सातवें इमाम की विलादत के अवसर पर विशेष

129 हिजरी शताब्दी सात सफ़र को जब इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) अपने परिवार के साथ हज के बाद मदीना वापस लौट रहे थे तो, उनकी पत्नी हमीदा ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम छठे इमाम ने मूसा रखा। इस शुभ अवसर पर इमाम (अ) ने फ़रमाया, मेरा यह बेटा मेरे बाद इस संसार का

129 हिजरी शताब्दी सात सफ़र को जब इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) अपने परिवार के साथ हज के बाद मदीना वापस लौट रहे थे तो, उनकी पत्नी हमीदा ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम छठे इमाम ने मूसा रखा। इस शुभ अवसर पर इमाम (अ) ने फ़रमाया, मेरा यह बेटा मेरे बाद इस संसार का इमाम है।

इमाम मूसा काज़िम (अ) ऐसे परिवार में पले बढ़े, जो ईश्वरीय प्रकाश और मार्गदर्शन का केन्द्र था। अपने चमत्कारी व्यवहार के कारण, वे परिवार के समस्त सदस्यों के ध्यान का केन्द्र बन गए। विभिन्न कारणों से उनके पिता भी उनके प्रति भारी कर्तव्य का आभास करते थे। पिता और बेटे के बीच गहरा रिश्ता था। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) अपने बेटे से और उनके बेटे अपने बाप से बहुत मोहब्बत करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों की जीवन शैली और उनका आचरण लोक और परलोक के लिए बेहतरीन मार्ग प्रशस्त करता है। क़ुराने मजीद में पैग़म्बरे इस्लाम के अनुसरण के बारे में उल्लेख है, निश्चित रूप से यह जान लो कि ईश्वरीय दूत तुम्हारे लिए सर्वश्रेष्ठ आदर्श है।

इन ईश्वरीय मार्गदर्शकों के जीवन के विभिन्न आयामों की जानकारी विशेष रूप से उनका शिष्टाचार, सत्य और मुक्ति के मार्ग पर चलने वालों के लिए बेहतरीन उपहार है। जो कोई सच्चाई, सत्य, सदाचार, बलिदान, विनम्रता और मार्गदर्शन की खोज में है, इन ईश्वरीय मार्गदर्शकों का अनुसरण करके कल्याण प्राप्त कर सकता है।

अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम (स) और हर प्रकार के दोष से मुक्त मासूम इमामों का मार्ग, उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले उन विशिष्ट इंसानों का मार्ग है, जो हर खोजी को वास्तविकता तक पहुंचने वाले सीधे रास्ते पर ले जाता है। दूसरे शब्दों में, ईश्वर के इन विशिष्ट बंदों का शिष्टाचार और जीवन, उत्कृष्टता तक पहुंचने का प्रकाशमय मार्ग है।

इमाम मूसा काज़िम (अ) पैग़म्बरे इस्लाम के उन परिजनों में से हैं, जिनका समस्त जीवन कल्याण की ओर मार्गदर्शन की बरकतों से भरा हुआ है। उनका पूर्ण जीवन ईश्वरीय आदेशों और न्याया के विस्तार के मार्ग में प्रयास करने में बीता। वे ऐसे समय में जीवन व्यतीत कर रहे थे, जो अत्याचारी दौर था और किसी में आपत्ति का भी साहस नहीं था। लेकिन इमाम (अ) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के इस्लाम के बचाव के लिए भरसक प्रयास किया और निष्कासन, क़ैद और अन्य कठिनाईयों को सहन किया।

