पाँचवी मोहर्रम हुसैनी काफ़िले के साथ

चार मोहर्रम को कूफ़े की मस्जिद में इब्ने जियाद के ख़ुत्बे का असर यह हुआ की बहुत से लोग इमाम हुसैन (अ.) से युद्ध करने के लिये तैयार हो गए और पाँचवी मोहर्रम को उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने “शबस बिन रबई” (1) नामक एक व्यक्ति को 1000 की सेना के साथ करबला...

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

चार मोहर्रम को कूफ़े की मस्जिद में इब्ने जियाद के ख़ुत्बे का असर यह हुआ की बहुत से लोग इमाम हुसैन (अ.) से युद्ध करने के लिये तैयार हो गए और पाँचवी मोहर्रम को उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने “शबस बिन रबई” (1) नामक एक व्यक्ति को 1000 की सेना के साथ करबला की तरफ़ भेजा। (2)

उबैदुल्लाह ने जब यह देखा कि कुछ लोग चोरी छिपे इमाम हुसैन (अ.) की सहायता के लिए कूफ़े से करबला की तरफ़ जा रहे हैं तो उसने “ज़ज्र बिन क़ैस” नामक एक व्यक्ति को करबला की तरफ़ जाने वाले रास्ते पर 500 सैनिकों के साथ खड़ा कर दिया और उसको आदेश दिया कि जो भी इमाम हुसैन (अ.) की सहायता के लिए करबला जा रहा हो उसको पकड़ कर क़त्ल कर दे। (3)

अगरचे उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने इमाम हुसैन (अ.) की तरफ़ पहुँचने वाले सारे रास्तों पर नाकेबंदी कर रखी थी और उसको पूरी कोशिश यह थी कि कोई भी इमाम हुसैन (अ.) की सेना में शामिल न हो सके लेकिन फिर भी पाँच मोहर्रम को “आमिर बिन अबी सलामा” नामक एक व्यक्ति इमाम हुसैन (अ.) तक पहुँचने में कामयाब रहा और जो बाद में आशूर के दिन इमाम हुसैन (अ.) की तरफ़ से लड़ते हुए शहीद हुआ। (4)

इमाम हुसैन (अ.) का यज़ीदें फौज से खेताब

हम हरगिज़ ज़िल्लत स्वीकार नहीं करेंगे, ख़ुदा, रसूल और मोमिनों ने हमारे लिए ज़िल्लत को कदापि स्वीकार नहीं किया है, वह पवित्र दामन जिन्होंने हमें परवान चढ़ाया है और ग़ैरतमंद मर्द हरगिज़ ज़िल्लत को क़त्ल हो जाने पर प्राथमिक्ता नहीं देगें

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1.    इसने पैग़म्बर (स.) को देखा था, लेकिन बाद में विधर्मी हो गया और इस्लाम से बाहर निकल गया और सजाह नामक व्यक्ति जिसने झूठा पैग़म्बरी का दावा किया था का मुअज़्ज़िन खुद को कहने लगा, लेकिन बाद में यह फिर मुसलमान हो गया और सिफ़्फ़ीन की जंग में इमाम अली (अ.) के विरुद्ध लगा और आख़िरकार कर्बला में यज़ीद की सेना में शामिल हो कर हुसैन (अ.) से जंग की।

2.    अवालेमुल उलूम जिल्द 17, पेज 237

3.    मक़तलुल हुसैन (मक़रम) पेज 199

4.    मकतलुल हुसैन (मक़रम) पेज 199

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