इमाम अली (अ) की श्रेष्ठता सिद्ध करती आयतें व हदीसें

सुयूती इब्ने अब्बास से रिवायत करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयत नाज़िल हुई तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आपके वह रिश्तेदार कौन है जिनकी मुहब्बत हम लोगों पर वाजिब है? तो आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया: अली, फ़ातेमा और उनके दोनो बेटे

1-आयतें

1. इमाम अली (अ) और विलायत

हज़रत अली (अ) की ज़ात वह है जिनकी शान में आयते विलायत नाज़िल हुई है:

إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّـهُ وَرَ‌سُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَ‌اكِعُونَ

(सूरा मायदा आयत 55)

ईमान वालों, बस तुम्हारा वली अल्लाह है और उसका रसूल और वह साहिबाने ईमान जो नमाज़ क़ायम करते हैं और हालते रुकू में ज़कात देते हैं।

सुन्नी व शिया मुफ़स्सेरीन का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि यह आयत हज़रत अली (अ) की शान में नाज़िल हुई है और पचास से ज़्यादा अहले सुन्नत उलामा ने इस हक़ीक़त की तरफ़ इशारा किया है। (दुर्रे मंसूर जिल्द 2 पेज 239)

2. इमाम अली (अ) और मवद्दत

हज़रत अली (अ) उन हज़रात में से हैं जिनकी मवद्दत और मुहब्बत तमाम मुसलमानों पर वाजिब की गई है जैसा कि ख़ुदा वंदे आलम ने फ़रमाया:

قُل لَّا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرً‌ا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْ‌بَىٰ ۗ

(सूरा शूरा आयत 23)

आप कह दीजिए कि मैं तुम से इस तहलीग़े रिसालत का कोई अज्र नही चाहता सिवाए इसके कि मेरे क़राबत दारों से मुहब्बत करो।

सुयूती इब्ने अब्बास से रिवायत करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयत नाज़िल हुई तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आपके वह रिश्तेदार कौन है जिनकी मुहब्बत हम लोगों पर वाजिब है? तो आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया: अली, फ़ातेमा और उनके दोनो बेटे। (अहयाउल मय्यत बे फ़ज़ायले अहले बैत (अ) पेज 239, दुर्रे मंसूर जिल्द 6 पेज 7, जामेउल बयान जिल्द 25 पेज 14, मुसतदरके हाकिम जिल्द 2 पेज 444, मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 199)

नजफ़3. इमाम अली (अ) और आयते ततहीर

हज़रत अली (अ) का शान में आयते ततहीर नाज़िल हुई है चुँनाचे ख़ुदा वंदे आलम का इरशाद है:

إِنَّمَا يُرِ‌يدُ اللَّـهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ الرِّ‌جْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَ‌كُمْ تَطْهِيرً‌ا

(सूरा अहज़ाब आयत 33)

ऐ (पैग़म्बर के) अहले बैत, ख़ुदा तो बस यह चाहता है कि तुम को हर तरह की बुराई से दूर रखे और जो पाक व पाकीज़ा रखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे।

मुस्लिम बिन हुज्जाज अपनी मुसनद के साथ जनाबे आयशा से नक़्ल करते हैं कि रसूले अकरम (स) सुबह के वक़्त अपने हुजरे से इस हाल में निकले कि अपने शानों पर अबा डाले हुए थे, उस मौक़े पर हसन बिन अली (अ) आये, आँ हज़रत (स) ने उनको अबा (केसा) में दाख़िल किया, उसके बाद हुसैन आये और उनको भी चादर में दाख़िल किया, उस मौक़े पर फ़ातेमा दाख़िल हुई तो पैग़म्बर (स) ने उनको भी चादर में दाख़िल कर लिया, उस मौक़े पर अली (अ) आये उनको भी दाख़िल किया और फिर इस आयते शरीफ़ा की तिलावत की।

(إِنَّمَا يُرِ‌يدُ اللَّـهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ الرِّ‌جْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَ‌كُمْ تَطْهِيرً‌ا)

(सही मुस्लिम जिल्द 2 पेज 331)

