फ़िदक, जब सच्चे गवाहों को झुठला दिया गया

जब हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का फ़िदक छीना गया और आपने उसे वापस मांगा तो उस समय की सरकार यानी पहले ख़लीफ़ा ने आपसे गवाह मांगे कि साबित करो यह फ़िदक तुम्हारा है, आपने गवाह के तौर पर इमाम अली, उम्मे एमन और पैग़म्बर के दास रेबाह को प्रस्तुत किया, लेकिन इन लोगों की

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

जब हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का फ़िदक छीना गया और आपने उसे वापस मांगा तो उस समय की सरकार यानी पहले ख़लीफ़ा ने आपसे गवाह मांगे कि साबित करो यह फ़िदक तुम्हारा है, आपने गवाह के तौर पर इमाम अली, उम्मे एमन और पैग़म्बर के दास रेबाह को प्रस्तुत किया, लेकिन इन लोगों की गवाही को स्वीकार नहीं किया गया।

अब सबसे पहला प्रश्न यह है कि एक क़ाज़ी या जज गवाह क्यों मांगता है?

क़ाज़ी गवाह इसलिए मांगता है कि उसके पता चल सके कि कौस सच बोल रहा है और कौन झूठ।

लेकिन अगर दावा करने वाला वह व्यक्ति हो जो कि ख़ुद मासूम हो तो उसके बाद गवाही का कोई प्रश्न नहीं रह जाता है क्योंकि मासूम झूठ नहीं बोलता है,

वह अमीरुम मोमिनीन जिनकी महानता और अज़मत के बारे में क़ुरआन में अलग अलग आयतों में अलग अलग अंदाज़ में बयान किया गया है, वह अमीरुल मोमिनी जिसके लिए आयत उतरी है कि वह इमाम मुबीन है وَكُلَّ شَيْءٍ أَحْصَيْنَاهُ فِي إِمَامٍ مُّبِينٍ वह अमीरुल मोमिनीन जिनकी गवाही को क़ुरआन ने सच्चा माना और कहाः قُلْ كَفَىٰ بِاللَّـهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ وَمَنْ عِندَهُ عِلْمُ الْكِتَابِ  वह अमीरुल मोमिनीन जिनके बारे में कहा गया  وَقُلِ اعْمَلُوا فَسَيَرَ‌ى اللَّـهُ عَمَلَكُمْ وَرَ‌سُولُهُ وَالْمُؤْمِنُونَ वह अली जिनकी महानता और इस्मत की गवाही स्वंय क़ुरआन ने इन शब्दों में दी है إِنَّمَا يُرِ‌يدُ اللَّـهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ الرِّ‌جْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَ‌كُمْ تَطْهِيرً‌ا  इन आयतों को हमने केवल नमूने के तौर पर पेश किया है, लेकिन इस सारी विशेषताओं के बाद भी जब अली ने फ़िदक के लिए गवाही दी तो आपकी गवाही स्वीकार नहीं की गई, और आश्चर्य की बात तो यह है कि जो लोग अदालते सवाबा का झंढा उठाएं हुए हैं और कहते हैं कि सारे सहाबी सच्चे हैं उन्होंने पैग़म्बर के नफ़्स की बात को स्वीकार नहीं किया।

दूसरा प्रश्न यह है कि हज़रते ज़हरा जो कि आयते ततहीर में समिलित हैं और उम्मे एमन जिनको स्वर्ग की महिला कहा गया है क्या उनकी गवाही झूठी हैं?!!!

क्या यह संभव है कि फ़ातेमा ज़हरा एक झूठी चीज़ का दावा करें?

सही मुस्लमि में अहलेबैत (अ) की फ़ज़ीलत के अध्याय में हदीस नम्बर 6261 और सुनने तिरमिज़ी में फ़ज़ाएल फ़ातेमा के अध्याय में हदीस नम्बर 3871 में आयते ततहीर को लिखा है।

अब प्रश्न यह है कि अगर क़रार यह हो कि फ़ातेमा और अली की बात में भी झूठ की शंका हो और मेरे जैसे आम इन्सान की बात में भी झूठ की शंका हो, इन जैसे महान लोगों से भी गवाह मांगा जाए और मेरे जैसे आम आदमी से भी तो फिर यह आयते ततहीर का लाभ क्या है और ईश्वर ने इसको क्यों उतारा है?

