मोहाजिर एवं अंसार की औरतों के बीच फ़ातेमा ज़हरा का ख़ुत्बा

फ़ातेमाः मैंने सुबह की इस हालत में कि इस दुनिया से बेज़ार हूँ और मुझे तुम्हारी दुनिया से नफ़रत है और तुम्हारे वह मर्द जिन्होंने मेरी सहायता नहीं की उनसे प्रसन्न नहीं हूँ, उनको आज़माने के बाद मैंने उन्हें दूर फेंक दिया और अपने तजुर्बे से उनसे दुश्मनी की।

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

जब हज़रते ज़हरा (स) ने मस्जिद में ख़ुत्बा पढ़ा और उसके बाद अबूबक्र ने जो कहा और उसका जो आपने उत्तर दिया, और आप पर जो आरोप लगाया गया आदि..

आपके मोहाजिर और अंसार के बीच दिए गए इस ख़ुत्बे का प्रभाव यह था कि पूरा मदीना रो रहा था सब अफ़सोस कर रहे थे, लेकिन आपके ऊपर जो आरोप लगाए गए उनका प्रभाव यह हुआ कि आप की बीमारी गंभीर हो गई, अगर क़ुरआन को देखा जाए तो क़ुरआन में केवल एक ऐसी महिला हैं जिनका नाम लेकर उनके बारे में बयान किया गया है और वह हैं हज़रत ईसा की माँ हज़रते मरयम क़ुरआन में इनके नाम का पूरा एक सूरा है जिसको सूरा मरयम कहा जाता है। कभी सोंचा है कि क्यों केवल मरयम का ही नाम क़ुरआन में आया है किसी और महिला का क्यों नहीं आया?

क्योंकि हज़रत मरयम (स) पर आरोप लगाया गया कि तुम ने बुरा कार्य किया है और यह बेटा जो तुम्हारी गोद में है यह उसी कार्य का नतीजा है।

इसीलिए ईश्वर ने मरयम (स) को सात्वना देने के लिए मरयम के नाम का एक पूरा सूरा क़ुरआन में रखा औऱ उनकी पवित्रता की गवाही दी।

लेकिन इसी प्रकार का एक आरोप हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) पर भी लगाया गया जिसको हमने अपने लेख "ख़ुत्बा -ए- फ़िदक का संक्षिप्त परिचय 2" में बयान किया है। यह एक ऐसा आरोप था जिसने फ़ातेमा (स) को और अधिक बीमार कर दिया।

जब आप बहुत बीमार हो गईं तो मदीने की औरतें आपको देखने और अपने पतियों के कार्यों की क्षमा मांगने के लिए आपके पास आती हैं

لمّا مرضت فاطمة عليها السلام المرضة الّتي توفّيت فيها، دخلت عليها نساء المهاجرين والانصار يعدنها، فقلن لها: كيف أصبحت من علّتك يا ابنة رسول اللَّه؟

मोहाजिर और अंसार की यह औरतें आपके पास आती हैं और आपसे आपकी बीमारी के बारे में प्रश्न करती है और पूछती हैं कि हे पैग़म्बर (स) की बेटी बीमारी में अब आपका क्या हाल है?

حمدت اللَّه وصلّت على أبيها، ثم قالت:

तो आप ईश्वर की प्रशंसा करती है और अपने पिता मोहम्मद पर सलवात पढ़ती है, फिर आप फ़रमाती  है

اَصْبَحْتُ وَاللَّهِ عائِفَةً لِدُنْيا كُنَّ قالِيَةً لِرِجالِكُنَّ لَفَظْتُهُمْ بَعْدَ اَنْ عَجَمْتُهُمْ وَ سَئِمْتُهُمْ بَعْدَ اَنْ سَبَرْتُهُمْ

मैंने सुबह की इस हालत में कि इस दुनिया से बेज़ार हूँ और मुझे तुम्हारी दुनिया से नफ़रत है और तुम्हारे वह मर्द जिन्होंने मेरी सहायता नहीं की उनसे प्रसन्न नहीं हूँ, उनको आज़माने के बाद मैंने उन्हें दूर फेंक दिया और अपने तजुर्बे से उनसे दुश्मनी की।

