फ़िदक किसकी प्रापर्टी है?

सोंचने की बात है कि अरब का वह रेगिस्तान कि जहां अगर ज़मज़म जैसा एक चश्मा जारी हो जाए तो वहां पूरी एक बस्ती आबाद हो जाती है अलग अलग स्थानों से लोग रहने के लिए आ जाते हैं तो अगर किसी स्थान पर चश्मों की भरमार हो तो वहा क्या स्थिति होगी और उसकी वास्तविक क़ीमत

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

 वह यहूदी जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की विशेषताओं के बारे में सुन रखा था, यह लोग हिजाज़ और उसके आस पास के क्षेत्रों में आए थे सूरा बक़री की 89वीं आयत में ख़ुदा फ़रमाता है

وَلَمَّا جَاءَهُمْ كِتَابٌ مِّنْ عِندِ اللَّـهِ مُصَدِّقٌ لِّمَا مَعَهُمْ وَكَانُوا مِن قَبْلُ يَسْتَفْتِحُونَ عَلَى الَّذِينَ كَفَرُ‌وا فَلَمَّا جَاءَهُم مَّا عَرَ‌فُوا كَفَرُ‌وا بِهِ ۚ فَلَعْنَةُ اللَّـهِ عَلَى الْكَافِرِ‌ي

और जब ख़ुदा की तरफ़ से किताब आई जो उनकी तौरैत वग़ैरा की तस्दीक़ भी करने वाली है और इसके पहले वह दुश्मनों के मुक़ाबले में उसकी के माध्यम से फ़त्ह भी चाहते थे लेकिन उसके आते ही मुनकिर हो गए हालांकि उसे पहचानते भी थे तो अब काफ़िरों पर ख़ुदा की लानत है।

तो यह यहूदी हिजाज़ आए थे लेकिन प्रश्न यह है कि यह लोग वहां क्यों आए थे?

इस बारे में जो चीज़ प्रसिद्ध है वह यह है कि यह लोग इसलिए आए थे कि जब पैग़म्बर रिसालत का एलान करें तो यह लोग उनपर ईमान ला सकें।

लेकिन यह पर एक विचार और भी है, वह यह है कि इन यहूदियों को पता था कि यह पैग़म्बर जो आएगा वह बनी इस्राईल की नस्ल से नहीं होगा, बल्कि इस्माईल की नस्ल से होगा, और यह यहूदी लोग जातपात एवं नस्ल के आधार पर बहुत ही अधिक कंट्टपंथी हैं, इसीलिए यह लोग आए थे ताकि जिस प्रकार भी संभव हो इस पैग़म्बर को ना उभरने दे या उसकी हत्या कर दें, और इस बारे में एतिहासिक किताबों में बहुत अधिक प्रमाण मौजूद है, और यह बताते हैं कि यहूदी पैग़म्बर से कितनी नफ़रत और तअस्सुब रखते थे। इन लोगों ने पैग़म्बर के पूर्वजों को मारना चाहा ताकि आप पैदा ना हो सकें।

जैसा कि क़ुरआन में आया है कि यह लोग पैग़म्बर को उसी प्रकार भलिभाति पहचानते थे जिस प्रकार एक पिता अपने बच्चे को पहचानता है।

बहरहाल जो भी कारण रहा हो यह यहूदी हिजाज़ आए थे और वहां के विभिन्न क्षेत्रों में रहते थे जिनमें से एक ख़ैबर और एक फ़िदक था।

जिस समय फ़िदक जीता गया उस समय उसकी सरदार यूशा बिन नून था।

फ़िदक को फ़िदक क्यों कहा जाता है?

