امام حسین علیه السلام

चौथी मोहर्रम हुसैनी क़ाफिले के साथ
“हे लोगों! तुम लोगों ने अबू सुफ़ियान के ख़ानदान को आज़माया और जैसा तुम चाहते थे उनको वैसा पाया! यज़ीद तो तुम पहचानते हो वह अच्छे व्यवहार वाला, नेक और अपने नीचे काम करने वालों पर एहसान करने वाला और उनकी अताएं बजा हैं! और उनका बाप भी ऐसा ही था! अब यज़ीद ने
तीन मोहर्रम हुसैनी क़ाफिले के साथ
आज के ही दिन उमरे सअद 6 या 9 हज़ार की सेना के साथ पैग़म्बर के नवासे हुसैन इब्ने अली की हत्या के लिये कर्बला पहुँचता है, और आपके खैमे के सामने कैंप लगाता है (2) कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उमरे सअद के कबीले वाले (बनी ज़ोहरा) उसके पास आते हैं और उसके क़सम
जाने क्या है और क्यों मनाया जाता है मोहर्रम
जब यज़ीद तख़्ते हुकूमत पर बैठता है तो वह मदीने के गवर्नर वलीद को पत्र लिखता है कि इमाम हुसैन से मेरे लिए बैअत लो या फिर उनकी हत्या कर दो, लेकिन इमाम हुसैन किसी भी तरह यज़ीद की बैअत करने के लिए तैयार नहीं होते हैं और कहते हैं कि मेरे जैसे तुझ जैसे की बैअत
इमाम हुसैन पर रोने का सवाब
हुसैन पर रोना क़ब्र में सुकून, मौत के समय ख़ुशहाली, हश्र में कब्र से निकलते समय कपड़ों के साथ और खुशी से निकलने का कारण बनता है वह ख़ुश होगा और फ़रिश्ते उसको जन्नत और सवाब की ख़ुश्ख़बरी देंगे।
दूसरी मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
प्रसिद्ध यह है कि इमाम हुसैन का काफ़िला मदीने से मक्के होता हुआ दूसरी मुहर्रम को करबला की तपती हुई रेती पर पहुँचा है आपके साथ इस काफ़िले में आपके अहले हरम, बच्चे और आपके साथी भी थे।
आ गया आँसुओं का महीना
वास्तव में करबला की नींव उसी समय पड़ गई थी कि जब शैतान ने आदम से पहली बार ईर्ष्या का आभास किया था और यह प्रतिज्ञा की थी कि वह ईश्वर के बंदों को उसके मार्ग से विचलित करता रहेगा। समय आगे बढ़ता गया। विश्व के प्रत्येक स्थान पर ईश्वर के पैग़म्बर आते रहे
पहली मोहर्रम, हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
अगर तुम मेरी मदद नहीं कर रहे हो तो ख़ुदा से डरो (गुनाह न करो) और उनमें से न हो जाओ जो हमसे जंग करते हैं, ख़ुदा की क़सम जो भी हमारी आवाज़ को सुने और हमारी मदद न करे, उसको चेहरे के बल नर्क में फेंक दिया जाएगा।
इमाम हुसैन (अ) के महान इन्सानी गुण
हम शियों का अक़ीदा और विश्वास है कि मासूमीन (अ) हर गुण के उच्चतम बिंदु तक और हर फ़ज़ीलत के कमाल पर पहुँचे हुए हैं, और इस मामले में कोई भी उनके बराबर का नहीं है। लेकिन हर मामूस के युग के विशेष समाजिक हालात इस बात का कारण बने कि एक विशेष गुण उन हालात के आधा
इमाम हुसैन (अ) कौन थे?
आपका जन्म 3 शाबान, सन 4 हिजरी, 8 जनवरी 626 ईस्वी को पवित्र शहर मदीना, सऊदी अरब) में हुआ था और आपकी शहादत 10 मुहर्रम 61 हिजरी (करबला, इराक) 10 अक्टूबर 680 ई. में वाके हुई!
इन कारणों से लड़ी गई कर्बला की जंग
जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि...

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