इतिहास गवाह है कि हुजै़मा (जिन्होंने पैग़म्बर के बारे में गवाही दी जब्कि उन्होंने देखा भी नहीं था और उनका तर्क यह था कि हमारा विश्वास यह है कि पैग़म्बर मासूम है उन्होंने स्वर्ग और नर्क की ख़बरें दी है तो वह चूंकि मासूम हैं इसलिए झूठ नहीं बोल सकते) के दावे को बिना किसी गवाह के स्वीकार कर लिया गया और वह ज़ुश्शहादतैन (दो गवाह वाले) के नाम से प्रसिद्ध हुए। लेकिन अहलेबैत जो मासूम हैं और जिनके लिए आयते ततहीर नाज़िल हुई उनसे गवाही मांगी गई और हद यह है कि गवाही के बाद भी उनकी बात स्वीकार नहीं की गई।

सुन्नी किताबों में भी यह हदीस विभिन्न शब्दों में आई है कि अली हक़ के साथ हैं और हक़ अली के साथ, अगर इसके बाद भी अली की गवाही स्वीकार ना की जाए तो इस हदीस का क्या मतलब रह जाता है? वह अली जो स्वंय सच और झूठ का मापदंड हैं क्या उनके बारे में यह संभावना रह जाती है कि आप झूठ बोलेंगे!!!?

मजमउज़्ज़वाए में इसी हदीस को दूसरे तरीक़े से बयान किया गया है कि पैग़म्बर ने इमाम अली की तरफ़ इशारा किया और फ़रमायाः

الحق مع ذا و الحق مع ذا

तारीख़े बग़दाद ने उम्मे सलमा से यह रिवायत की है कि जब जंगे सिफ़्फ़ीन में लोग सच और झूठ को नहीं पहचान पा रहे थे तब इस हदीस ने बहुत से लोगों का मार्गदर्शन किया और बताया कि हक़ किस गुट के साथ है, हदीस इस प्रकार है

علی مع الحق والحق مع علی و لن یفترقا حتی یرد علی الحوض یوم القیامة

रबीउल अबरार जिल्द 1 पेज 828 में उम्मे सलमा से रिवायत है कि पैग़म्बर ने फ़रमायाः

علی مع الحق و القران والحق والقران مع علی ولن یفترقا حتی یرد علی الحوض

इन सारी हदीसों के बाद प्रश्न यह नहीं रह जाता है कि अली सच बोल रहे हैं या झूठ बल्कि प्रश्न यह है कि आपकी बात स्वीकार क्यों नहीं की गई, क्योंकि इन सारी हदीसों और आयतों के बाद भी आपकी बात को स्वीकार ना करना इसी तरह है कि कोई क़ुरआन या पैग़म्बर की बात को स्वीकार ना करे।

अब रहा सवाल उम्मे एमन की गवाही का तो यह वह महिला हैं जिनके बारे में पैग़म्बर ने फ़रमाया था कि आप स्वर्ग कि महिलाओं में से हैं।

तबक़ातुल क़ुबरा जिल्द 10 पेज 213 और अलएसाबा जिल्द 8 पेज  172 हदीस 11892 में इस हदीस को लिखा है

من سره ان یتزوج امرءة من اهل الجنة فلیتزوج ام ایمن

यो यह चाहता है कि स्वर्ग की नारी के साथ विवाह करे तो वह उम्मे एमन के साथ शादी करे।

जिस महिला के बारे में पैग़म्बर ने यह फ़रमाया हो क्या वह झूठ बोल सकती है? अगर नहीं तो उनकी गवाही को स्वीकार क्यों नहीं किया गया?

सोनने अबी दाऊद जिल्द 3 पेज 306 हदीस 3607 में आया है कि जब ज़ुश्शहादतैन ने गवाही दी पैग़म्बरे इस्लाम ने उस एक व्यक्ति की गवाही तो दो लोगों की गवाही के तौर पर स्वीकार किया

सही बुख़ारी जिल्द 3 पेज 57 में लिखता है कि जब बैहरैन से जीत का माल अबूबक्र के पास लाया गया तो तो जाबिर ने एक दावा किया और कहा कि पैग़म्बर ने मुझ से वादा किया था कि जब बैहरैन का माल आएगा तो मैं तुमको दूंगा।

बिर के इस दावे पर बिना किसी गवाही और दलील के आपको वह माल दे दिया गया और कहा कि पैग़म्बर ने तुमसे जितना वादा किया था उतना ले लो।

कितने आश्चर्य की बात है कि जब जाबिर किसी चीज़ का दावा करते हैं तो उनसे गवाही तक नहीं मांगी जाती है और उनकी बात को स्वीकार कर लिया जाता है लेकिन जब नबी की बेटी अपना हक़ मांगती है तो उससे कहा जाता है कि गवाह लाओं, और गवाह लाने के बाद भी उसकी बात को स्वीकार नहीं किया जाता है!!!

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