नवीं मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ

शिम्र इमाम हुसैन (अ) के ख़ैमों के पास आया और उसने हज़रत उम्मुल बनीन के बेटो हज़रत अब्बास, अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान को बुलाया, यह लोग बाहर आये तो उसने कहा कि मैंने तुम लोगों के लिये इबने ज़ियाद के अमान ले ली है। सभी ने कहाः ईश्वर तुम्हारी अमान और...

शिम्र बिन ज़िलजौशन का कर्बला पहुंचना

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

नौ मोहर्रम ने इबने ज़ियाद की तरफ़ से शिम्र के पास एक पत्र पहुँचा पत्र मिलते ही शिम्र नुख़ैला (कूफ़े की फ़ौजी छावनी) से वह बहुत तेज़ी के साथ बाहर निकला और और गुरुवार यानी नौ मोहर्रम को ज़ोहर की नमाज़ के समय से पहले वह कर्बला पहुंच गया और उसने इबने ज़ियाद का पत्र उमरे साद को पढ़ के सुनाया।

उमरे साद ने शिम्र से कहा लानत हो तुम पर ईश्वर तुम्हारे घर को वीरान करे कितना बुरा और अपमानजनक पैग़ाम तू लाया है। ईश्वर की क़सम तूने इबने ज़ियाद को वह सुझाव मानने से  रोक दिया है जो मैंने उसको भेजा था और तू ने कार्य ख़राब कर दिया है। (1)

शिम्र कर्बला में जंग के इरादे से ही आया था, उसने उबेदुल्लाह बिन ज़ियाद से अपने भजीजों जिनमें हज़रत अब्बास का नाम भी था अमान नामा ले लिया था, जिसने उसने हज़रत अब्बास के सामने प्रस्तुत किया और कहा कि तुम मेरे भतीजे हो और मैं चाहता हूँ कि तुम हुसैन का साथ छोड़ कर हमारी तरफ़ आ जाओ, तुम्हारी जान बच जाएगी, लेकिन हज़रत अब्बास से उसके निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया।

शिम्र इमाम हुसैन (अ) के ख़ैमों के पास आया और उसने हज़रत उम्मुल बनीन के बेटो हज़रत अब्बास, अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान को बुलाया, यह लोग बाहर आये तो उसने कहा कि मैंने तुम लोगों के लिये इबने ज़ियाद के अमान ले ली है।

सभी ने कहाः ईश्वर तुम्हारी अमान और तुझ पर लानत करे, यह कैसा इंसाफ़ है कि हमे तो अमान मिल जाए लेकिन पैग़म्बर की बेटी के बेटे को अमान न मिले। (2)

मक़तल लिखने वालों ने लिखा है कि नौ मोहर्रम का ही वह दिन था कि जब युद्ध का बिगुल फूँका गया और जंग का एलान हो गया, हज़रत अब्बास इमाम हुसैन के पास आते हैं और कहते हैं कि जंग का एलान हो चुका है।

इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः

हे अब्बास मेरी जान आप पर क़ुरबान हो जाए अपने घोड़े पर सवार हो और उनसे पूछो कि क्या चाहते हैं?

हज़रत अब्बास जाते हैं और वापस आकर बताते हैं कि वह कह रहे हैं कि या तो यज़ीद की बैअत कर लो या फिर युद्ध के लिये तैयार हो जाओ।

इमाम हुसैन (अ) ने अब्बास से कहाः अगर हो सके तो उनसे कहो कि जंग को कल तक के लिये टाल दे, और आज रात को मोहलत दे दें ताकि हम आज रात ईश्वर से प्रार्थना और अल्लाह की इबादत कर सकें और नमाज़ पढ़ सकें, ईश्वर जानता है कि मैं उसके लिये नमाज़ और क़ुरआन की तिलावत को पसंद करता हूँ। (3)

हज़रत अब्बास जाते हैं और उनसे मोहलत मांगते हैं, उमरे साद आपकी इस बात को मानने में शंका दिखा रहा था, उसने अपनी सेना वालों से पूछा क्या किया जाए? उमरे बिन हज्जाज ने कहाः सुबहान अल्लाह अगर दैलम के रहने वाले और काफ़िर भी तुम से यह बात कहते तो अच्छा यह था कि तुम उनकी बात मान लेते।

आख़िरकार उमरे साद हज़रत अब्बास के पास आता है और कहता हैः हम आपको कल तक की मोहलत देते हैं, अगर तुमने हमारी बात मान ली और बैअत कर ली तो हम तुमको उबैदुल्लाह के हवाले कर देंगे और अगर न मानी तो हम तुमको नहीं छोड़ेंगे। (4)

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(1)    इरशाद शेख़ मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 89

(2)    अंसाबुल अशराफ़, जिल्द 3, पेज 184

(3)    अलमहलूफ़, पेज 38

(4)    इरशाद, शेख़ मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 91

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