इन कारणों से लड़ी गई कर्बला की जंग

जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि...

क्यों हुई कर्बला की जंग

हज़रत इमाम हुसैन (अस) ने सन् (61) हिजरी में यज़ीद के विरूद्ध आंदोलन किया। उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह बयान किया है किः

1. जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम स.अ.) की उम्मत में सुधार के लिये जा रहा हूँ। तथा मेरा मक़सद लोगों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है। मैं अपने नाना पैगम्बर(स.) व अपने बाबा इमाम अली (अस) की सुन्नत पर चलूँगा।

2. एक दूसरे अवसर पर आपने कहा कि ऐ अल्लाह तू जानता है कि हम ने जो कुछ किया वह हुकूमत से दुश्मनी या संसारिक मोहमाया के लिये नहीं किया। बल्कि हमारा उद्देश्य यह है कि तेरे दीन की निशानियों को यथा स्थान पर पहुँचाए। तथा तेरे बंदों के बीच सुधार करें ताकि लोग अत्याचारियों से सुरक्षित रह कर तेरे दीन के सुन्नत व वाजिब आदेशों का पालन कर सके।

3. जब आप की मुलाक़ात हुर इब्ने यज़ीदे रिहायी की सेना से हुई तो, आपने कहा कि ऐ लोगो अगर तुम अल्लाह से डरते हो और हक़ को हक़दार के पास देखना चाहते हो तो यह काम अल्लाह को ख़ुश करने के लिए बहुत अच्छा है। ख़िलाफ़त पद के अन्य अत्याचारी दावेदारों के मुकाबले में हम अहलेबैत सबसे ज़्यादा अधिकार रखते हैं।

4. एक अन्य स्थान पर कहा कि हम अहलेबैत हुकूमत के लिये उन लोगों से ज़्यादा हक़दार हैं जो हुकूमत पर क़ब्ज़ा जमाए हैं। इन चार कथनों में जिन उद्देश्यों की और इशारा किया गया है वह इस तरह हैं,

1. इस्लामी समाज में सुधार।

2. लोगों को अच्छे काम की नसीहत।

3. लोगों को बुरे कामों के करने से रोकना।

4. हज़रत पैगम्बर(स.) और हज़रत इमाम अली (अस) की सुन्नत को किर्यान्वित करना।

5. समाज को शांति व सुरक्षा प्रदान करना।

6. अल्लाह के आदेशो के पालन के लिये रास्ता समतल बनाना।यह सारे उद्देश्य उसी समय हासिल हो सकते हैं जब हुकूमत की बाग़डोर ख़ुद इमाम के हाथो में हो, जो इसके वास्तविक अधिकारी भी हैं। इसलिये इमाम ने ख़ुद कहा भी है कि हुकूमत हम अहलेबैत का अधिकार है न कि हुकूमत कर रहे उन लोगों का जो अत्याचारी हैं।

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