फ़िदक को फ़िदक उसके पहले नागरिक के नाम के आधार पर कहा जाता है वह पहला व्यक्ति जो इस धरती पर रहने के लिए आया था उसका नाम फ़िदन इब्ने हाम था।

यह बहुत ही मूल्यवान धरती थी यहां तक कि इसकी आमदनी ख़ैबर से भी अधिक थी।

मदीने से फ़िदका की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है।

जब इन यहूदियों ने इस्लाम को मिटाने के लिए अपनी सारे कोशिशें कर ली और हर प्रकार से पैग़म्बर को मारना चाहा लेकिन उसमें कामियाब ना हो सके तो सातवी हिजरी को यहूदियों द्वारासंधि की शर्तों को बार बार तोड़ने के कारण इनसे जंग का आदेश होता है और इस्लामी सेना ख़ैबर को जीतने के लिए चल देती है, और अमीरुल मोमिनीन (अ) की दिलेरी और वीरता से इस्लामी सेना को जीत प्राप्त होती है।

दूसरे यहूदी जो ख़ैबर के यहूदियों से सम्बंध रखते थे, जब उन्होंने देखा की ख़ैबर जैसा मज़बूत क़िला गिर गया है तो उनके सामने केवल यही रास्ते बचे थे

1. पैग़म्बर से जंग करें, जंग तो वह कर नहीं सकते थे, क्योंकि अगर जंग के माध्यम से इस्लाम का मुक़ाबला कर सकते तो ख़ैबर जैसा मज़बूत क़िला ध्वस्त ना होता।

2. इस्लाम स्वीकार कर लें, इस्लाम को स्वीकार नहीं कर सकते थे क्योंकि जैसा कि हम आज के यहूदियों को देखते हैं कि उनका विश्वास है कि यहूदियों के अतिरिक्त दूसरे तमाम इन्सान जानवर हैं, जिनको बनी इस्राईल की सेवा के लिए पैदा किया गया है, हम इस्माईल की औलाद पर ईमान ले आएं!! यह संभव नहीं है हम बनी इस्राईली हैं।

यहूदियों की कट्टपंथी सोंच को इसी से समझा जा सकता है कि वह प्यासे थे जब पानी के लिए हज़रत मूसा (अ) से पानी मांगा तो एक चश्मा जारी नहीं हुआ बल्कि यह लोग बारह क़बीलों के थे इसलिए कहा कि हर क़बीले के लिए अलग चश्मा जारी किया जाए ताकि सबको पता को कि कौनसा चश्मा किस क़बीले का है जिस चश्में से एक क़बीले से पानी पिया है उससे दूसरा ना पिये।

इसी प्रकार जब हज़रत मूसा (अ) इनको फ़िरऔन से बचा कर दरियाए नील पर लाए और एक रास्ता बनाया ताकि सब निकल जाएं तब भी इनकी यही कट्टपंथी सोंच आंड़े आ गई और कहां, नहीं हम एक रास्ते से नहीं जाएंगे, हम बारह क़बीले हैं तो रास्ते भी बारह होने चाहिएं। बहरहाल इसी कट्टपंथी सोंच ने उनको इस्लाम स्वीकार करने से रोक दिया।

यहीं कट्टरपंथी सोंच ही थी कि इन लोगों ने ख़ुद ईसा को मानने से इन्कार कर दिया, जिसको ईसाईयों ने ख़ुदा कहा उसके बारे में यहूदियों ने ना जाने क्या क्या आरोप लगाए, कहा कि यह अनैतिक सम्बंधों से पैदा हुआ है।

3. हार मान लें, इन यहूदियों के पास यही एक चारा बचा था कि वह अपनी जान बचा लें और अपना माल दे दें। परिणामस्वरूप फ़िदक बिना किसी जंग के मुसलमानों के हाथ आ गया।

फ़िदक की क़ीमत

फ़िदक की क़ीमत और उसके मूल्य के बारे में मोजमुल बुलदान ने माद्दा ए फ़िदक जिल्द 4 में लिखा हैः इसमें बहुस से खजूर के पेड़ चश्में थे।

आप ख़ुद सोचिएं के अरब का वह रेगिस्तान कि जहां अगर ज़मज़म जैसा एक चश्मा जारी हो जाए तो वहां पूरी एक बस्ती आबाद हो जाती है अलग अलग स्थानों से लोग रहने के लिए आ जाते हैं तो अगर किसी स्थान पर चश्मों की भरमार हो तो वहा क्या स्थिति होगी और उसकी वास्तविक क़ीमत का कौन अंदाज़ा लगा सकेगा।

फ़िदक की क़ीमत और उसकी आमदनी बहुत अधिक थी, इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि जब हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के तर्कों से यहा साबित हो गया कि फ़िदक उनका हक़ है और पहले ख़लीफ़ा ने फ़िदक उनको वापस करना चाहा तो दूसरे ख़लीफ़ा ने कहाः अगर फ़िदक को वापस कर दिया तो इस्लामी सेना के लिए ख़र्च कहां से पूरा करेंगे?