4. इमाम अली (अ) और शबे हिजरत

हज़रत अली (अ) उस शख्सीयत का नाम है जो शबे हिजरत पैग़म्बरे अकरम (स) के बिस्तर पर सोए और उनकी शान में यह आयते शरीफ़ा नाज़िल हुई:

 وَمِنَ النَّاسِ مَن يَشْرِ‌ي نَفْسَهُ ابْتِغَاءَ مَرْ‌ضَاتِ اللَّـهِ ۗ وَاللَّـهُ رَ‌ءُوفٌ بِالْعِبَادِ

(सूरा बक़रा आयत 207)

लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिये अपनी जान तक बेच डालते हैं और अल्लाह ऐसे वंदों पर बड़ा ही शफ़क़त वाला और मेहरबान है।

इब्ने अब्बास कहते हैं: यह आयते शरीफ़ा उस वक़्त नाज़िल हुई जब पैग़म्बरे अकरम (स) अबू बक्र के साथ मुशरेकीने मक्का के हमलों से बच कर ग़ार में पनाह लिये हुए थे और हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे अकरम (स) के बिस्तर पर सोए हुए थे।

(अल मुसतदरक अलल सहीहैन जिल्द 3 पेज 4)

इब्ने अबिल हदीद कहते हैं: तमाम मुफ़स्सेरीन ने यह रिवायत की है कि यह आयते शरीफ़ा हज़रत अली (अ) की शान में उस वक़्त नाज़िल हुई जब आप बिस्तरे रसूल (स) पर लेटे हुए थे।

(शरहे इब्ने अबिल हदीद जिल्द 13 पेज 263)

इस हदीस को अहमद बिन हंबल ने अल मुसनद में, तबरी ने तारिख़ुल उमम वल मुलूक में और दीहर उलामा ने भी नक़्ल किया है।

5. इमाम अली (अ) और आयते मुबाहला

ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है:

 فَمَنْ حَاجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ وَنِسَاءَنَا وَنِسَاءَكُمْ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَتَ اللَّـهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ

(सूरा आले इमरान आयत 61)

ऐ पैग़म्बर, इल्म के आ जाने के बाद जो लोग तुम से कट हुज्जती करें उनसे कह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ, हम अपने बेटे को बुलायें तुम अपने बेटे को और हम अपनी औरतों को बुलायें और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलाये और तुम अपने जानों को, उसके बाद हम सब मिलकर ख़ुदा की बारगाह में गिड़गिड़ायें और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें।

मुफ़स्सेरीन का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि इस आयते शरीफ़ा में (अनफ़ुसना) से मुराद अली बिन अबी तालिब (अ) हैं, पस हज़रत अली (अ) मक़ामात और फ़ज़ायल में पैग़म्बरे अकरम (स) के बराबर हैं, अहमद बिन हंमल अल मुसनद में नक़्ल करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयते शरीफ़ा नाज़िल हुई तो आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ), जनाबे फ़ातेमा और हसन व हुसैन (अ) को बुलाया और फ़रमाया: ख़ुदावंदा यह मेरे अहले बैत हैं। नीज़ सही मुस्लिम, सही तिरमिज़ी और मुसतदरके हाकिम वग़ैरह में इसी मज़मून की रिवायत नक़्ल हुई है।

(मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 185, सही मुस्लिम जिल्द 7 पेज 120, सोनने तिरमिज़ी जिल्द 5 पेज 596 ,अल मुसतदरके अलल सहीहैन जिल्द 3 पेज 150)

2-हदीसें

हम लेख के अधिक लंबा होने के डर से केवल हदीसों का अनुवाद और उनका हवाला यहां पर लिख रहे हैं।

1. इमाम अली (अ), पैग़म्बरे अकरम (स) के भाई

हाकिम नैशापूरी अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत करते हैं: पैग़म्बरे अकरम (स) ने अपने असहाब के दरमियान अक़्दे उख़ूव्वत पढ़ा, अबू बक्र को उमर का भाई, तलहा को ज़ुबैर का भाई और उस्मान को अब्दुल्लाह बिन औफ़ का भाई क़रार दिया, हज़रत अली (अ) ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह, आपने अपने असहाब के दरमियान अक़्दे उख़ूव्वत पढ़ा लेकिन मेरा भाई कौन है? उस वक़्त पैग़म्बरे (स) ने फ़रमाया:

