اهل بیت علیهم السلام

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का संसारिक जीवन
इमाम अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं अपने पवित्र नबीं का अनुसरण करो! पैग़म्बर ने इस संसार में केवल आवश्यकता भर चीज़ों का उपयोग किया, अपनी निगाहों को उस पर नहीं टिकाया, अपने मुंह को उससे नहीं भरा, दुनिया की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया
पैग़म्बरे इस्लाम के छः विशेषताएं
पैग़म्बरे इस्लाम के छः विशेषताएं
नाना की वफ़ात और नवासे की शहादत एक ही दिन
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा अपने स्वर्गवास से पहले इस्लाम को परिपूर्ण धर्म के रूप में मानवता के सामने पेश कर चुके थे।
पैग़म्बरे इस्लाम और इमाम हसन की शहादत पर विशेष
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का स्वर्गवास हुए चौदह सौ वर्ष का समय बीत रहा है परंतु आज भी दिल उनकी याद व श्रृद्धा में डूबे हुए हैं। डेढ अरब से अधिक मुसलमान प्रतिदिन अपनी नमाज़ों में पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की गवाही देते हैं, उन पर दुरूद व सलाम भेजते हैं और उ
हज़रत इमाम रज़ा का संक्षित्प परिचय
हज़रत इमाम रज़ा का संक्षित्प परिचय
इमाम रज़ा (अ) की शहादत पर खास
पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने समय में ज्ञान, समस्त सदगुणों और ईश्वरीय भय व सदाचारिता के प्रतीक थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी दूसरे इमामों की भांति अत्याचारी शासकों की कड़ी निगरानी में थे। अधिकांश लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मह
इमाम हुसैन (अ) और करबला
इमाम हुसैन (अ) की शहादत के बाद से मोहर्रम केवल एक महीने का नाम नहीं रह गया बल्कि यह एक दुखद घटना का नाम है, एक उसूल व सिद्धांत का नाम है और सबसे बढ़कर सच्चाई व झूठ, ज़ुल्म तथा बहादुरी की कसौटी का नाम है।
कर्बला इमाम ख़ुमैनी की नज़र में
सय्यदुश्शोहदा हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने कुछ साथियों, क़रीबी रिश्तेदारों औऱ घर की औरतों के साथ यज़ीद के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया। चूँकि आपका आंदोलन अल्लाह के लिये था इस लिये उस दुष्ट की हुकूमत की बुनियादें (नींव) भी हिल गईं।
सातवें इमाम की विलादत के अवसर पर विशेष
129 हिजरी शताब्दी सात सफ़र को जब इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) अपने परिवार के साथ हज के बाद मदीना वापस लौट रहे थे तो, उनकी पत्नी हमीदा ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम छठे इमाम ने मूसा रखा। इस शुभ अवसर पर इमाम (अ) ने फ़रमाया, मेरा यह बेटा मेरे बाद इस संसार का
इमाम हुसैन (अ) के क़ातिलों का अंजाम
शियों की मोतबर किताब कामिलुज़ ज़ियारत में ज़िक्र हुआ है कि जो लोग भी इमाम हुसैन (अ) के क़त्ल में शरीक थे, इन तीन बीमारियों में से एक में ज़रूर फँसेंगें, दीवानगी, बर्स और कोढ़।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़तिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हैं। आप अपने माता पिता की द्वितीय सन्तान थे।
इमाम हुसैन की ज़ियारत पर न जाने का अज़ाब
हलबी ने इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः जो भी इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को छोड़ दे, जब कि वह इस कार्य पर सामर्थ हो तो उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की अवहेलना की है।
शाहदत स्पेशल, हज़रत इमाम सज्जाद (अ) का जीवन परिच
हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का नाम अली व आपकी मुख्य उपाधियां सज्जाद व ज़ैनुल आबेदीन हैं। सज्जाद अर्थात अत्यअधिक सजदे करने वाला। ज़ैनुल आबेदीन अर्थात इबादत की शोभा।
यज़ीद के दरबार में इमाम सज्जाद का ख़ुत्बा
मैं मक्का और मिना का बेटा हूँ, मैं सफ़ा और ज़मज़म का बेटा हूँ, मैं उसका बेटा हूँ जिसने हजरे असवद को अपनी चादर में उठाया और उसके स्थान पर स्थापित किया, मैं बेहतरीन तवाफ़ और सई करने वालों का बेटा हूँ, मैं बेहतीन हज और बेहतरीन तलबिया कहने वाले का बेटा हूँ
पंद्रह मोहर्रम, हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
"इबने ज़ियाद" एक (या कई) दिनों तक कर्बला के शहीदों के सरों को कूफ़ा शहर की गलियों कूचों और महल्लों में घुमाता रहा उसके बाद उसके पास "यज़ीद इबने मोआविया" मलऊन का आदेश आता है कि अली (अ) के बेटे इमाम हुसैन (अ) के सर को दूसरे कर्बला के शहीदों के सरों के साथ
तेरह मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
इबने ज़ियाद ने अपने दरबार में पैग़म्बर (स) के परिवार वालों का अपमान किया कभी वह हुसैन (अ) के होठों पर छड़ी मारता था तो कभी हज़रत ज़ैनब (स) से पूछता था कि बताओं को ख़ुदा ने तुम्हारे साथ किया वह कैसा था और कभी इमाम सज्जाद (अ) की बेबसी पर हसता था
बारह मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ख़ानदान पर वह बारह मोहर्रम का ही मनहूस दिन था कि जब यह लुटा हुआ काफ़िला पूरी रात कूफ़े के द्वार पर रुकने के बाद कूफ़े में पहुँचा है, इसी दिन अहलेबैत (अ) का लुटा काफ़िला कैदी बना कूफ़ा आया है। (1)
इमाम हुसैन, कर्बला, 61 हिजरी
इमाम हुसैन (अ) के साथियों और यज़ीदी सेना के बीच युद्ध जारी ही था कि ज़ोहर की नमाज़ का समय आ गया तब आपके एक साथी "अबू समाम सैदावी" ने इमाम हुसैन (अ) से कहा कि मौला ज़ोहर की नमाज़ का समय हो गया है, और हम आपकी जमाअत में अन्तिम नमाज़ पढ़ना चाहते हैं, इमाम
ग्यारह मोहर्रम हुसैनी काफ़िले के साथ
उमरे साद मलऊन ग्यारह मोहर्रम को ज़ोहर के समय तक कर्बला में रुका और उसने अपने नर्क जाने वाले साथियों और यज़ीदी सेना के मरने वालों सिपाहियों पर नमाज़ पढ़ी और उनको दफ़्न किया, लेकिन पैग़म्बर (स) के बेटे को दफ़्न करना किसी को गवारा नहीं हुआ और वह हुसैन (अ) जो
दस मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
सुबह की नमाज़ के बाद इमाम हुसैन (अ) ने अपनी सेना को व्यवस्थित करना आरम्भ किया आपने ख़ैमों के सामने अपनी सेना को जिसमें 32 घुड़सवार और 40 पैदल सैनिक थे को तीन हिस्सों में बांटा, और दाहिने भाग के लिये "ज़ोहैर इबने क़ैन" को सेनापति बनाया,

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