फ़िर आप फ़रमाती है

कितना बुरा है लतवार की धार का कुंद हो जाना, और भाले का कमज़ोर हो जाना और राय में मतभेद होना।

फ़िर आप कहती हैं

بِئْسَ مَا قَدَّمَتْ لَهُمْ أَنفُسُهُمْ أَن سَخِطَ اللَّـهُ عَلَيْهِمْ وَفِي الْعَذَابِ هُمْ خَالِدُونَ

(सूरा माएदा आयत 80)

निश्चय ही बहुत बुरा है जो उन्होंने अपने आगे भेजा है, ईश्वर का प्रकोप हुआ उनपर और वह सदैव अज़ाब में रहेंगे।

फिर आप फ़रमाती है

मजबूर होकर मैंने इस नाशुक्री और हक़ की रक्षा में सुस्ती का ज़िम्मा उनकी गर्दनों पर डाल दिया

जब राफ़े इब्ने रोफ़ाआ ने यह कहा था कि अगर अली (अ) पहले आते तो हम उनकी बात मान लेते और कोई भी अली (अ) का विरोध नहीं करता तो आपने कहा था कि ग़दीर के बाद किसी के पास कोई बहाना नहीं रह जाता है और तुम क्या समझते हो कि अली (अ) पैग़म्बर (स) के जनाज़े के अकेला छोड़कर ख़िलाफ़त के लिए आगे बढ़ जाते, इन सारी बातों से पता चलता है कि फ़िदक का मसला केवल एक ज़मीन का मामला नहीं था बल्कि यह बात थी ख़िलाफ़त और जानशीनी की और इसी लिए फ़ातेमा ज़हरा (स) ने अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक यह प्रयत्न किया कि ख़िलाफ़त अपने वास्तविक स्थान यानी अली (अ) के पास पलट आए।

इसीलिए आप फ़रमाती हैं

मजबूर होकर मैंने इस नाशुक्री और हक़ की रक्षा में सुस्ती का ज़िम्मा उनकी गर्दनों पर डाल दिया और बदशगुनी और इसकी गंभीरता को उनके कांधों पर डाल दिया और हर तरफ़ से उनपर मैंने हमला किया, तो अत्याचार करने वालों के हिस्से में अपमान, हलाकत और ईश्वर की रहमत से दूरी हो।

फिर आप फ़रमाती हैं

وَ يْحَهُمْ اَنَّى زَحْزِحُوها عَنْ رَواسِي الرِّسالَةِ وَ قَواعِدِ النُّبُوَّةِ وَ الدِّلالَةِ، وَ مَهْبِطِ الرُّوحِ الْاَمينِ وَ الطِّبّينِ بِاُمُورِالدُّنْيا وَ الدّينِ، اَلا ذلِكَ هُوَ الْخُسْرانُ الْمُبينُ، وَ مَا الَّذى نَقِمُوا مِنْ اَبِي‏الْحَسَنِ عَلَيْهِ‏السَّلامُ، نَقِمُوا وَاللَّهِ مِنْهُ نَكيرَ سَيْفِهِ و تبحره فی کتاب الله.

आप फ़रमाती हैं जानते हो तुम लोगों ने किस चीज़ से दूरी की है और उसके स्थान पर कौन सी चीज़ लाए हो? सत्तर फ़ज़ीलतें अली (अ) के पास ऐसी हैं जैसी किसी के पास नहीं है उन्हीं में से एक फज़ीलत यह है कि आपकी पत्नी वह है जो स्वंय मामूस हैं उनकी संतान मासूम है, पूरे संसार में अली (अ) के अतिरिक्त कोई दूसरा ऐसा है जिसको यह फ़ज़ीलत मिली हो?

आप फ़रमाती हैं

वाय हो उन पर किस प्रकार उन्होंने हुकूमत के आधार को रिसालत के मज़बूत स्तंभ, नबूवत व हिदायत के आधार और जिब्रईल के नाज़िल होने के स्थान और दीन एवं दुनिया के मामलों के जानकार व्यक्ति से दूर कर दिया?