तुम दुनिया व आख़िरत में मेरे भाई हो। (अल मुसतदरक अलस सहीहैन जिल्द 3 पेज 14)

उस्ताद तौफ़ीक़ अबू इल्म (मिस्र अदलिया के वकीले अव्वल) तहरीर करते हैं कि पैग़म्बरे अकरम (स) का यह अमल तमाम असहाब पर हज़रत अली (अ) की फ़ज़ीलत को साबित करता है, नीज़ इस बात पर भी दलालत करता है कि हज़रत अली (अ) के अलावा कोई दूसरा पैग़म्बरे अकरम (स) का हम पल्ला और बराबर नही है। (इमाम अली बिन अबी तालिब पेज 43)

उस्ताद ख़ालिद मुहम्मद ख़ालिद मिस्री रक़्म तराज़ है: आर उस शख्सीयत के बारे में क्या कहते हैं जिसको रसूले अकरम (स) ने अपने असहाब के दरमियान इंतेख़ाब किया ताकि उसको अक़्दे उख़ूव्वत के मौक़े पर अपनी भाई क़रार दे, बहुत मुमकिन है कि हज़रत अली (अ) के ईमान की गहराई बहुत ज़्यादा हो जिसकी वजह से आँ हज़रत (स) ने उनको दूसरों पर मुक़द्दम किया और अपने बरादर के उनवान से मुन्तख़ब किया। (फ़ी रेहाब अली (अ))

उस्ताद अब्दुल करीम मिस्री तहरीर करते हैं कि यह उख़ूव्वत व बरादरी जिसको पैग़म्बरे अकरम (स) ने सिर्फ़ अली (अ) को इनायत फ़रमाई, यह बग़ैर दलील के नही थी, बल्कि ख़ुदा वंदे आलम के हुक्म से और ख़ुद हज़रत अली (अ) के फ़ज़्ल व कमाल की वजह से थी। (अली बिन अबी तालिब बक़ीयतुन नुबुवह ख़ातिमुल ख़िलाफ़ह पेज 110)

2. इमाम अली (अ) और मौलूदे काबा

हाकिम नैशापुरी तहरीर करते हैं: मुतावातिर रिवायात इस बात पर दलालत करती है कि फ़ातेमा बिन्ते असद ने हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली बिन अबी तालिब (अ) को ख़ान ए काबा के अंदर पैदा किया। (अल मुसतरदक अलस सहीहैन जिल्द 3 पेज 550 हदीस 6044)

अहले सुन्नत मुअल्लेफ़ीन में से डाक्टर मुसम्मात सुआद माहिर मुहम्मद कहती हैं: इमाम अली (अ) किसी तारीफ़ और जिन्दगी नामे के मोहताज नही हैं, उनकी फ़ज़ीलत के लिये यही काफ़ी है कि आप ख़ान ए काबा में पैदा हुए और आप ने बैते वहयी में और क़ुरआने करीम के ज़ेरे साया तरबीयत पाई।

(मशहदुल इमाम अली (अ) फ़ीन नजफ़ पेज 6)

3- इमाम अली (अ) और तरबीयते इलाही

हाकिम नैशापुरी तहरीर करते हैं: अली बिन अबी तालिब (अ) ख़ुदा वंदे आलम की नेमतों में से अज़ीम नेमत उनकी तक़दीर थी, क़ुरैश बेशुमार मुश्किलात में गिरफ़्तार थे, अबू तालिब की औलाद ज़्यादा थी, रसूले ख़ुदा (स) ने अपने चचा अब्बास (जो बनी हाशिम में सबसे मालदार शख्सियत थी) से फ़रमाया: या अबुल फज़्ल, तु्म्हारे भाई अबू तालिब अयालदार हैं और सख्ती में ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं, उनके पास चलते हैं ताकि उनका कुछ बोझ कम करें, मैं उनके बेटों में से एक को ले लेता हूँ और आप भी किसी एक फ़रज़ंद का इंतेख़ाब कर लें ताकि उनको अपनी कि़फ़ालत में ले लें, चुँनाचे जनाबे अब्बास ने क़बूल कर लिया और दोनो जनाबे अबू तालिब के पास आये और मौज़ू को उनके सामने रखा, जनाबे अबू तालिब ने उनकी बातें सुन कर अर्ज़ किया: अक़ील को मेरे पास रहने दो, बक़ीया जिस को भी चाहो इँतेख़ाब कर लो, पैग़म्बरे अकरम (स) ने अली (अ) को इंतेख़ाब किया और जनाबे अब्बास ने जाफ़र को, हज़रत अली (अ) बेसत के वक्त तक पैग़म्बरे अकरम (स) के साथ रहे और आँ हज़रत (स) की पैरवी करते रहे और हमेशा आपकी तसदीक़ की।