148 हिजरी शताब्दी में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की शहादत के बाद, इमाम मूसा काज़िम (अ) इमामत के गौरवपूर्ण सिंहासन पर आसीन हुए। उनकी इमामत का काल 183 हिजरी तक जारी रहा। इमाम मूसा काज़िम की इमामत के 35 वर्ष, अब्बासी ख़लीफ़ाओं मंसूर दवानीक़ी, मेहदी, हादी और हारून रशीद की ख़िलाफ़त के काल में बीते। अपने पिता की शहादत के बाद इमाम मूसा काज़िम (अ) ने मुसलमानों के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी संभाली और इस्लामी विषयों के ज्ञानी बुद्धिजीवियों का प्रशिक्षण किया। मंसूर के शासन में राजनीतिक परिस्थितियों के दृष्टिगत, इमाम (अ) ने ज्ञान और इस्लामी शिक्षाओं का प्रसार किया और मंसूर के शासन द्वारा फैलाए जाने वाले अंधविश्वासों का मुक़ाबला किया।

इमाम (अ) ने राज्य भर में फैले अपने पिता इमाम सादिक़ (अ) के शिष्यों के लिए समर्थन के लिए काफ़ी प्रयास किए। हालांकि शासन ने इमाम से संबंधित लोगों को खोजने का बहुत प्रयास किया लेकिन सरकारी कारिंदे ऐसा करने में सफल नहीं हो सके।

इमाम मूसा काज़िम (अ) हारून के अवैध शासन से अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे। वे अपने अनुसरणकर्ताओं से सिफ़ारिश करते थे कि शासन पर भरोसा न करें। इमाम मूसा काज़िम फ़रमाते थे, अत्याचारियों पर भरोसा मत करो, वरना प्रकोप में फंस जाओगे।

हालांकि उन्होंने अपने एक साथी अली इब्ने यक़तीन को इस बात की अनुमति प्रदान की थी कि वे मंत्री का पद स्वीकार कर लें। इमाम (अ) ने उनसे कहा था, हे अली, तुम एक चीज़ की मुझे गारंटी दो, मैं तुम्हें तीन चीज़ों की गारंटी दूंगा। तुम्हें वादा करना होगा कि हमारे जिस साथी को भी देखोगे, उसका सम्मान करोगे और उसकी ज़रूरत पूरी करोगे। मैं तुमसे वादा करता हूं कि तुम्हारे सिर पर कभी भी कारावास की छत का साया नहीं होगा, कोई तलवार तुम्हारे शरीर को घायल नहीं करेगी और कभी निर्धनता तुम्हारे घर का रुख़ नहीं करेगी।

इमाम अबुल हसन मूसा इब्ने जाफ़र (अ) का व्यक्तित्व समस्त गुणों से सुसज्जित था। इसी कारण, इस्लामी जगत और यहां तक कि ग़ैर मुसलमानों के बीच काफ़ी लोकप्रिय थे। कुछ लोग इमाम मूसा काज़िम (अ) की इबादतों को देखकर, कुछ लोग उनकी सहिष्णुता देखकर, कुछ लोग अपनी समस्याओं का समाधान इमाम से प्राप्त करके और कुछ लोग इमाम विन्रमता देखकर उनकी ओर आकर्षित होते थे। वे लोगों के दिल में बसते थे और अहले सुन्नत के महान विद्वान इब्ने हजर के अनुसार, वे दिलों के इमाम थे।

सातवें इमाम, सहिष्णुता और क्षमा का पहाड़ थे, इसीलिए उनका उपनाम काज़िम पड़ गया, जिसका अर्थ ग़ुस्से को पीने वाला होता है। वे अपशब्दों और बुरा भला कहने का जवाब अच्छाई और भलाई से देते थे।

एक दिन इमाम मूसा काज़िम (अ) ने अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा, मेरे बच्चों मैं तुम्हें ऐसी नसीहत करने जा रहा हूं, अगर इसका पालन करोगे तो तुम्हें उसका लाभ मिलेगा। अगर तुम्हारे पास आए और तुम्हारे दाहिने कान में कुछ ऐसा कहे जो तुम्हें अच्छा न लगे, उसके बाद तुम्हारे बायें कान में माफ़ी मांगे, तो उसकी माफ़ी को स्वीकार कर लो।