हमारा यह अक़ीदा है कि पैग़म्बर (स) की वफ़ाते के बाद तशरीई वही समाप्त हो जाती है लेकिन ख़बर देने वाली वही समाप्त नहीं होती है जैसा कि ख़ुद क़ुरआन में सूर-ए- क़द्र में मुज़ारे के सेग़े के साथ इरशाद होता है कि

تَنَزَّلُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ

रूह और फ़रिश्तें नाज़िल होते हैं

आप फ़रमाती हैं कि तुमने उसको जो दीन और दुनिया के बारे में सबसे अधिक जानकारी रखता था पीछे कर दिया है।

जैसा कि हम मानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस संसार की सबसे महान हस्ती थे और आपने अपना सारा ज्ञान और इल्म इमाम अली (अ) को दे दिया था तो पैग़म्बर (स) के बाद सबसे महान अली (अ) थे जिनके बारे में ख़ुद पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया था के अली (अ) तुम्हारी हैसियत मेरे नज़दीक वैसी ही है जैसी हारून के नज़दीक मूसा की थी। हज़रते फ़ातेमा ज़हरा (स) भी यही कह रहीं हैं कि तुमने अली (अ) को जो कि नफ़्से रसूल थे छोड़ दिया है।

अब जब्कि तुमने ऐसा कर दिया है तो सुनो

اَلا ذلِكَ هُوَ الْخُسْرانُ الْمُبينُ

तुमने खुला हुआ घाटा किया है।

ख़ुदा तुम्हारे लिए यह चाहता था कि तुम्हारा हाकिम एक मासूम हो जो ना अपने लिए कुछ ले और न किसी पर अत्याचार करे लेकिन स्वंय तुम लोगों ने इसको स्वीकार नहीं किया।

और किस चीज़ ने तुमको इस बात पर उभारा कि तुम लोग अबुल हसन अली (अ) इब्ने अबी तालिब का अनुसरण न करो? (निःसंदेह तुम लोगों उनको छोड़ा है उनकी) तलवार की सख़्ती के कारण (यह अली (अ) की तलवार ही थी जिसने इस्लाम को फैलाया आपके तलवार से मरने वाला तो नर्क चला जाता था लेकिन उसके भाई बाप...आदि के दिलों में आपके लिए नफ़रत का बीज छोड़ जाता था)

आप फ़रमाती हैं कि अली (अ) वह है

जो किताबे ख़ुदा के बारे में सबसे अधिक जानकारी रखते हैं, जंग के मैदान में मज़बूत हैं, ईश्वरीय कार्यों के लिए गंभीर हैं।

फिर आप फ़रमाती हैं

ख़ुदा की क़सम! अगर वह उन लोगों से दूर हो जाते जिनको रसूले ख़ुदा ने क़रार नहीं दिया था और जिसको पैग़म्बर (स) ने चुना था उसका अनुसरण करते, वह लगाम को हाथ में लेता तो इन लोगों को आसानी, और नर्मी के साथ चलाता कि जिससे न सवारी को थकन होती और न सवार को कठिनाई और थकन और उनको साफ़, स्वच्छ, मीठे भरे हुए पानी के चश्में पर लाते जिसके किनारे स्वच्छ होते और उनको सेराब कर के वापस लाता और वह छिपे स्थानों और आशकार जगहों पर उनका शुभचिंतक था, और ख़ुद दुनिया की साज सज्जा और नेमत से फ़ायदा नहीं उठाता मगर केवल उतना ही जितना एक प्यासा व्यक्ति मौत से बचने के लिए एक घूंट पानी पीता है, या रोटी के एक टुकड़े भर जितना यतीमों का सरपरस्त उनके माल से आवश्यकता भर लेता है।

، وَ لَبانَ لَهُمُ الزَّاهِدُ مِنَ الرَّاغِبِ وَ الصَّادِقُ مِنَ الْكاذِبِ.