पैग़म्बरे अकरम (स) नमाज़ के लिये मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा) में जाते थे, उनके पीछे पीछे अली (अ) और जनाबे ख़दीजा जाते थे और आँ हज़रत (स) के साथ मल ए आम में नमाज़ पढ़ते थे, जबकि इन तीन अफ़राद के अलावा कोई नमाज़ नही पढ़ता था। (अल मुसतदरक अलस सहीहैन जिल्द 3 पेज 183, मुसनद अहमद जिल्द 1 पेज 209, तारिख़े तबरी जिल्द 2 पेज 311)

उब्बाद बिन अब्दुल्लाह कहते हैं: मैंने अली (अ) से सुना कि उन्होने फ़रमाया: मैं ख़ुदा का वंदा और उसके रसूल का बरादर हूँ और मैं ही सिद्दीक़े हूँ, मेरे बाद कोई यह दावा नही कर सकता मगर यह कि वह झूटा और तोहमत लगाने वाला हो, मैं ने दूसरे लोगों से सात साल पहले रसूले अकरम (स) के साथ नमाज़ पढ़ी है।(तारिख़े तबरी जिल्द 2 पेज 52)

उस्ताद अब्बास महमूद अक़्क़ाद मशहूर व मारूफ़ मिस्री कहते हैं: अली (अ) उस घर में तरबीयत पाई है कि जहाँ से पूरी दुनिया में इस्लाम की दावत पहुची। (अबक़रियतुल इमाम अली (अ) पेज 43)

डाक्टर मुहम्मद अबदहू यमानी हज़रत अली (अ) के बारे में कहते हैं: वह ऐसे जवान मर्द थे जो बचपन से रसूले अकरम (स) के ज़ेरे साया परवान चढ़े और आख़िरे उम्र आँ हज़रत (स) का साथ न छोड़ा।

(अल्लिमू औलादकुम मुहब्बता आले बैतिन नबी (स) पेज 101)

4- इमाम अली (अ) ने किसी बुत के सामने सजदा नही किया

उस्ताद अहमद हसन बाक़ूरी, वज़ीरे अवक़ाफ़े मिस्र तहरीर करते हैं: तमाम असहाब के दरमियान सिर्फ़ इमाम अली (अ) को कर्मल्लाहो बजहहू कहे जाने की वजह यह है कि आपने कभी किसी बुत के सामने सजदा नही किया। (अली (अ) इमामुल आईम्मा पेज 9)

उस्ताद अब्बास महमूद अक्क़ाद तहरीर करते हैं: मुसल्लम तौर पर हज़रत अली (अ) मुसलमान पैदा हुए हैं, क्यो कि (अशहाब के दरमियान) आप ही एक ऐसी शख्सियत थी, जिन्होने इस्लाम पर आँख़ें खोलीं और आप को हरगिज़ बुतों की इबादत की कोई शिनाख़्त न थी। (अबक़िरयतुल इमाम अली (अ) पेज 43)

डाक्टर मुहम्मद यमानी रक़्मतराज़ है कि अली बिन अबी तालिब हमसरे फ़ातेमा, साहिबे मज्द व यक़ीन, दुख़्तरे बेहतरीने रसूल (कर्मल्लाहो बजहहू) हैं जिन्होने कभी किसी बुत के सामने तवाज़ो व इंकेसारी (यानी इबादत) नही की है। (अल्लिमू औलादकुम मुहब्बता आले बैतिन नबी (स) पेज 101)

