे क्या करना चाहिए, रय की हुकूमत को छोड़ दूँ? वह हुकूमत जिसके शौक़ में मैं जल रहा हूँ...
 सातवीं मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
मोहर्रम की सातवीं तारीख़ को "उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद" ने एक पत्र लिखकर "उमरे साद" को आदेश दिया कि वह अपने सिपाहियों के लेकर जाए और हुसैन एवं फ़ुरात के बानी के बीच रुकावट बनके पानीं को हुसैन और उनके बच्चों तक पहुंचने से रोके और, सचेत रहे कि किसी भी अवस्था मे
छठी मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
बीब रात के अंधेरे में बनी असद के पास पहुँचे और फ़रमायाः मैं तुम्हारे लिये बेहतरीन उपहार लाया हूँ, मैं तुम को अल्लाह के रसूल के बेटे की सहायता की निमंत्रण देता हूं, उनके पास वह साथी हैं जिनमें से हर एक हज़ार लड़ाकों से बेहतर है और वह कभी भी उनके अकेला नहीं
इमाम हुसैन (अ.) कौन थे
सभी मुसलमान इस बात पर सहमत हैं कि कर्बला के महान बलिदान ने इस्लाम धर्म को विलुप्त होने से बचा लिया! हालांकि, कुछ मुसलमान इस्लाम की इस व्याख्या से असहमत हैं और कहते हैं की इस्लाम में कलमा के "ला इलाहा ईल-लल्लाह" के सिवा कुछ नहीं है!
पाँचवी मोहर्रम हुसैनी काफ़िले के साथ
चार मोहर्रम को कूफ़े की मस्जिद में इब्ने जियाद के ख़ुत्बे का असर यह हुआ की बहुत से लोग इमाम हुसैन (अ.) से युद्ध करने के लिये तैयार हो गए और पाँचवी मोहर्रम को उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने “शबस बिन रबई” (1) नामक एक व्यक्ति को 1000 की सेना के साथ करबला...
चौथी मोहर्रम हुसैनी क़ाफिले के साथ
“हे लोगों! तुम लोगों ने अबू सुफ़ियान के ख़ानदान को आज़माया और जैसा तुम चाहते थे उनको वैसा पाया! यज़ीद तो तुम पहचानते हो वह अच्छे व्यवहार वाला, नेक और अपने नीचे काम करने वालों पर एहसान करने वाला और उनकी अताएं बजा हैं! और उनका बाप भी ऐसा ही था! अब यज़ीद ने
तीन मोहर्रम हुसैनी क़ाफिले के साथ
आज के ही दिन उमरे सअद 6 या 9 हज़ार की सेना के साथ पैग़म्बर के नवासे हुसैन इब्ने अली की हत्या के लिये कर्बला पहुँचता है, और आपके खैमे के सामने कैंप लगाता है (2) कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उमरे सअद के कबीले वाले (बनी ज़ोहरा) उसके पास आते हैं और उसके क़सम
जाने क्या है और क्यों मनाया जाता है मोहर्रम
जब यज़ीद तख़्ते हुकूमत पर बैठता है तो वह मदीने के गवर्नर वलीद को पत्र लिखता है कि इमाम हुसैन से मेरे लिए बैअत लो या फिर उनकी हत्या कर दो, लेकिन इमाम हुसैन किसी भी तरह यज़ीद की बैअत करने के लिए तैयार नहीं होते हैं और कहते हैं कि मेरे जैसे तुझ जैसे की बैअत
इमाम हुसैन पर रोने का सवाब
हुसैन पर रोना क़ब्र में सुकून, मौत के समय ख़ुशहाली, हश्र में कब्र से निकलते समय कपड़ों के साथ और खुशी से निकलने का कारण बनता है वह ख़ुश होगा और फ़रिश्ते उसको जन्नत और सवाब की ख़ुश्ख़बरी देंगे।
दूसरी मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
प्रसिद्ध यह है कि इमाम हुसैन का काफ़िला मदीने से मक्के होता हुआ दूसरी मुहर्रम को करबला की तपती हुई रेती पर पहुँचा है आपके साथ इस काफ़िले में आपके अहले हरम, बच्चे और आपके साथी भी थे।
आ गया आँसुओं का महीना
वास्तव में करबला की नींव उसी समय पड़ गई थी कि जब शैतान ने आदम से पहली बार ईर्ष्या का आभास किया था और यह प्रतिज्ञा की थी कि वह ईश्वर के बंदों को उसके मार्ग से विचलित करता रहेगा। समय आगे बढ़ता गया। विश्व के प्रत्येक स्थान पर ईश्वर के पैग़म्बर आते रहे
पहली मोहर्रम, हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
अगर तुम मेरी मदद नहीं कर रहे हो तो ख़ुदा से डरो (गुनाह न करो) और उनमें से न हो जाओ जो हमसे जंग करते हैं, ख़ुदा की क़सम जो भी हमारी आवाज़ को सुने और हमारी मदद न करे, उसको चेहरे के बल नर्क में फेंक दिया जाएगा।
मुसहफ़े फ़ातेमा ज़हरा (स.)
अहलेबैत (अ) से नक़्ल होने वाली रिवायतों में से कुछ रिवायतों में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा के मुसहफ़ की बात कही गई है, और एक किताब की आपकी तरफ़ निस्बत दी गई है जैसा कि मोहम्मद बिन मुस्लिम इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत करते हैं:
इमाम हुसैन (अ) के महान इन्सानी गुण
हम शियों का अक़ीदा और विश्वास है कि मासूमीन (अ) हर गुण के उच्चतम बिंदु तक और हर फ़ज़ीलत के कमाल पर पहुँचे हुए हैं, और इस मामले में कोई भी उनके बराबर का नहीं है। लेकिन हर मामूस के युग के विशेष समाजिक हालात इस बात का कारण बने कि एक विशेष गुण उन हालात के आधा
इमाम मूसा काजि़म (अ) का परिचय
इमाम अलैहिस्सलाम ने बंदीगृह से एक चेतावनी भरा पत्र हारून रशीद के महल भेजा और यह उल्लेख किया कि मेरी कठिनाईयों का जैसे एक दिन बीतता है वैसे ही तेरी ख़ुशियों का एक दिन भी समाप्त हो जाता है, इसी प्रकार एक दिन ऐसा आयेगा कि मैं और तू एक ही स्थान पर उपस्थित हो
मुबाहेला और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स)
ऐ पैग़म्बर, ज्ञान के आ जाने के बाद जो लोग तुम से कट हुज्जती करें उनसे कह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ, हम अपने बेटे को बुलायें तुम अपने बेटे को और हम अपनी औरतों को बुलायें और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलाये और तुम अपने जानों को, उसके बाद हम
मुबाहेला अहलेबैत (अ) की सच्चाई का प्रमाण
नजरान क्षेत्र के ईसाईयों के धार्मिक नेता एक चटान के ऊपर जाते हैं। बुढ़ापे के कारण उनके जबड़े और सफ़ेद दाढ़ी के बालों में कंपन है। वह कांपती हुई आवाज़ में कहते हैं कि मेरे विचार में मुबाहिला करना उचित नहीं होगा। यह पांच तेजस्वी चेहरे जिन्हें मैं देख रहा हू

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