ज़ाकिर नाईक यज़ीद का भारतीय चेहरा

हमने ज़ाकिर नाईक को भारतीय यज़ीद इसलिये कहा है कि यज़ीद भी इस्लाम के नाम पर ही तख़्ते हुकूमत पर पैठा था, वह भी दिखावे के लिये मुसलमान ही था लेकिन जैसे ही वह हुकूमत में आया सबसे पहला ऐलान यह किया कि न कोई धर्म आया और...

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

इस्लाम एक ऐसा शब्द जिसको सुनने के बाद तन मन में शांति का एहसास होता है, वह धर्म जिसने इंसान को इंसान बना दिया, जीवन का अर्थ क्या है यह सिखाया और यही कारण है कि जब इस्लाम की उदय हुआ है तो वह अरब जो कभी अपने सबसे बुरे व्यवहार और आचरण के लिये जाने जाते थे कुछ दिनों के बाद ही वह सभ्य हो गए और सारे संसार को सभ्यता का पाठ पढ़ाने लगे।

यह हमारे नबी पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद की मेहनत की ही नतीजा था कि इस्लाम ने आने के बाद अरब में चालीस चालीस साल तक चहने वाली लड़ाईयों को शांति में बदल कर रख दिया और दुनिया को दिखाया कि इस्लाम शांति का धर्म है।

लेकिन जब दुनिया ने देखा कि इस्लाम बहुत तेज़ी के साथ दुनिया में फैल रहा है और क़रीब है कि इस्लाम सारी दुनिया के लोगों को अपना अनुयायी बना दे तो साम्राजी शक्तियों ने उसके विरुद्ध चालें चलनी शुरू की और उसकी सबसे भयानक चाल इब्ने तैमिया की विचारधाराओं के प्रेरित अब्दुल वह्हाब और आले सऊद के गठबंधन के माध्यम से इस्लाम के दिल यानी हिजाज़ में एक ऐसी हुकूमत की स्थापना की जो देखने में तो मुसलमान थी लेकिन उसका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं था और यहीं से वहाबियत दुनिया के सामने आई, जिसका काम इस्लाम के नाम पर समाधि स्थलों, रौज़ों और मस्जिदों को गिराना, जो इस्लाम के मान पर लोगों का गला काट रहे थे, जो इस्लाम के नाम पर आत्मघाती हमले कर रहे थे... जिसका मक़सद केवल इस्लाम को बदनाम करना था।

ज़ाकिर नाईक

वहाबियत के काले इतिहास का हालिया रूप हम को बंग्लादेश की राजधानी ढाका में हुए हमले में दिखाई देता है जहां कुछ लोगों ने इस्लाम के नारे अल्लाहो अकबर का ग़लत इस्तेमाल करते हुए बेगुनाह लोगों को उनके ही ख़ून में रंग दिया, जिसके बाद जब छानबीन शुरू हुई तो उस शैतान का नाम निकल कर सामने आया जो अमन व शांति के नाम पर पीस चैनल के बहाने लोगों के बीच घृणा, आतंकवाद और कट्टरता को फैला रहा था, यानि आज के दौर में यज़ीद का भारतीय चेहरा लोगों के सामने आया।

हमने ज़ाकिर नाईक को भारतीय यज़ीद इसलिये कहा है कि यज़ीद भी इस्लाम के नाम पर ही तख़्ते हुकूमत पर पैठा था, वह भी दिखावे के लिये मुसलमान ही था लेकिन जैसे ही वह हुकूमत में आया सबसे पहला ऐलान यह किया कि न कोई धर्म आया और न कोई अल्लाह की तरफ़ से वही यह तो हुकूमत तक पहुँचने के लिये बनी हाशिम का खेल था और एक प्रकार से उसने इस्लाम के साथ साथ पैग़म्बर पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया।

और आज का भारतीय यज़ीद यानी ज़ाकिर नाईक है जो पैग़म्बर के छोटे नवासे इमाम हुसैन के क़ातिल, मदीने पर हमला करने वाले, सहाबियों के क़ातिल, शराबी.... यज़ीद को अमरीरुल मोमिनीन कहता है, यज़ीद ने भी आतंकवाद की बुनियाद पर चहते हुए सहाबियों की हत्या की, पैग़म्बर के नवासे इमाम हुसैन को शहीद किया, अल्लाह के घर काबे का अपमान किया और यह आज के दौर का यज़ीदी ज़ाकिर नाईक भी वहाबी आतंकवादियों का समर्थन करते हुए दिखाई देता है, पैग़म्बर को मर कर समाप्त हुआ मानता है, वह कहता है कि पैग़म्बर मरने के बाद कुछ देखते और सुनते नहीं है, और हद तो यह है कि वह खुलेआम आतंकवाद और आतंकवादियों का समर्थन करते हुए कहता है कि हर मुसलमान को आतंकवादी होना चाहिए।

जिस प्रकार सच्चे मुसलमान कभी भी यज़ीद को अमीरुल मोमिनीन तो क्या एक मुसलमान नहीं मान सकते हैं उसकी प्रकार आज हर सच्चे भारतीय मुसलमान की सरकार से मांग है कि इस भारतीय यज़ीद पर कार्यवाही की जाए जो लोगों के बीच कट्टरता फैला रहा है जिसका नाम तो ज़ाकिर है लेकिन काम जाबिरों (अत्याचारियों) वाला कर रहा है, जैसे की मौलाना कल्बे जवाद ने कहा है कि यज़ीद की हिमायत करने वाला आतंकवादी ही हो सकता है, और शाही इमाम का भी यही मानना है कि ज़ाकिर नाईक जैसे लोगों को खुला छोड़ना हिन्दुस्तान के लिए ख़तरनाक है क्योंकि यह लोग इस्लाम के नाम पर वहाबियत का प्रचार कर रहे हैं और भोले भाले जवानों को बहकाकर उनको आतंकवादी गतिविधियों की तरफ़ धकेल रहे हैं जैसे कि बंग्लादेश में हुए धमाके में शामिल आतंकवादियों में से कुछ ने यह कहा भी है कि वह ज़ाकिर नाईक से प्रेरित थे।

(यह लेखक के निजी विचार हैं टीवी शिया का उनसे सहमत होना ज़रूरी नहीं है)

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