(हज़रत अली (अ) की यही फ़ज़ीलत डाक्टर मुहम्मद बय्यूमी मेहरान, उम्मुल क़ुरा मक्क ए मुअज्ज़मा शरीयत कालेज के उस्ताद और मुसम्मात डाक्टर सुआद माहिर भी बयान करते हैं।

(अली बिन अबी तालिब (अ) पेज 50, मशहदुल इमाम अली (अ) फ़ीन नजफ़ पेज 36)

 

5- इमाम अली (अ) सबसे पहले मोमिन

पैग़म्बरे अकरम (स) ने हज़रत अली (अ) के बारे में फ़ातेमा ज़हरा (स) से फ़रमाया: बेशक वह (अली (अ)) मेरे असहाब में सबसे पहले मुझ पर ईमान लाये। (मुसनद अहमद जिल्द 5 पेज 662 हदीस 19796, कंज़ुल उम्माल जिल्द 11 पेज 605 हदीस 23924)

इसी तरह इब्ने अबिल हदीद रक़्मतराज़ हैं: मैं उस शख्सीयत के बारे में क्या कहूँ जिसने हिदायत में दूसरों से सबक़त ली हो, ख़ुदा पर ईमान लायें और उसकी इबादत की जबकि तमाम लोग पत्थर (के बुतों) की पूजा किया करते थे। (शरहे इब्ने हदीद जिल्द 3 पेज 260)

6. इमाम अली (अ) ख़ुदा वंदे आलम के नज़दीक मख़लूक़ में सबसे ज़्यादा महबूब

तिरमिज़ी अपने सनद के साथ अनस बिन मालिक से रिवायत करते हैं: रसूले अकरम (स) के पास एक भूना हुआ परिन्दा (ख़ुदा की तरफ़ से नाज़िल) हुआ, उस मौक़े पर आँ हज़रत (स) ने अर्ज़ की, बारे इलाहा, तेरी मख़लूक़ में तेरे नज़दीक जो सबसे ज़्यादा महबूब हो उसको मेरे पास भेज दे ताकि वह इस भूने हुए परिन्दे में मेरे साथ शरीक हो, उस मौक़े पर हज़रत अली (अ) आये और पैग़म्बरे अकरम (स) के साथ खाना तनावुल फ़रमाया। (सही तिरमिज़ी जिल्द 5 पेज 595)

उस्ताद अहमद हसन बाक़ूरी तहरीर करते हैं: अगर कोई तुम से सवाल करे कि किस दलील की वजह से लोग हज़रत अली (अ) से मुहब्बत करते हैं? तो तुम उसके जवाब में कहो कि ख़ुदा अली (अ) को महबूब रखता है।

(अली इमाममुल आईम्मा पेज 107)

7. अली औऱ पैग़म्बर (स) एक नूर से

रसूले अकरम (स) ने फ़रमाया: मैं और अली बिन अबी तालिब, आदम की ख़िलक़त से चार हज़ार साल पहले ख़ुदा के नज़दीक एक नूर थे, जिस वक़्त ख़ुदा वंदे आलम ने (जनाबे) आदम को ख़ल्क़ फ़रमाया, उस नूर के दो हिस्से किये, जिसका एक हिस्सा मैं हूँ और दूसरा हिस्सा अली बिन अबी तालिब (अ) हैं। (तज़किरतुल ख़वास पेज 46)

8. इमाम अली (अ) सबसे बड़े ज़ाहिद

उस्ताद अब्बास महमूद ऐक़ाद तहरीर करते हैं: ख़ुलाफ़ा के दरमियान दुनिया की लज़्ज़तों की निस्बत हज़रत अली (अ) से ज़ाहिद तरीन कोई नही था।

(अबक़रियतुल इमाम अली (अ) पेज 29)