और तब उनको सामने साफ़ हो जाता कि ज़ाहिद कौन है और दुनिया को चाहने वाला कौन, और सच्चा कौन हैं और झूठा कौन।
हम इस संसार पर एक मासूम की हुकूम का सही अर्थ नहीं जानते हैं।

अगर कार्य सहीं हो और सभी लोग एक मासूम का अनुसरण करें तो मासूम की हुकूमत लोगों पर ईश्वर की हुकूमत है। ईश्वरीय ख़लीफ़ा की बैअत करना ख़ुदा की बैअत करना है।

مَّن يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللَّـهَ

(सूरा निसा आयत 80)

जो रसूल की इताअत करता है (उनकी बैअत करता है) उसने ख़ुदा की इताअत (और बैअत) की है।

आप फ़रमाती हैं कि अगर तुम लोगों ने पैग़म्बर (स) के वास्तविक ख़लीफ़ा का साथ न छोड़ा होता और उसका अनुसरण करते तो तुम कठिनाइयों में न पड़ते, तब तुम लोग इस बात पर मजबूर न होते कि तीसरे ख़लीफ़ा के ज़माने में विद्रोह कर के उनको क़त्ल करते उसके बाद की सारी घटनाएं, और सबसे महत्वपूर्ण कि तीसरे ख़लीफ़ा के क़त्ल के बाद मुसलमान उनको मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ़्न होने का विरोध करते हैं और उनको यहीदियों को क़ब्रिस्तान में दफ़्न किया जाता है।

सवाल यहीं है कि हज़रत उस्मान को क्यों पहले और दूसरे ख़लीफ़ा के पास नहीं दफ़्न किया गया?

आख़िर ऐसा क्या हुआ कि तीसरे ख़लीफ़ा को क़त्ल किया गया?

क्यों उनको पहले और दूसरे ख़लीफ़ा के पास दफ़्न नहीं होने दिया गया?

आप अपने इस कथन में इसी बात की तरफ़ इशारा कर रही हैं और भविष्यवाणी कर रहीं हैं कि अगर तुम लोगों ने रसूल के वास्तविक ख़लीफ़ा का साथ छोड़ दिया तो तुम लोगों को यह दिन देखना पड़ेगा।

आप फ़रमाती हैं

وَلَوْ أَنَّ أَهْلَ الْقُرَىٰ آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَفَتَحْنَا عَلَيْهِم بَرَكَاتٍ مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ وَلَـٰكِن كَذَّبُوا فَأَخَذْنَاهُم بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ

(सूरा आराफ़ आयत 96)

और हम भी इसी दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, वह दिन कि जब एक मासूम पूरे समाज के लिए राहनुमा होगा कि जब ऐसा दिन आएगा तो आसमान और ज़मीन की बरकतों का मुंह खोल दिया जाएगा।

وَلَـٰكِن كَذَّبُوا فَأَخَذْنَاهُم بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ

लेकिन उन्होंने झुठलाया

आज यह इस्लामी समाज क्यों मुश्किलों में गिरफ़्तार है?

सारी इस्लामी हुकूमतों में पैग़म्बर (स) का वास्तविक ख़लीफ़ा कौन है?

आज इस्लामी समाज की हालत ऐसी क्यों कि है म्यानमार में मुसलमानों को क़त्ल किया जा रहा हो और सऊदी अरब में बादशाह अमरीका के प्रधानमंत्री से हाथ मिला रहा हो।

इस सारी समस्याओं और मुश्कियों का कारण यह है कि इस्लामी समाज की रहबरी से मासूम को अलग कर दिया गया, मासूम से दूरी कर ली गई।

فَأَخَذْنَاهُم بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ

हालत यहां तक पहुंच गए कि बनी अब्बास ने विद्रोह किया बनी उमय्या को कत्ल कर के उनको काफ़िर कहा। अब प्रश्न यह है कि बनी अब्बास सही थे या बनी उमय्या?

यह दोनों आपस में शत्रु हैं लेकिन मुसलमानों के अक़ीदे के अनुसार दोनों ही पैग़म्बर (स) के ख़लीफ़ा हैं! पैग़म्बर (स) को दो ख़लीफ़ा एक दूसरे को काफ़िर कह रहे हैं!

