बारह मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ख़ानदान पर वह बारह मोहर्रम का ही मनहूस दिन था कि जब यह लुटा हुआ काफ़िला पूरी रात कूफ़े के द्वार पर रुकने के बाद कूफ़े में पहुँचा है, इसी दिन अहलेबैत (अ) का लुटा काफ़िला कैदी बना कूफ़ा आया है। (1)

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

अहलेबैत (अ) का कूफ़े में प्रवेश

रविवार 12 मोहर्रम सन 61 हिजरी

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ख़ानदान पर वह बारह मोहर्रम का ही मनहूस दिन था कि जब यह लुटा हुआ काफ़िला पूरी रात कूफ़े के द्वार पर रुकने के बाद कूफ़े में पहुँचा है, इसी दिन अहलेबैत (अ) का लुटा काफ़िला कैदी बना कूफ़ा आया है। (1)

जब यह काफ़िला कूफ़े पहुँचा है तो इबने ज़ियाद ने आदेश दिया कि आज किसी को भी हथियार लेकर घर से बाहर आने का अधिकार नहीं है, और उसने दस हज़ार पैदल और घुड़सवारों को गलियों और बाज़ारों में तैनात कर दिया और कहा कि ध्यान रखें कि कोई भी अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) का शिया कोई हरकत या विद्रोह न करने पाये।

उसके बाद उसने आदेश दिया कि शहीदों के सर जो पहले की कूफ़े आ चुके थे उनको वापस ले जाया जाए और इन सरों को अहले हरम के आगे आगे लेकर चला जाए और सबको एक साथ गलियों और बाज़ारों को होता हुआ कूफ़े लाया जाए।

जब लोगों ने पैग़म्बर (स) के परिवार वालों और उस ख़ानदान को जिसकी “मोहब्बत हर मुसलमान पर वाजिब” की गई थी इस अवस्था में देखा कि कटे हुए सर आगे आगे हैं, बे चादर और बे पर्दा पवित्र ख़ानदान की पवित्र महिलाएं के कजावा ऊँटों पर सवार हैं तो लोगों ने रोना शुरू कर दिया।

जब यह काफ़िला कूफ़े पहुँच गया तो इसी कूफ़े में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ), ज़ैनबे कुबरा, फ़ातिमा बिनतुल हुसैन ने अपने ग़में को दबा कर लोगों के जागरुक करने के लिये और अपना एवं अपने परिवार और पैग़म्बर (स) से अपने संबंध को बताने के लिये ख़ुतबा दिया, जिसको सुनने के बाद यज़ीद की सेना के कुछ सिपाहियों अपने कुकर्म पर लज्जित हुए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। (2)

मक़तल लिखने वालों ने बयान किया है कि ग्यारह मोहर्रम का ही वह दिन था कि जब सैय्यदुश शोहदा इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की लाशों को इमाम सज्जाद (अ) ने बनी असद के कुछ लोगों के सहयोग से दफ़्न किया। (3)

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(1) क़लाएदुन नहव, जिल्द मोहर्रम व सफ़र, पेज 204, अलवक़ाये वल हवादिस, जिल्द मोहर्रम पेज 25

(2) क़लाएदुन नहव, जिल्द मोहर्रम व सफ़र, पेज

(3) अअलामुल वर्दी, जिल्द 1, पेज 470, अलवक़ाये वल हवादिस, जिल्द मोहर्रम पेज 61, वक़ायउल अय्यामछ ततिम्मा मोहर्रम, पेज 132

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