9. इमाम अली (अ) सहाबा मे सबसे ज़्यादा शुजाअ व बहादुर

उस्ताद अली जुन्दी, मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम और मुहम्मद युसुफ़ महजूब अपनी किताब शजउल हेमाम फ़ी हुक्मिल इमाम तहरीर करते हैं: (हज़रत (अ)) मुजाहेदिन के सैयद व सरदार थे, इस में किसी तरह का कोई इख़्तिलाफ़ नही है, उनकी मंज़िलत के लिये बस इतना ही काफ़ी है कि जंगे बद्र (इस्लाम की सबसे अज़ीम वह जंग जिस में पैग़म्बर अकरम (स) शरीक थे) में मुशरेकीन के सत्तर लोग हुए, जिनमे से आधे लोगों को हज़रत अली (अ) ने बाक़ी को दूसरे मुसलमानों और मलायका ने क़त्ल किया है, आप जंग में बहुत ज़्यादा ज़हमतें बर्दाश्त किया करते थे, आप रोज़े बद्र जंग करने वालों में सबसे मुक़द्दम थे, आप जंगे ओहद व हुनैन में साबित क़दम रहे और आप ही ख़ैबर के फ़ातेह और अम्र बिन अबदवद, ख़ंदक़ का नामी बहादुर और मरहब यहूदी के क़ातिल थे। (सजउल हेमाम फ़ी हुक्मिल इमाम पेज 18)

अब्बास महमूद अक़्क़ाद तहरीर करते हैं: यह बात मशहूर थी कि हज़रत अली (अ) जब भी किसी से लड़े हैं उसको ज़ेर कर देते हैं और आपने किसी से जंग नही कि मगर यह कि उसको क़त्ल कर दिया। (अबक़रितुल इमाम अली (अ) पेज 15)
डाक्टर मुहम्मद अबदहू यमानी हज़रत अली (अ) की तौसीफ़ में कहते हैं: हज़रत अली (अ) ऐसे बहादुर, शुजाअ और साबिक़ क़दम थे जिन्होने शबे हिजरत हज़रत रसूले अकरम (स) की जान की हिफ़ाज़त के लिये अपनी जान का तोहफ़ ख़ुलूसे के साथ पेश कर दिया, चुनाँचे आप उस मौक़े पर पैग़म्बरे अकरम (स) के बिस्तर पर सो गये। (अल्लिमू औलादकुम मुहब्बता आलिन नबी (स) पेज 109)

10.इमाम अली (अ) सहाबा में सबसे बड़े आलिम

इमाम अली (अ) अपने ज़माने के सबसे बड़े आलिम थे, इस दावे को चंद तरीक़ों से साबित किया जा सकता है:

अ.पैग़म्बरे अकरम (स) का फ़रमान

पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया:

हदीस (मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 40)

मेरे बाद मेरी उम्मत में सबसे बड़े आलिम अली बिन अबी तालिब (अ) हैं।

तिरमिज़ी ने हज़रत रसूले अकरम (स) से रिवायत की कि आपने फ़रमाया:

हदीस (सही तिरमिज़ी जिल्द 5 पेज 637)

मैं शहरे हिकमत हूँ और अली (अ) उसका दरवाज़ा।

नीज़ पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया:

हदीस (अल मुसतदरक अलस सहीहैन जिल्द 3 पेज 127)

मैं शहरे इल्म हूँ और अली उसका दरवाज़ा, जो शख्स भी मेरे इल्म का तालिब है उसे दरवाज़े से दाख़िल होना चाहिये।

अहमद बिन हम्बल पैग़म्बरे अकरम (स) से नक़्ल करते हैं कि आपने जनाबे फ़ातेमा (स) से फ़रमाया:

हदीस (मुसनद अहमद जिल्द 5 पेज 26, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 5 पेज 101)

क्या तुम इस बात पर राज़ी नही हो कि तुम्हारे शौहर इस उम्मत में सबसे पहले इस्लाम का इज़हार करने वाले और मेरी उम्मत के सबसे बड़े आलिम और सबसे ज़्यादा हिल्म रखने वाले हैं।

ब. इमाम अली (अ) की आलमीयत का इक़रार सहाबा की ज़बानी

जनाबे आयशा कहती हैं: अली (अ) दूसरे लोगों की बनिस्बत सुन्नते रसूल (स) के सबसे बड़े आलिम थे। (तारीख़े इब्ने असाकर जिल्द 5 पेज 162, उस्दुल ग़ाबा जिल्द 4 पेज 22)