रसूल का ख़लीफ़ा कौन है? बनी अब्बास या बनी उमय्या

कौन ख़लीफ़ा है? इमाम अली (अ) या मोआविया जिन्होंने आपस में जंग की।

हक़ किसके साथ है? क्या वह लोग जिन्होंने तीसरे ख़लीफ़ा का क़त्ल किया वह सहाबा सही थे या हक़ तीसरे ख़लीफ़ा के साथ था? उससे बड़ा प्रश्न यह है कि जिन्होंने तीसरे ख़लीफ़ा का क़त्ल किया वह सहाबी थे या नहीं? अगर वह सहाबी थे तो सारे सहाबी तो आदिल हैं।

फिर बीबी फ़ातेमा ज़हरा (स) क़ुरआन की यह आयत पढ़ती हैं

وَالَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْ هَـٰؤُلَاءِ سَيُصِيبُهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا وَمَا هُم بِمُعْجِزِينَ

(सूरा ज़ोमर आयत 51)

फिर आप फ़रमाती हैं

اَلا هَلُمَّ فَاسْمَعْ

तो आओ और सुनो

، وَ ما عِشْتَ اَراكَ الدَّهْرَ عَجَباً، وَ اِنْ تَعْجَبْ فَعَجَبٌ قَوْلُهُمْ

इस संसार में जितना भी जीवित रहोगे उतने की अजाएब देखोगे और जो यह बात कही जा रही है वह अजीब है  

، لَيْتَ شِعْرى اِلى اَىِّ سِنادٍ اسْتَنَدوُا، وَ اِلى اَىِّ عِمادٍ اِعْتَمَدُوا، وَ بِاَيَّةِ عُرْوَةٍ تَمَسَّكُوا

काश मुझे पता होता हि तुमने किस चीज़ पर तकिया किया है और किस स्तंभ पर टेक लगाई है और किस रस्सी को पकड़ा है।

हमको पता होना चाहिए कि यह रस्सी जो हमने पकड़ी है वह पैग़म्बर (स) की सुन्नत है? तो अगर यह सुन्नत है कि पैग़म्बर (स) जब इस संसार से गए तो उनका कोई ख़लीफ़ा नहीं था बल्कि यह मुसलमान थे जिन्होंने उनके ख़लीफ़ा का चुनाव किया था। तो फिर जब पहले ख़लीफ़ा इस संसार से जा रहे थे तो उन्होंने अपने बाद के लिए ख़लीफ़ा क्यों नियुक्त किया, यह तो पैग़म्बर (स) की सुन्नत का विरोध है? दूसरे ख़लीफ़ा इससे भी एक क़दम आगे बढ़े और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) और पहले ख़लीफ़ा कि विरुद्ध एक शूरा (सेनेट) बनाई। तो आख़िर सुन्नत कौन सी है?

ख़लीफ़ा न बनाना।

ख़लीफ़ा बनाना।

या फिर शूरा बनाना?

हज़रते फ़ातेमा ज़हरा (स) फ़रमाती हैं

وَ اِنْ تَعْجَبْ فَعَجَبٌ قَوْلُهُمْ

अगर अजीब है तो यह बाते अजीब हैं।

फिर आप फ़रमाती हैं

اِسْتَبْدَلوُا وَاللَّهِ الذَّنابي بِالْقَوادِمِ، وَالْعَجُزَ بِالْكاهِلِ،

हां पीछे चलने वालों को साबिक़ों के और अनुसरण करने वालों को सरदारों के स्थान पर चुन लिया

जो सबसे आगे (साबिक़) था उसको तुम लोगों ने छोड़ दिया जो श्रेष्ठ था उसको छोड़ दिया।

इस्लाम में साबिक़ कौन है?

वह जिसने अपने जीवन में एक क्षण के लिए भी किसी बुत के सामने सर नहीं झुकाया, एक क्षण के लिए भी शिर्क नहीं किया, वह जिसने पैग़म्बर (स) की गोद में परवरिश पाई वह जिसने पैग़म्बर (स) के सारे फ़ज़ाएल को अपने अंदर एकत्र कर लिया, वह अली (अ) जिन्होंने सात साल की आयु में पैग़म्बर (स) के पीछे नमाज़ पढ़ी, यह अली (अ) साबिक़ थे इस्लाम में लेकिन तुम लोगों ने अली (अ) को छोड़ दिया और दूसरे का दामन थाम लिया।

