आयतुल्लाह सीस्तानी ज़ाकिर नाईक और ईद का चाँद

आज जहां सारी दुनिया के मुसलमान यह जान चुकी हैं कि इस्लाम के आंड़ में वहाबियत की बढ़ती गतिविधियां जहां इस्लाम को नुक़सान पहुँचा रही हैं वहीं पूरी दुनिया में इस्लाम के चेहरे को कुरूप कर रहीं है और ज़ाकिर नाईक भारत में उसी वहाबियत का एक चेहरा मात्र है जिसको

बुशरा अलवी

आज कल भारतीय मीडिया, चाहे वह प्रिंट मीडिया हो, इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या सोशल मीडिया हर तरफ़ केवल दो ही मुद्दे छाए हुए हैं एक ज़ाकिर नाईक और बंग्लादेश में हुए आतंकवादी हमले में उसका आतंकवादियों के साथ कनेक्शन और दूसरा मुद्दा जो प्रिंट मीडिया में काफ़ी कम हद तक और इलेक्ट्रानिक मीडिया में बिलकुल भी नहीं लेकिन सोशल मीडिया में जिसका बोलबाला है वह है इस बार की ईद का मसला, कि इस बार की ईद बुधवार को थी या फिर गुरुवार को और अगर बुधवार को थी जो जिन लोगों ने बुधवार को रोज़ा रखा उनके रोज़े का क्या होगा लेकिन अगर ईद गुरुवार को थी तो जिन लोगों ने बुधवार को ईद मना ली और रोज़ा नहीं रखा तो उनके कफ़्फ़ारे का क्या होगा।

यह दोनों मसले ऐसे हैं जिनमें अलग अलग तरह के लोग अलग अलग तरह से अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं जैसे ज़ाकिर नाईक का मामला ले लें तो जो लोग वहाबियत के विरुद्ध और इस्लाम एवं देश के लिये वहाबियत और उसकी विचारधारा को ख़तरा मानते हैं वह नाईक के विरुद्ध बने इस माहौल का फ़ायदा उठाते हुए उसके विरुद्ध आवाज़ उठा रहे हैं और उसके टीवी चैनल पीस टीवी को बंद किये जाने की मांग की जा रही है तो कहीं मुसलिम संगठन उसके घर के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, और दूसरी तरफ़ घोटाओं के आरोपों, महंगाई, पेट्रोल की बढ़ती क़ीमतों, किसानों की आत्महत्या, मालिया के विदेश भाग जाने, आडानी ग्रुप का ब्याज माफ़ किये जाने या फिर विदेश से काला धन वापस लाने के मामले पर यू टर्न लेने वाली सरकार अपने विरुद्ध होते हुए हमलों के बाद अचानक बंग्लादेश में आतंकवादी हमलों को अपने लिये अवसर की तरह देख रही है, क्योंकि उसको पता है कि जब तक मीडिया में ज़ाकिर ज़ाकिर होता रहेगा तब तक कोई मोदी या भाजपा के बारे में नहीं पूछेगा, अब न कोई काले धन के बारे में प्रश्न करेगा, न पेट्रोल डीज़ल की बढ़ती क़ीमतों के बारे में पूछेगा न किसानों की आत्महत्या का मामला उछाला जाएगा और न दादरी कांड या फिर इस प्रकार के दूसरे मामलों के बारे में ज़बान खोलेगा।

बहरहाल आज जहां सारी दुनिया के मुसलमान यह जान चुकी हैं कि इस्लाम के आंड़ में वहाबियत की बढ़ती गतिविधियां जहां इस्लाम को नुक़सान पहुँचा रही हैं वहीं पूरी दुनिया में इस्लाम के चेहरे को कुरूप कर रहीं है और ज़ाकिर नाईक भारत में उसी वहाबियत का एक चेहरा मात्र है जिसको सऊदी अरब के शाही ख़ानदान द्वारा तेल के पैसों से सींचा जा रहा है और जिसका नतीजा सीरिया, इराक़, लीबिया, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान.... आदि देशों में मुसलमानों और बेगुनाहों के बहते हुए ख़ून के तौर पर देखा जा सकता है।