इब्ने अब्बास कहते हैं: जनाबे उमर ने एक ख़ुतबे में कहा: अली (अ) क़ज़ावत ओर फ़ैसला करने में बेमिसाल हैं। (तारीख़े इब्ने असाकर जिल्द 3 पेज 36, मुसनद अहमद जिल्द 5 पेज 113, तबक़ाते इब्ने साद जिल्द 2 पेज 102)

हज़रत इमाम हसन (अ) ने अपने पेदरे बुज़ुर्गवार हज़रत अली (अ) की शहादत के बाद फ़रमाया: बेशक कल तुम्हारे दरमियान से ऐसी शख्सीयत उठ गयी है जिसके इल्म तक साबेक़ीन (गुज़िश्ता) और लाहेक़ीन (आईन्दा आने वाले) नही पहुच सकते। (मुसनद अहमद जिल्द 1 पेज 328)

इसी तरह अब्बास महमूद अक़्क़ाद तहरीर करते है: लेकिन क़ज़ावत और फ़िक्ह में मशहूर यह है कि गज़रत अली (अ) क़ज़ावत और फ़िक्ह दोनो में उम्मते इस्लामिया के सबसे बड़े आलिम थे और दूसरे पहले वालों पर भी... जब हज़रत उमर को कोई मसअला दर पेश होता था तो कहते थे: यह ऐसा मसअला है कि ख़ुदावंदे आलम इसको हल करने के लिये अबुल हसन को हमारी फ़रयाद रसी को पहुचाये। (अबक़रियतुल इमाम अली (अ) पेज 195)

स. तमाम उलूम का मर्कज़ इमाम अली (अ)

इब्ने अबिल हदीद शरहे नहजुल बलाग़ा में तहरीर करते हैं: तमाम उलूम के मुक़द्देमात का सिलसिला हज़रत अली (अ) तक पहुचा है, आप ही ने दीनी क़वायद और शरीयत के अहकाम को वाज़ेह किया, आपने अक़्ली और मनक़ूला उलूम की बहसों को वाज़ेह किया है। फिर मौसूफ़ ने इस बात की वज़ाहत की कि किस तरह तमाम उलूम हज़र अली (अ) की तरफड पलटते हैं। (शरहे इब्ने अबिल हदीस जिल्द 1 पेज 17)

11.हज़रत अली (अ) ज़माने के बुत शिकन

इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं: मैं रसूले अकरम (स) के साथ रवाना हुआ यहाँ तक कि हम ख़ान ए काबा तक पहुचे, पहले रसूले खुदा (स) मेरे शाने पर सवार हुए और मुझ से फ़रमाया: चलो, मैं चला, लेकिन जब आँ हज़रत (स) ने मेरी कमज़ोरी को मुशाहेदा किया तो फ़रमाया: बैठ जाओ, मैं बैठ गया, आँ हज़रत (स) मेरे शानों से नीचे उतर आये और ज़मीन पर बैठ गये, उसके बाद मुझ से फ़रमाया: तुम मेरे शानों पर सवार हो जाओ, चुनाँचे मैं उनके शानों पर सवार हो गया और काबे की बुलंदी तक पहुच गया, इस मौक़े रक मैने गुमान किया कि अगर मैं चाहूँ तो आसमान को छू सकता हूँ, उस वक़्त मैं ख़ान ए काबा की छत पर पहुच गया, छत के ऊपर सोने और ताँबे के बने हुए एक बुत को देखा, मैंने सोचा किस तरह उसको नीस्त व नाबूद किया जाये, उसको दायें बायें और आगे पीछे हिलाया, यहाँ तक उस पर फ़ातेह हो गया, पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया: उसको ज़मीन पर फेंक दो, मैंने भी उसको ख़ान ए काबा की छत से नीचे गिरा दिया और वह ज़मीन पर गिर कर टुकड़े टुकड़े होने वाले कूज़े की तरह चूर चूर हो गया, उसके बाद मैं छत से नीचे आ गया। (मुसतदरक हाकिम जिल्द 2 पेज 366, मुसनद अहमद जिल्द 1 पेज 84, कंज़ुल उम्माल जिल्द 6 पेज 407, तारीख़े बग़दाद जिल्द 13 पेज 302 व ..)

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