، فَرَغْماً لِمُعاطِسِ قَوْمٍ يَحْسَبُونَ اَنَّهُمْ يُحْسِنُونَ صُنْعاً

अपमान हो उस गुट के लिए जो यह समझते हैं कि उन्होंने अच्छा कार्य किया है

कौन सा अच्छा कार्य।

क्या सक़ीफ़ा बनी सायदा में सभी एकमत थे? उस समय बनी हाशिम कहां थे, अली (अ) कहां थे पैग़म्बर (स) के जनाज़े को किस ने दफ़्न किया?

साद बिन ओबाद जिसके बारे में यह कहा जाता है कि उनको जिनों के क़त्ल किया उनका विरोध क्यों हुआ?

फिर आप फ़रमाती हैं

اَلا اِنَّهُمْ هُمُ الْمُفْسِدُونَ وَ لكِنْ لا يَشْعُرُونَ

यहीं लोग वास्तव में फ़साद करने वाले हैं लेकिन यह ख़ुद नहीं जानते हैं

وَيْحَهُمْ اَفَمَنْ يَهْدى اِلى الْحَقِّ اَحَقُّ اَنْ يُتَّبَعَ اَمَّنْ لاَيهِدّى اِلاَّ اَنْ يُهْدى، فَما لَكُمْ كَيْفَ تَحْكُمُونَ

आप फ़रमाती हैं कि वह जो कि हक़ और हक़ीकत है उसका अनुसरण करना अच्छा है या उसके अतिरिक्त किसी दूसरे का?

यह हक़ और हक़ीकत कौन है?

पैग़म्बरे इस्लाम ने इसको पहचानने के लिए मुसलमानों के हाथ में कई बार मापदंड दिया आप फ़रमाते थे कि “अली (अ) हक़ के साथ हैं और हक़ अली (अ) के साथ हक़ उधर जाता है जिधर अली (अ) जाते हैं”।

बावजूद इसके कि हदीस को लिखने और बोलने पर पाबंदी लगाई गई, झूठी हदीसें गढ़ी गईं, हदीसों को बयान करने वालों पर अत्याचार किया गया, यानी हर प्रकार से वास्तविक्ता और सच्चाई को दबाने का प्रयत्न किया गया, लेकिन इसके बावजूद जो कुछ हम तक पहुंचा है उसी के माध्यम से हम सच्चाई और हक़ीक़त को पहचान सकते हैं।

फिर आप फ़रमाती हैं

اَما لَعَمْرى لَقَدْ لَقَحَتْ، فَنَظِرَةٌ رَيْثَما تُنْتِجُ ثُمَّ احْتَلِبُوا مِلْاَ الْقَعْبِ دَماً عَبيطاً وَ ذِعافاً مُبيداً

क़सम है मुझे मेरी जान की उनका कार्य का नुत्फ़ा ठहर चुका है कुछ धैर्य रखो ताकि उसका नतीजा आ जाए और वह बच्चा जन दे, और तब दूध के स्थान पर ताज़ा ख़ून और मारने वाला ज़हर दुहेंगे।

अगर कोई उस मासूम को जो दुनिया के लोभ में नहीं पड़ता है जो न्याय करने वाला है जिसको ईश्वर ने अपना ख़लीफ़ा बनाया है उसको स्वीकार न करे और उसके स्थान पर दूसरे को स्वीकार कर ले तो उस पर कौन सी मुसीबतों के पहाड़ टूटते हैं?

क्या कभी सोंचा है कि आख़िर क्यों किसी भी नबी को इन्सानों ने क्यों नहीं चुना? क्यों ख़ुदा बनियों का चुनाव करता है?

