वहाबी मुफ़्ती की गुस्ताख़ी का मुंहतोड़ जवाब

जब तेरे पूर्वज नज्द के रेगिस्तान में टिड्डों और छिपकलियों के पीछें भागा करते थे उस समय पारस के मजूसी (!) महलों में रहा करते थे और उनके पास एक सभ्यता थी...

अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

यह न समझना कि तुम्हारी गुस्ताख़ियों का हमारे पास कोई जवाब नहीं है, तेरे और तेरे हवाली मवाली की बुराईयाँ और कुकर्म बेशुमार हैं लेकिन यह जान लो कि “जिसके अंदर जो होता है वही बाहर निकल कर आता है” जो कुछ तुम्हारे गंदे दिमाग़ में चल रहा था और जिसके बारे में हम सालों से लोगों को बता रहे थे आज तुमने उसको जग ज़ाहिर कर दिया।

तुम आय के युग के ख़ारेजी और मुसलमानों की तरफ़ीर करने वाले हो जो तुम्हारे मुश्बेहा (ख़ुदा के लिये किसी शबीह का क़ाएल होना) और मुजस्सेमा (अल्लाह को सशरीर मानना) संप्रदाय का विरोध करे उसका कीना अपने दिल में रख लेते हो, और अगर हत्या करने के लिये तुम को कोई दूसरा न मिले तो एक दूसरे को ही काफ़िर ठहरा कर एक दूसरे को क़त्ल करते हो और दाइश एवं अलक़ायदा में तुम्हारे अनुयायियों का यही कार्य रहा है।

हमारे सुन्नी भाईयों ने बहुत अच्छा कार्य किया जो तुमको अपने संप्रदाय से बाहर कर दिया (1) क्योंकि तुम्हारी गंदगी सब के सामने आ चुकी है और सभी तुम्हारी साज़िशों और झूठ के पुलिंदे को पहचान चुके हैं।

ऐ दुनिया और आख़ेरत के अंधे! तू है कौन? तू अपने संप्रदाय के अनुसार क़ुरआन की तावील को नहीं मानता है तो ख़ुदा ने तेरे ही लिये फ़रमाया है (ومن كان في هذه أعمى فهو في الاخرة أعمى وأضل سبيلا) जो इस दुनिया में अंधा है वह आख़ेरत में भी अंधा होगा (सूरे असरा आयत 72)

मैं तेरे सामने दो चीज़ों के आधार पर बात करता हूँ

1.    इस्लाम के आधार पर। कि तू केवल अपने संप्रदाय को हक़ पर मानता है और दूसरे तमाम मुसलमानों को चाहे वह किसी भी संप्रदाय के हो मुरतद, काफ़िर, मुशरिक, और मुनाफ़िक़ मानता है, हंसी की बात तो यह है कि यह बात तू तब कह रहा है कि जब तेरे मानने वाले पूर्व से पश्चिम तक मुसलमानों की हत्या कर रहे हैं, सभ्यताओं का विनाश कर रहे हैं, जो ख़ुद ख़ुदा से दूर हैं और दूसरों को अल्लाहो अकबर के नारे के साथ क़त्ल कर रहे हैं।

तू शियों, अशअरियों, मातेरीदियों, सूफ़ियों, ज़ैदियों, दरूज़ियों, अलवियों और इस्माईलियों को जिनका इस्लाम 1400 साल पुराना है काफ़िर कहता है, जब कि अगर तेरे इस्लाम की जड़ को अमवी इस्लाम के विचारक (इब्ने तैमिया) से भी मान लिया जाए तब भी वह 200 साल से अधिक दूर तक नहीं पहुँचती है जब कि सारी दुनिया जानती है कि तू ब्रिटेन की साज़िश और मिस्टर हेम्फ़्रे के कार्यों का नतीजा है, तुझे शर्म नहीं आती है कि तू सहाबा और ताबईन के युग वाले शियो, सूफ़ियों, अशअरियों... को काफ़िर कहता है। (तुझ पर धिक्कार है)

यही कारण है कि अहले सुन्नत ने तेरी जड़ (वहाबियत) को काट दिया और तुझ के सुन्नियों से अलग कर दिया क्योंकि तेरे कर्म वह हैं हो उनकी आबरू को धचका लगाते हैं, अहले सुन्नत के सूफ़ी इस्लाम और अबू हामिद ग़ज़ाली की शिक्षाएं कहा, और तेरी कट्टपंथी, सतही, तकफ़ीरी और छोटी सोच कहा!

ऐ “सेक्स जेहाद” और  “इरज़ाए कबीर” (महरम होने के लिये किसी बड़े व्यक्ति को दूध पिलाना) के मानने वाले अगर यह मान भी लिया जाए कि तू अहले सुन्न में से है (जब कि वह ख़ुद तुझे सुन्नी नहीं मानते हैं) तो ऐ अंधे तू देखेगा कि अगर मैं नस्ल और क़ौमियत के आधार पर तुझ से बात करूँ तो हमें दिखाई देता है कि अहले सुन्नत के बड़े बड़े ओलेमा आग की पूजा करने वालों (क्योंकि वहाबी कहते हैं कि ईरानी ज़रतुश्ती हैं जो कि आग की पूजा करते हैं) की संतान थे लेकिन जाफ़री (शिया) समुदाय अस्ली और शुद्ध अरबी इस्लाम है।

