दस मोहर्रम सन 61 हिजरी दिन शुक्रवार

इमाम हुसैन (अ) के साथियों और यज़ीदी सेना के बीच युद्ध जारी ही था कि ज़ोहर की नमाज़ का समय आ गया तब आपके एक साथी "अबू समाम सैदावी" ने इमाम हुसैन (अ) से कहा कि मौला ज़ोहर की नमाज़ का समय हो गया है, और हम आपकी जमाअत में अन्तिम नमाज़ पढ़ना चाहते हैं, इमाम

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

सुबह की नमाज़ के बाद इमाम हुसैन (अ) ने अपनी सेना को व्यवस्थित करना आरम्भ किया आपने ख़ैमों के सामने अपनी सेना को जिसमें 32 घुड़सवार और 40 पैदल सैनिक थे को तीन हिस्सों में बांटा, और दाहिने भाग के लिये "ज़ोहैर इबने क़ैन" को सेनापति बनाया, बाएं भाग के सेनापति "हबीब इबने मज़ाहिर" थे और केंद्रीय सेना के लिये सेनापति "हज़रत अब्बास अलमदार" को बनाया। (1)

जब दोनों सेनाएं एक दूसरे के सामने आ खड़ी हुईं तो आपने एक लंबा ख़ुतबा पढ़ा जिसमें आपने अहलेबैत की श्रेष्ठता और उनकी फज़ीलत को बयान करने के साथ साथ युद्ध को रोकने की मांग की, लेकिन शत्रु की सेना की तरफ़ से आपकी सही उत्तर नहीं मिला। (2)

जब शत्रु किसी भी प्रकार से युद्ध टालने के लिये सहमत नहीं हुआ तो अन्तः जंग शुरू हुई और "उमरे साद" ने हुसैनी क़ाफ़िले की तरफ़ पहले तीर फ़ेंका और अपनी सेना से कहा कि "इबने ज़ियाद" के सामने गवाह रहना कि हुसैनी की तरफ़ सबसे पहला तीर मैंने फ़ेंका है और इस प्रकार युद्ध आरम्भ हो गया। (3)

इमाम हुसैन (अ) के साथियों और यज़ीदी सेना के बीच युद्ध जारी ही था कि ज़ोहर की नमाज़ का समय आ गया तब आपके एक साथी "अबू समाम सैदावी" ने इमाम हुसैन (अ) से कहा कि मौला ज़ोहर की नमाज़ का समय हो गया है, और हम आपकी जमाअत में अन्तिम नमाज़ पढ़ना चाहते हैं, इमाम हुसैन ने जब यह सुना तो अबू समामा को दुआ दी और फ़रमाया कि ख़ुदा तुमको नमाज़ पढ़ने वालों में शरीक करे, उसके बाद आप अपने कुछ साधियों के साथ बरसते तीरों के बीच नमाज़ के लिये खड़े हो गये। (4)

इमाम हुसैन की शहादत

नमाज़ समाप्त हुआ हुसैन का एक एक साथी युद्ध के मैदान में जाता रहा और जामे शहादत नोश करता रहा, जब सभी शहीद हो गये और हुसैन के अतिरिक्त कोई और न बचा तो इमाम हुसैन अन्तिम विदा के लिये ख़ैमों की तरफ़ आए ताकि आप भी अहले हरम की औरतों और बच्चों से विदा हो सकें, जब औरतों और बच्चों ने इमाम के विदा को देखा तो सभी रोने और विलाप करने लगे और उनकी आवाज़ें बुलंद हो गईं। (5)

इमाम ने सबको अन्तिम सलाम किया और स्वंय युद्ध को मैदान में आ गये आपने जंग करनी शुरू की और बहुत से यज़ीदियों को नर्क पहुँचा दिया, यज़ीदी सेना के बहुत से बहादुर और लड़ाके इमाम के हाथों मारे गये, जब यज़ीदी सेना ने आपका वह उग्र रूप देखा तो सभी डर गये अब कोई भी आपने सामने आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।

इमाम हुसैन जंग की तीव्रता, गर्मी और प्यास की अधिकता से थक गये तो आप सुसताने के लिये एक स्थान पर रुक गये यहीं वह समय था कि जब एक पत्थर आ कर आपके पवित्र माथे पर लगा, आपने अपने कुर्ता उठाया ताकि चेहरे का ख़ून साफ़ कर सकें, उसी समय हुरमुला ने तीन भाल का तीर इमाम की तरफ़ छोड़ा जो आपके सीने पर लगा जिसके बाद उमरे साद की सेना हर तरफ़ से इमाम पर टूट पड़े और आक्रमण करना आरम्भ कर दिया, आप घोड़े पर संभल न सके घोड़े से ज़मीन पर गिरे, और बहुत समय तक इसी तरह पड़े रहे कोई भी आपके पास आने का साहस नही कर पा रहा था, आख़िरकार शिम्र इमाम की तरफ़ आगे बढ़ा और पैग़म्बर के नवासे और फ़ातेमा के जिगर के पाले पंजतन की अन्तिम निशानी को शहीद कर दिया और पीछे की तरफ़ से आपका गला काट दिया। (6)

हुसैन का सर कटना था कि काली आँधियां चलने लगी एक काले गुबार ने आसमान को अपने लपेट में ले लिया, ज़मीन हिलने लगी, और पूर्व एवं पश्चिम में अंधेरा छा गया। (7)

ख़ैमों पर हमला

जब हुसैन शहीद कर दिये गये तो उमरे साद के आदेश से अंधे दिल वाले सिपाहियों ने ख़ैमों पर आक्रमण कर दिया, ख़ैमों में आग लगा दी गई, बच्चों के मुंह पर तमाचे लगाए गये बीबीयों के सरों से चादरें छीन ली गईं, और सबकों कर्बला की जलती ज़मीन पर आवारा कर दिया गया। (8)

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(1)    इरशाद, शेख़ मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 95

(2)    बिहारुल अनवार, जिल्द 45, पेज 6

(3)    बिहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 6

(4)    बिहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 21

(5)    मक़तलुल हुसैन (अ) पेज 28

(6)    लहूफ़, पेज 180

(7)    लहूफ़, पेज 147

(8)    बिहारुल अनवार, जिल्द 45, पेज 53, मक़तले ख़्वारज़मी, जिल्द 2, पेज 39, कामिल, इबने असीर, जिल्द 4,  पेज 78

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