क्योंकि हम इन्सान एक दूसरे की योग्यताओं के बारे में सही जानकारी नहीं रखते हैं, दूसरे तो दूर की बात है हम अपने बारे में जानकारी नहीं रखते हैं।

जब मूसा अपने साथ तौरैत लेकर आए तो उनकी क़ौम ने उसको ईश्वरीय पुस्तक होने से इन्कार कर दिया और कहा कि अगर यह ख़ुदा की तरफ़ से है तो हम उस ख़ुदा को देखना चाहते हैं। मूसा न कहा कि ख़ुदा दिखाई नहीं देता है, लेकिन वह अपनी बात पर अड़े रहे तो मूसा ने कहा ठीक हैं अपने बीच से 70 लोगों को चुनो जो तुम मे से सबसे पवित्र और धार्मिक हों।

उन लोगों ने चुना और यह लोग हज़रत मूसा के साथ ख़ुदा को देखने के लिए चल पड़े, लेकिन यह 70 लोगों का क्या हुआ यह लोग भी मुनाफ़िक़ निकले।

और पैग़म्बर (स) का चुनाव इन्सान से जिम्मे न होने का कारण भी यही है कि चूँकि हम दूसरों की योग्यता के बारे में नहीं जानते हैं इसलिए हम जो भी चुनाव करेंगे वह ग़लत ही होगा।

इसी प्रकार अगर हम क़ुरआन में बहुसंख्यकों का हाल देखे तो पता चलता है कि अधिकतर स्थानों पर इन लोगों की निंदा की गई है।

यह उस समय है कि जब हम यह मान लें कि पहले ख़लीफ़ा के चुनाव में उस समय के अधिकतर लोग शामिल थे, जब्कि हम जानते हैं के ऐसा नहीं था, इस चुनाव में अधिकतर लोगों ने शिरकत नहीं की थी।

मसऊदी अपनी किताब मुरव्वेजुज़ ज़हम में कहता है (अबू बक्र के ख़लीफ़ा बनने के बाद) कि अधिकतर लोग मुरतद (धर्म से पलट जाना) हो गए। यह क्यों मुरतद हो गए?

वह आम राय जिसमें फ़ातेमा ज़हरा (स) न हों, अमीरुल मोमिनीन न हों, बनी हाशिम ना हों, अब्बास न हों, सलमान और अबूज़र न हों यह कैसी आम राय है।

फ़िर फ़ातेमा ज़हरा (स) फ़रमाती हैं

، هُنالِكَ يَخْسَرُ الْمُبْطِلُونَ وَ يَعْرِفُ التَّالُونَ غِبَّ ما اَسَّسَّ الْاَوَّلُونَ، ثُمَّ طيبُوا عَنْ دُنْياكُمْ اَنْفُساً وَاطْمَئِنُّوا لِلْفِتْنَةِ جاشاً

और यह वह स्थान होगा कि जब अहले बातिल को घाटा उठाना होगा और भविष्य में आने वाले पूर्वजों के कार्यों को जान जाएंगे।

तो तुम लोग अपनी जानों से हाथ धोने के लिए तैयार हो जाओ, और फ़ितना पैदा होने के लिए इत्मीनान कर लो,

وَ اَبْشِرُوا بِسَيْفٍ صَارمٍ

और बशारत हो तुमको काटने वाली तलवारों की

आप मुसलमानों के इतिहास को देखें कि इन मुसलमानों के साथ क्या हुआ, जैसा कि इतिहास लिखता है कि ख़ालिद बिन वलीद ने मालिक बिन नुवैरा की सुन्दर पत्नी को देखा, मालिक को क़त्ल किया उसकी पत्नी के गिरफ़्तार किया और उसी रात एक मुसलमान की पत्नि का बलात्कार किया।  

इसीलिए फ़ातेमा ज़हरा (स) फ़रमाती हैं

बशारत हो तुमको काटने वाली तलवारों की और अत्याचारी की हुकूमत की, फैलने वाले आशोब की और अत्याचारियों के दमन और अत्याचार की इस प्रकार की तुम्हारा हिस्सा कम और तुम्हारा गुट कमज़ोर हो जाए।

अफ़सोस हे तुम पर! कहां जा रहे हो? जान लो कि रास्ता तुम से छिप गया है क्या हम तुमको उस पर ले जा सकते हैं (तुम्हारी हिदायत कर सकते हैं) जब्कि तुम स्वंय नहीं चाहते हो!

