वहाबियों को सुन्नियों से अलग करती दस चीज़ें

फ़तवा कमेटी के स्थाई सदस्य सालेह बिन फ़ौज़ान ने अपनी किताब के एक भाग जिसका शीर्षक “वहाबियों के पहशीपन का ख़ुदा” में दूसरों की तकफ़ीर और दीन से बाहर जाने वाले कारणों का अध्ययन किया है और उनके राजनीतिकरण के बाद सऊदी अरब की सत्ता के अस्तित्व में आने के बारे

बुशरा अलवी

पिछले दिनों चेचनया की राजधानी में “अहलेसुन्नत की पहचान” नामक एक कान्फ़्रेंस हुई जिसमें अहले सुन्नत के बहुत से धर्मगुरुओं ने मिलकर वहाबी संप्रदाय (शजरे मलऊना) को अहलेसुन्नत की लिस्ट से बाहर कर दिया।

जब से इस यह बयानिया जारी किया गया है तभी से सऊदी अरब की वहाबी लॉबी को यही लग रहा है कि उन्होंने पहली बार ज़हर का जाम वही पिया है जो अब तक वह दूसरे मुसलमानों को पिलाते रहे हैं यानी, दीन से बाहर करना और दूसरों की तकफ़ीर।

मुझे तो ऐसा लगता है कि सऊदी अरब के वहाबी ओलेमा को उन दलीलों के बारे में ग़ौर करना चाहिये जो वहाबियत (शजरे मलऊना) को सुन्नियों से अलग करती हैं ताकि उसके बाद वह वहाबियत का थोड़ा नर्म वर्जन लोगों के सामने पेश कर सके।

फ़तवा कमेटी के स्थाई सदस्य सालेह बिन फ़ौज़ान ने अपनी किताब के एक भाग जिसका शीर्षक “वहाबियों के पहशीपन का ख़ुदा” में दूसरों की तकफ़ीर और दीन से बाहर जाने वाले कारणों का अध्ययन किया है और उनके राजनीतिकरण के बाद सऊदी अरब की सत्ता के अस्तित्व में आने के बारे में अपनी राय पेश की है।

फौज़ान दीन से बाहर जाने या मुरतद होने के बारे में यूँ लिखते हैं : “दीन से बाहर जाना वही इस्लाम के मुबतेलात हैं, जो भी इस्लाम लाए, अल्लाह के एक होने और पैग़म्बर की नबूवत की गवाही दे उसका इस्लाम इन चीज़ों के माध्यम से समाप्त हो जाता है और उसके बाद वह काफिर कहा जाएगा।”

किसी के इस्लाम से बाहर होने में दस अस्ली चीज़ें हो सकती है जिसके बाद किसी मुसलमान को मुरदत कहकर उसपर कुफ़्र का फ़तवा लगाया जा सकता है। और यही दस चीज़े वहाबी और सुन्नियों के बीच का फ़र्क़ हैं।

1.    क़ब्रों की जियारत, वहाबियों ने इसी चीज़ को बहाना बना कर 1802 में शियों के प्रसिद्ध ज़ियारती शहर करबला पर हमला किया जिसका अहले सुन्नत के कभी भी समर्थन नहीं किया लेकिन वहाबी आज भी इस बात पर गर्व करते हैं और पैग़म्बर के नवासे के रौज़े पर हमले को अल्लाह के लिये किया जाने वाला कार्य बताते हैं।

2.    शेफ़ाअत। जब कि अहले सुन्नत भी फ़रिश्तों, नबियों, नेक बंदों की शेफ़ाअत का अक़ीदा रखते हैं लेकिन वहाबी इसके घोर विरोधी हैं।

3.    मुशरिकों के साथ सदभाव और धर्मों के बीच सदभाव की सोंच को पैदा करना वहाबियों की नज़र में क़ुफ़्र है उनका मानना है कि हर मुसलमान को दूसरे धर्मों को ग़लत मानते हुए उनके साथ युद्ध करना चाहिये (यह और बात है कि उन्होंने स्वंय कभी इस्राईल पर हमला नहीं किया बल्कि आज के समय में तो सऊदी हुकूमत खुलेआम उनके साथ दोस्ताना बढ़ा रही है यहां तक की इस बार तो हज के सिक्योरिटी भी इस्राईली कंपनी के हाथों में है।) जब कि शिया और सुन्नी हर संप्रदाय सर्वधर्म सदभाव को मानता है और इसके किसी भी मुसलमान के मुरतद होने का कारण नहीं मानता है।

4.    दुनियावी क़ानूनों को मानना जैसे ट्रैफ़िक नियम, फ़ुटबाल या क्रिकेट के नियम और क़ानून, वहाबी इन चीजों को पैग़म्बर की शिक्षाओं के विरुद्ध मानते हैं और अगर कोई मुसलमान इन चीज़ों को माने तो वह इनकी नज़र में काफ़िर है।

5.    अगर कोई मुसलमान शरई अहकाम को पसंद नहीं करता है तो वह काफ़िर है।

6.    पैग़म्बर, पैग़म्बर की सुन्न, सहाबी की ज़ारा सा भी मज़ाक़ कुफ़्र का कारण है, और सच्ची बात यह है कि वहाबी विचारधारा में इन चीज़ों के मज़ाक़ की सीमा बहुत बड़ी है और वह किसी भी चीज़ को मज़ाक़ उड़ाना समझकर किसी भी मुसलमान को काफ़िर कह सकते हैं, जब कि अहले सुन्नत इन चीज़ों में कट्टरपंथी नहीं है।

7.    सर्कस, और हाथों की सफ़ाई का खेल कुफ़्र है और किसी मुसलमान के काफ़िर होने के लिये सर्कस को देखना ही काफ़ी है क्योंकि यह जादू है, जब कि कोई भी सुन्नी सर्कस देखने को क़ुफ़्र नहीं समझता है।

8.    काफ़िरों के साथ दोस्ती या उनके समारोहों जैसे क्रिसमस में समिलित होना कुफ़्र है, हद तो यह है कि वहाबी धर्मगुरु ईदे मीलादुन्नबी तक को कुफ़्र मानते हैं, जब को कोई भी सुन्नी उनकी इस बात से सहमत नहीं है।

9.    इस्लाम के अहकाम के बारे में यह मानना कि वह एक ख़ास समय के लिये हैं और इस समय उनपर अमल करना ज़रूरी नहीं है, यह वहाबी विचारधारा कहती है जब कि चाहे शिया हो या सुन्नी सभी का यह मानना है कि जो चीज़ पैग़म्बर के ज़माने में हलाल थी वह हलाल है जो हराम थी वह हराम है।

10.    दीन का ज्ञान प्राप्त करना और तफ़क्कोह वहाबी विचारधारा में किसी मुसलमान के काफ़िर होने के लिए काफ़ी है।

अबदुल वह्हाब के अनुसार इन दस चीज़ों में से अगर कोई किसी एक को भी अंजाम दे दे तो वह काफ़िर है चाहे उनसे यह कार्य मज़ाक़ में किया हो, जानबूझ कर या किसी के डर से किया हो क्योंकि यह सभी नर्क के द्वार है जो एक बार खुल गया तो खुल गया।

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