पहली मोहर्रम, हुसैनी क़ाफ़िले के साथ

अगर तुम मेरी मदद नहीं कर रहे हो तो ख़ुदा से डरो (गुनाह न करो) और उनमें से न हो जाओ जो हमसे जंग करते हैं, ख़ुदा की क़सम जो भी हमारी आवाज़ को सुने और हमारी मदद न करे, उसको चेहरे के बल नर्क में फेंक दिया जाएगा।

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

यह ग़म, दुःख, और आँसुओं के महीने का यह पहला दिन है, आज के दिन तमाम शिया, अहलेबैत के चाहने वाले, पैग़म्बरे इस्लाम से मोहब्बत करने वाले ग़मगीन है। आज का दिन पूरे संसार के लिए दुःख और ग़म का दिन है क्योंकि हर साल पहली मोहर्रम से दस मोहर्रम तक सैय्यदुश शोहदा ख़ून भरा फटा हुआ कुर्ता आसमान से ज़मीन की तरफ़ लटकाया जाता है और ग़म पूरे संसार पर तारी हो जाता है। (1)

पहली मोहर्रम के दिन रय्यान बिन शबीब इमाम रज़ा (अ.) की ख़िदमत में पहुँचते हैं, आप फ़रमाते हैं: ऐ इब्ने शबीब, जाहेलीयत के ज़माने में लोग मोहर्रम के महीने में जंग को हराम मानते थे, लेकिन इस उम्मत ने इस महीने का सम्मान न किया और न ही पैग़म्बर की हुरमत का ख़्याल रखा, इस महीने में हमारे ख़ून को हलाल जाना, और हमारे सम्मान को ठेस पहुँचाई, हमारे बच्चों और महिलाओं को क़ैदी बनाया....

हुसैन की शहादत के दिन ने हमारी पलको को ज़ख़्मी कर दिया, और हमारे आँसू जारी कर दिए, हमारे दिलों को जला दिया, हमारे अज़ीज़ को करबला की ज़मीन पर ज़लील कर दिया.... रोने वालों को हुसैन पर रोना चाहिए क्योंकि उन पर रोना बड़े गुनाहों को भी धो देता है

ऐ इब्ने शबीब अगर किसी चीज़ पर रोना चाहो तो हुसैन पर रोना, उनको वैसे ही मारा गया जैसे भेड़ को ज़बह किया जाता है, और उनके साथ अहलेबैत के 18 लोगों को शहीद कर दिया जिनकी जैसा धरती पर कोई नहीं, सातों आसमान और ज़मीन उनकी शहादत पर रोए....(2)

तारीख़ की किताबों में आया है कि पहली मोहर्रम को हुसैनी क़ाफ़िला जो मदीने से चला था और मक्के सा होता हुआ आज के ही दिन क़स्र बिन मुक़ातिल नामक स्थान पर पहुँचा जहां पर कूफे के कुछ लोगों ने अपने कैंप लगा रखे थे और आराम कर रहे थे, इमाम हुसैन (अ.) ने उन से पूछाः क्या तुम लोग मेरी मदद करोगे? उनमें से कुछ लोगों ने कहा हम मरना नहीं चाहते हैं, और कुछ दूसरों ने कहाः मारे साथ औरतें और बच्चे हैं, हमारे पास दूसरो का माल भी है, और यह भी नहीं पता की इस जंग का अंजाम क्या होगा, इसलिए हमें माफ़ करें, हम आपकी मदद नहीं कर सकते हैं।

इमाम हुसैन ने अपने जवानों से कहा कि पानी जमा कर लें और रात में सफ़र करें।

आपने इसी स्थान पर उबैदुल्लाह जअफ़ी से फ़रमायाः

अगर तुम मेरी मदद नहीं कर रहे हो तो ख़ुदा से डरो (गुनाह न करो) और उनमें से न हो जाओ जो हमसे जंग करते हैं, ख़ुदा की क़सम जो भी हमारी आवाज़ को सुने और हमारी मदद न करे, उसको चेहरे के बल नर्क में फेंक दिया जाएगा।

शेएबे अबीतालिब

आज ही के दिन हज़रत अबू तालिब पैग़म्बरे इस्लाम के साथ अपने परिवार को लेकर शेएब अबीतालिब में गए थे कि जब इस्लाम की बढ़ती हुई ताक़त ने काफ़िरों को डरा दिया तो सभी ने आपस में एक समझौता किया जिसके अनुसार किसी भी क़बीले को बनी हाशिम के साथ बात करने या किसी भी प्रकार का लेन देन करने की मनाही थी, जिसके बाद हज़रत अबू तालिब ने यह क़दम उठाया। (4)

ज़ाते रेक़ाअ युद्ध

4 हिजरी को पहली मोहर्रम के दिन ही क़ुरैश के भड़काने पर मुसमलानों और मदीने के आसपास रहने वालों के बीच युद्ध हुआ जिसमें यह क़बीले वाले मदीने की परिवेष्टन करना चाहते थे, पैग़म्बरे इस्लाम 400 या 790 लोगों के सात मदीने से बार आए यह जंग तीन दिन तक चली। (5)

यज़ीद के विरुद्ध विद्रोह

आज ही के दिन सन 63 हिज़री में मदीने के लोगों ने शराबी जुआरी अय्याश और अपने आप को पैग़म्बर का ख़लीफ़ा करने वाले यज़ीद के विरुद्ध विद्रोह किया। (6)

*********************

1.    ख़साएसे ज़ैनबिया, पेज 49
2.    बेहारुल अनवार जिल्द 98, पेज 102, जिल्द 14, पेज 164, अमाली शेख़ सदूक़, पेज 111, उयूने अख़बारे रज़ा, जिल्द 1, पेज 233
3.    मदीना ता करबला हमराह बा सैय्यदुश शोहदा
4.    अलवक़ायअ वल हवादिस, जिल्द 2, पेज 7
5.    अलवक़ायअ वल हवादिस, जिल्द 2, पेज 45
6.    अलवक़ायअ वल हवादिस, जिल्द 2, पेज 49

नई टिप्पणी जोड़ें