आले सऊद व आले यहूद के बीच है ख़ून का रिश्ता

अब्दुल वह्हाब का जन्म 1115 हिजरी में "ऐनिया" शहर में हुआ, उसका दादा "शूलमान क़रक़ूज़ी" तुर्की की "यहूद दूग़ा" नामक यहूदी नस्ल से था, वहाबी गुट के लोग पहले यहूदी थे जो बाद में दिखावे के लिये मुसलमान हो गए ताकि तुर्की के उस्मानी साम्राज्य में घुसपैठ कर सकें

आले सऊद व आले यहूद के बीच है ख़ून का रिश्ता

बुशरा अलवी

वहाबी सम्प्रदाय का संस्थापक मोहम्मद इब्ने अब्दुल वह्हाब है जो कि इब्ने तैमिया की विचारधारा से प्रेरित था, मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब का जन्म 1115 हिजरी में "ऐनिया" शहर में हुआ, उसका दादा "शूलमान क़रक़ूज़ी" तुर्की की "यहूद दूग़ा" नामक यहूदी नस्ल से था, वहाबी गुट के लोग पहले यहूदी थे जो बाद में दिखावे के लिये मुसलमान हो गए ताकि तुर्की के उस्मानी साम्राज्य में घुसपैठ कर सकें, और अगर ऐसा न हो सके तो दूसरे प्रकार से इस्लाम में शंकाओं का बीज बो कर मुसलमानों के बीच फूट डाल सकें।

अब्दुल वह्हाब का दादा शूलमान बूरसा शहर में तरबूज़ और ख़रबूज़े बेचा करता था, लेकिन चूँकि उससे उसकी अच्छी आमदनी नहीं हो रही थी इसलिये वह कुछ दूसरे यहूदियों के साथ मुसलमान हो गया और उसने दीन को बेचना और धर्म की दुकानदारी शुरू कर दी, कुछ दिनों के बाद उसने धर्मगुरुओं वाला लबादा ओढ़ना शुरु कर दिया ताकि अपने आप को मुसलमान आलिमे दीन दिखाकर लोगों के बीच अपने पैठ बना सके, कुछ दिनों के बाद वह सीरिया जाता है और वहां जब वह अपने नए विश्वासों और इस्लाम को विरुद्ध बातों को लोगों के सामने बयान करता है तो सीरिया के लोग उसका विरोध करते हैं जिसके बाद वह मिस्र चला आता है, बाद में मक्के और मदीने भी जाता है, लेकिन जब उसे मदीने से भी मुसलमान निकल देते हैं तो वह नज्द की तरफ़ चला जाता है, जहां वह अपनी पहचान को छिपाता है और स्वंय को रबीआ क़बीले का संतान बताता है और अपना नाम सुलैमान बताता है।

समय बीतने के साथ अब्दुल वह्हाब का पिता ऐनिया शहर में धार्मिक, शौक्षिक और आदालती कार्यों को अपने हाथ में ले लेता है, उस समय ख़ुद अब्दुल वह्हाब बचपन से ही तफ़्सीर, हदीस के बारे में ज्ञान प्राप्त करना शुरू करता है और वह हंबली फ़िक्ह को अपने पिता से ही पढ़ता है (स्पष्ट रहे कि हंबली फ़िक्ह वहाबियत की बुनियाद है)

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अब्दुल वह्हाब धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद जज बन जाता है अब्दुल वह्हाब का बेटा मोहम्मद (जिसने वहाबियत को दुनिया के सामने पेश किया) आरम्भिक शिक्षा के बाद पढ़ने के लिये मदीने जाता है, पढ़ाई के दिनों में ही उसके मुंह से कुछ ऐसे शब्द जारी हुए हैं जो उसके विशेष प्रकार के तकफ़ीरी अक़ीदे को दर्शाते हैं, यहां तक कि उसके उस्ताद भी उसके भविष्य के बारे में चिंतित हो जाते थे और कहते थे अगर उसने धर्म का प्रचार शुरू कर दिया तो बहुत से लोगों को गुमराह कर देगा। मोहम्मद ज़्यादातर उन लोगों की जीवनी पढ़ा करता था जिन्होंने झूठे नबी होने का दावा किया था जैसे मुसैलेमा कज़्ज़ाब, सजाज, असवद, तलीहा असदी आदि।

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