जब तुम ख़ुद हिदायत नहीं पाना चाहते हो तो अहलेबैत क्या कर सकते हैं। जब बनी इस्राईल ने हारून को मूसा के ख़लीफ़ा के तौर पर स्वीकार नहीं किया तो हारून क्या कर सकते थे, हारून ने क़ौम में मतभेद नहीं फैलाया बल्कि सब्र किया।

फ़िर नबी की बेटी फ़रमाती हैं

عُمِّيَتْ عَلَيْكُمْ، اَنُلْزِمُكُمُوها وَ اَنْتُمْ لَها كارِهُونَ

क्या हम तुमको उस पर ले जा सकते हैं (तुम्हारी हिदायत कर सकते हैं) जब्कि तुम स्वंय नहीं चाहते हो!

क्या अहलेबैत इस्लाम की इस नाज़ुक स्तिथि के बाद भी मुसलमानों की हिदायत कर सकते थे? एक तरफ़ मुसैलमए कज़्ज़ाब था, दूसरी तरफ़ रूम और ईरान जैसी शक्तियां थीं वब मुनाफ़िक़ जो किसी भी मौक़े का फ़ायदा उठाने के लिए तैयार बैठे हैं ऐसी सूरत में अहलेबैत क्या कर सकते हैं। हारून जब अपनी उम्मत की तरफ़ से ठुकरा दिए गए तो उन्होंने क्या किया? अमीरुल मोमिनीन भी इस उम्मत के हारून हैं उनको भी हारून की ही भाति सब्र करना होगा।

इसके बाद रावी कहता है कि जब औरतों फ़ातेमा ज़हरा (स) की बातों को सुना तो उन्होंने जाकर अपने मर्दों से आप की बातें कहीं, उसके बाद मुहाजिर और अंसार का एक गुट आपसे क्षमा याचना करने के लिए आपके सामने प्रस्तुत हुआ।

और आपसे इस प्रकार कहाः

हे औरतों की सरदार! अगर अबुल हसन इस अहद को होने और बैअत के मज़बूत होने से पहले यह मसला याद दिला देते तो हम तो उनके अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति की बैअत नहीं करते।

यहां पर मोहाजिर और अंसार की तरफ़ से बैअत के शब्द का प्रयोग करना बता रहा है कि फ़िदक का मसअला केवल एक ज़मीन के टुकड़े का मसअला नहीं था बल्कि यह जुड़ा हुआ था ख़िलाफ़त और इमामत से।

फ़िदक हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की ज़ुलफ़ेक़ार है, आप जिस भी दलील से फ़िदक वापस लेने में सफ़ल हो जाती उसी दलील से अली (अ) के लिए ख़िलाफ़त को भी वापस पाने की कोशिश करती और ख़िलाफ़त को भी उसके वास्तविक स्थान पर वापस पलटा देती, और वह स्थान जो पैग़म्बर (स) ने अली (अ) के लिए विशेष किया था वह अली (अ) तक वापस पहुंच जाता।

जब हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) ने इन लोगों के इन बहानों को देखा तो आपने फ़रमायाः

اِلَيْكُمْ عَنّى، فَلا عُذْرَ بَعْدَ تَعْذيرِكُمْ، وَ لا اَمْرَ بَعْدَ تَقْصيرِكُمْ

दूर हो जाओ मुझसे तुम्हारा कोई भी बहाना स्वीकार्य नहीं है।

आपके यहीं शब्द एक दूसरे स्थान पर भी मिलते हैं कि जब आपने मस्जिद में ख़ुत्बा दिया तो राफ़े बिन रोफ़ाआ नामी व्यक्ति ने कहा था कि अगर अली (अ) पहले आते और हमको याद दिलाते तो हम अली (अ) की ही बैअत करते तो उस समय भी आपने यही फ़रमाया था कि दूर हो जाओ मुझसे ग़दीरे ख़ुम के बाद किसी के लिए बहाने का कोई स्थान बाक़ी नहीं रह जाता है तुम सबने ग़दीर में अली (अ) की बैअत की थी।

इसके बाद हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की बीमारी गंभीर हो जाती हैं और जिसके बाद पैग़म्बर (स) की बेटी इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए स्वर्ग सिधार जाती हैं और आपकी शहादत हो जाती है।

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