अगर तेरे पास कोई जवाब है तो बता कि कौन लोग आग की पूजा करने वालों की संतान हैं? इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) इमाम मोहम्मद बक़िर (अ) इमाम रज़ा (अ) इमाम मोहम्मद तक़ी (अ).... या अबू हनीफ़ा, शाफ़ई और मालिक!? (तेरे पास इसका कोई जवाब न होगा)

कौन आग की पूजा करने वालों की संतान हैं शेख़ मुफ़ीद, सैय्यद मुर्तज़ा, सैय्यद रज़ी, हेशाम बिन हकम, ज़ोरारा... (शिया ओलेमा, यह सभी अरब हैं) या फिर बुख़ारी, निसाई, मुसलिम, तिरमिज़ी, तबरी, ज़मख़शरी.... (अहले सुन्नत के ओलेमा, यह सभी ईरानी हैं)

क्या तुझे नहीं पता है कि इसी आग की पूजा करने वाले की एक संतान के लिये पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा थाः सलमान हम अहलेबैत में से हैं!

2.    अगर तू क़ौमियत देश और लोगों के ईमान के आधार पर श्रेष्ठता दिखाने की कोशिश करेगा तो जान ले कि पारस के लोग (जिन्हें तू मजूसी कह रहा है) हमेशा से सभ्य और गौरव वाले रहे हैं।

जब तेरे पूर्वज नज्द के रेगिस्तान में टिड्डों और छिपकलियों के पीछें भागा करते थे उस समय पारस के मजूसी (!) महलों में रहा करते थे और उनके पास एक सभ्यता थी।

जिस समय तेरे पूर्वज एक ऊँट पर चालीस साल तक युद्ध किया करते थे तब पारस के मजूसी यमन, मिस्र, फ़िलिस्तीन, भारत, क़फ़क़ाज़... पर हुकूमत किया करते थे।

जब तेरे पूर्वज भूख से बिलबिलाते हुए ख़जूर से बनाए हुए अपने ही ख़ुदाओं को खा लिया करते थे तब भी पारस के लोग एक ईश्वर को मानते थे।

मुझे केवल किसी एक नज्द के विद्वान का नाम बता दे जिसने चिकित्सा, गणित, रसायन विज्ञान... में कोई कार्य किया हो, कोई एक भी न मिलेगा। लेकिन उसके मुक़ाबले में मैं दसियों सुन्नी और शिया आलिमों का नाम बता सकता हूँ जो मजूसियों की नस्ल से हैं।

सच्चाई तो यह है कि वह तमाम क़ौमें जिनको आज अरब कहा जा रहा है वह इस्लामी सेना की विजय के बाद अरब हुए हैं चाहे वह इराक़, हो सीरिया, मिस्र या... इससे पहले केवल यमन और हेजाज़ की क़ौम ही अरब थी, हां तुझे यह भी याद दिला दूँ के तेरे पूर्वज अरबों में से नहीं थे बल्कि “मरदख़ाई बिन इब्राहीम बिन मूशी” की नस्ल से थे!

तू किस श्रेष्ठता की बात कर रहा है?!! (तुझ पर हंसी आती है)

मुझे नहीं लगता कि जो बात तू ने कही है उसकी थोड़ा सा भी तुझ को ज्ञान हैं क्योंकि तेरी पिछड़ी हुई अक़्ल हक़ीक़त को समझने से बहुत दूर है, और तेरी अक़्ल की हद तेरे आक़ाओं के दिशानिर्देश यानी सऊदी बादशाह जो कि स्वंय अमरीका, ब्रिटेन और अपने नस्ली भाई आले यहूद के ग़ुलाम हैं से आगे नहीं जा सकती है।

यह दिल का गुबार था जो निकल गया, खुदा अब्दुल्लाह बिन ओबई बिन सिल्लूल (पैग़म्बर के ज़माने के मुनाफ़िकों का सरदार) की संतान यानी आले सऊद और बनी उम्मया के इस्लाम के सभी मानने वालों को हलाक करे जो अपने यहूदी आक़ाओं के इशारों पर इस्लामी उम्मत में मतभेद पैदा करके अनेकता का बीज बोना चाहते हैं।

अल्लाह ने पैग़म्बर और अहलेबैत को भेज कर और इस्लाम नाज़िल करके और “قولوا لا اله الا الله تفلحوا” के नारे से सभी को इज़्ज़त दी है, वह इस्लाम जो कहता है “لا فرق لعربی علی أعجمی إلا بالتقوی” किसी अरब को अजम पर बरतरी नहीं है मगर तक़वा से वह इस्लाम जो कहता है “المسلم من سلم المسلمون من یده ولسانه” मुसलमान वह है जिसके हाथ और ज़बान से दूसरे मुसलमान सुरक्षित रहें, वह इस्लाम जिसके लिये अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने फ़रमायाः “लोग दो प्रकार के हैं एक वह जो तुम्हारे दीनी भाई हैं और दूसरे वह जो तुम्हारे जैसे इंसान हैं”

लेकिन यह बात तेरे जैसे बिके हुए इंसान को कहा समझ में आएगी जिसके पास न दीन है और न अख़लाक़?

(अला अलरज़ाई)

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1.    चेचनया में अहलेसुन्नत की एक बड़ी बैठक हुई जिसमें सुन्नी समुयाद के सैकड़ों ओलेमा ने अलअज़हर मिस्र के नेतृत्व में शिरकत की और वहाँ सभी ओलेमा ने मिलकर सऊदी अरब में सक्रिय वहाबी विचारधारा और उसको मानने वालों को सुन्नी समुदाय बल्कि इस्लाम से बाहर बताया है

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