आज भारतीय मुसलमान को यह एहसास हो गया है कि अगर ज़ाकिर नाईक जैसे आतंकवाद के अध्यापक को खुले छोड़ दिया गया तो उसके चेले चपाने बंग्लादेश की तरह हिन्दुस्तान को ख़ून से रंगने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और यही कारण है कि शिया और सुन्नी दोनों मुसलमानों ने इस ख़तरे को पहचाना है और वह एक स्वर में ज़ाकिर नाईक और वहाबी विचार धारा का विरोध कर रहे हैं।

यह तो रही ज़ाकिर नाईक की बात एक दूसरा मामला जो बहुत गर्म है विशेष कर सोशल मीडिया पर वह है इस बार की ईद का मामला कि ईद किस दिन थी और जिस प्रकार ज़ाकिर वाले मामले में हर पक्ष ने मौक़े को भुनाते हुए अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश की है वैसे ही यहां पर किया गया बस फ़र्क़ यह है कि उसके मामले में सरकार और मुसलमानों ने किया था लेकिन ईद के मामले में शिया समुदाय की ही एक बिदअत यानी अख़बारियत ने इस मौक़े को ग़नीमत जाना और मरजईयत और विलायते फ़क़ीह को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया, कहा यह गया कि जब आयतुल्लाह सीस्तानी इराक़ में हैं तो उनको क्या हक़ बनता है कि वह भारत के मुसलमानों के लिये ईद की घोषणा करें, यह फैसला तो भारतीय मुसलमानों का है कि वह फैसला करें कि उनके यहां चाँद हुआ है या नहीं बात चाहे कुछ भी रही हो लेकिन कुछ भोले भाले शिया जवान इन अख़बारियों की इन बातों के पीछे छिपी हुई साज़िश को पहचान न सके और उनकी हां में हां मिलाने लगे, और यही वह अख़बारी चाहते थे कि इस प्रकार शिया समुदाय जो अपनी मरजईयत और अपने अपने मरजा के आदेश पर अपनी जान निछावर कर देने के लिये जाना जाता है उसको उनके मरजा से दूर कर दिया जाए और इस प्रकार जहां सुन्नियों में वहाबियत को पैदा करके उसको कमज़ोर कर दिया गया वही अख़बारियत के ज़रिये शियों को मरजईयत से दूर कर के शियत का ख़ात्मा कर दिया जाए।

आधी रात तक ईद के बारे में शोर गुल चलता रहा कोई कहता था कि ईद बुध को है तो कोई जुमेरात को अटकलें लगाई जाती रहीं यहां तक कि कुछ अख़बारों ने यह तक लिख दिया की भारत में चाँद नहीं हुआ है और ईद जुमेरात को मनाई जाएगी इसी असमंजस की स्थिति में अचानक एक बार यह ख़बर फैली की आयतुल्लाह सीस्तानी की आफिशल वेबसाइट पर आया है कि ईद बुध को है और चाँद साबित हो चुका है, जैसे ही यह ख़बर फैली वैसे ही अख़बारियों ने सोंचा कि अब गेंद उनके पाले में है लोगों को मरजा के विरुद्ध खड़े करने का टाइम आ चुका है और उन्होंने अपने मोहरे बिछाने शुरू कर दिये, लेकिन जब सुबह का सूरज निकला तो उसने मरजईयत के विरुद्ध काम करने वाले अख़बारियों के मुंह पर कालिक पोत दी, रात तक आपस में लड़ने वाले, बहस करने वाले तमाम शिया सुबह के समय अपने मरजा के ऐलान पर सर झुकाए हुए दिखाई दिए और सबसे एक साथ बुध के दिन ईद मना कर अख़बारियत के मुंह पर तमाचा मार दिया और दुनिया को बता दिया कि शिया क़ौम कल भी अपने मरजा के साथ थी आज भी है और सदैव रहेंगी क्योंकि शिया क़ौम का अस्तित्व मरजईयत से जुड़ा हुआ है।

नई टिप्पणी जोड़ें