तो फ़िदक एक ऐसी धरती है जो बिना किसी जंग के मुसलमानों के हाथ आई और यह विशेष हैं पैग़म्बरे इस्लाम से, अब यहां से चूंकि बहस फ़िक़ही हो जाएगी इसलिए हम बहुत अधिक हवाले बयान नहीं करेगें लेकिन केवल आपके सामने वह आयत बयान करेंगे जिससे आप को पता चल सके कि शिया और सुन्नी फ़क़ीह किस आयत से इस पात को प्रमाणित करते हैं।

 وَمَا أَفَاءَ اللَّـهُ عَلَىٰ رَ‌سُولِهِ مِنْهُمْ فَمَا أَوْجَفْتُمْ عَلَيْهِ مِنْ خَيْلٍ وَلَا رِ‌كَابٍ وَلَـٰكِنَّ اللَّـهَ يُسَلِّطُ رُ‌سُلَهُ عَلَىٰ مَن يَشَاءُ ۚ وَاللَّـهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ‌

सूरा हश्र आयत 6

और अल्लाह ने उनसे लेकर अपने रसूल की ओर जो कुछ पलटाया, उसके लिए न तो तुमने घोड़े दौड़ाए और न ऊँट। किन्तु अल्लाह अपने रसूलों को जिसपर चाहता है प्रभुत्व प्रदान कर देता है। अल्लाह को तो हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्ति है।

क़ुरआन फ़रमाता है कि वह चीज़ जो कि फैय है वह अपने रसूल को ख़ुदा देता है, जंग नहीं हुई थी, कोई घोड़ा या ऊँट जंग के लिए उस धरती पर नहीं गया था, बिना किसी जंग के यह धरती जीती गई थी, और यह ख़ुदा के लिए और वह अपने पैग़म्बर को अता कर रहा है।

इस आयत से मालूम होता है कि फ़िदक वह ज़मीन थी जो बिना जंग के जीती गई थी।

इस सम्बंध में हम आपके सामने सुन्नी उलेमा की कुछ किताबों से हवाले बयान कर रहे हैं।

फ़ुतूहुल बुलदान पेज 46 पर अबुल हसन बिलाज़री लिखता हैः

فهیا مما لم یوجف علیها بخیل ولا رکاب فکانت خالصة لرسول الله

फ़िदक की धरती उन चीज़ों में से है जिस पर घोड़े या ऊँट नहीं दौड़ाए गए तो वह विशेष है रसूले इस्लाम (स) से

इससे दो चीज़े साबित होती हैं

1. जिस चीज़ के लिए जंग ना हो वह विशेष हैं पैग़म्बर से

2. फ़िदक उन सम्पत्तियों में से है जिसके लिए जंग नहीं की गई है।

इबने हेशाम ने अपनी किताब तारीख़ की जिल्द 3 पेज 301 में लिखता हैः

فکان فدک لرسول الله خاصة لانه لم یوجف علیها بخیل ولا رکاب

फ़िदक विशेष हैं रसूले इस्लाम (स) से क्योंकि उसपर कोई घोड़ा या ऊँट दौड़ाया नहीं गया (जंग नही की गई)

इबने कसीर अपनी किताब बिदया और निहाया की जिल्द 3 पेज 231 पर लिखते हैं:

کانت هذه الاموال لرسول الله خاصة

यह सारा माल रसूले से विशेष था।

और सीरए हलबी जिल्द 3 पेज 487 पर लेखक लिखता हैः

فان ذلک کله کان للنبی خاصة

यह सारा का सार पैग़म्बर से मख़सूस है।

फ़िदक माल है पैग़म्बर का,

हमने इस लेख में कोशिश की  है कि बताएं कि फ़िदक क्या था, मुसलमानों के हाथ कैसे लगा, और वह माल जो बिना किसी जंग के मुसलमानों के हाथ लगे उसका आदेश क्या है।

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