इस्लाम ने मुसलमानों के बीच सहिष्णुता के प्रसार के लिए बहुत प्रयास किया है। यह गुण इमाम मूसा काज़िम में सबसे अधिक स्पष्ट था। वे हर उस व्यक्ति को जो आपके साथ बुराई करता था और आपके ऊपर अत्याचार करता था, क्षमा कर दिया करते थे, केवल इतना ही नहीं बल्कि उसके साथ भलाई करते थे, ताकि उसमें सुधार हो जाए और उसकी आत्मा शुद्ध हो जाए।

इस प्रकार इमाम मूसा काज़िम (अ) अपने साथियों और अनुसरणकर्ताओं को मूल्यवान पाठ पढ़ाते थे। उनका कहना था कि मार्गदर्शन का आहवान, पूर्ण सत्य के आधार पर और खुले दिल से होना चाहिए, क्योंकि अगर उसमें यह गुण शामिल नहीं होंगे, तो संभव है दूसरों के सुधार में कोई सफलता हासिल न हो।

अब्बासी ख़लीफ़ाओं विशेष रूप से हारून रशीद के अपराधों से पर्दा उठाने और सत्य कहने के कारण इमाम मूसा काज़िम (अ) ने अपनी आयु के कई वर्ष जेल की कोठरी में बिताए। उनकी मूल्यवान उम्र के 4 से 7 वर्ष तक काल कोठरियों में बीते।

इमाम काज़िम (अ) इमामत के वह चमकते हुये तारे थे कि जिसके प्रकाश ने हर भले इंसान को प्रभावित किया। इमाम (अ) के लम्बे लम्बे सजदे और आंखों से बहने वाले आंसू अपने पालनहार से गहरे प्रेम और उसपर मज़बूत ईमान को सिद्ध करते हैं। जैसा कि उन्हें सलाम करते हुए हम कहते हैं, आपने अपने जीवन में ईश्वर के लिए लम्बे सजदे किए और आंखों से आंसू बहाए।

जब हारून के आदेशानुसार, इमाम मूसा काज़िम (अ) को जेल में क़ैद कर दिया गया, तो उन्होंने अपने पालनहार को संबोधित करते हुए कहा, हे पालनहार काफ़ी लम्बे समय से मैं तुझ से दुआ कर रहा हूं कि अपनी इबादत के लिए मुझे अवसर प्रदान कर। तूने मेरी दुआ स्वीकार कर ली है, इस नेमत के लिए मैं तेरा आभारी हूं।

इमाम का सबसे विशिष्ट गुण इमाम का ज्ञान होता है, जो मानवता को विनाश के मार्ग से मुक्ति प्रदान करता है। इमाम मूसा काज़िम (अ) का ज्ञान और व्यक्तित्व बचपन से ही इस रूप में ढल चुका था। ज्ञान आधारित वादविवाद, सवालों के जवाब और विशिष्ट शिष्यों का प्रशिक्षण उनके महान ज्ञान को दर्शाता है। वे बचपन से ही धर्म संबंधित समस्याओं का समाधान बता दिया करते थे, जिसका समाधान पेश करने में बड़े बड़े विद्वान अक्षम रह जाते थे। कुछ लोग इमाम (अ) के ज्ञान को परखने के लिए और उन्हें नीचा दिखाने के लिए वादविवाद की बैठकों का आयोजन करते थे, लेकिन उन लोगों को अपमान के अलावा कुछ हासिल नहीं होता था। इस प्रकार से वे इमाम के असीम ज्ञान को स्वीकार करने के लिए मजबूर हो जाते थे। इमाम मूसा काज़िम (अ) के बारे में महान विद्वान शेख़ मुफ़ीद कहते हैं, अबुल हसन मूसा, सबसे अधिक इबादत करने वाले और सबसे अधिक दान देने वाले और अपने समय की सबसे विशिष्ट हस्ती थे। इब्ने अबिल हदीद इस संदर्भ में कहते हैं, धर्म का ज्ञान, ईमानदारी, इबादत, सहिष्णुता और धैर्य समस्त गुण इमाम के व्यक्तित्व में जमा हो गए थे।

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