आदर्श परिवार की विशेषताएं

संतुलित परिवारों में कार्यों में सहयोग एवं सहकारिता को भी महत्व प्राप्त होता है। वे घर के कार्यों में एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। इस बारे में मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यदि विभिन्न विषयों के बारे में अपने जीवनसाथी के दृष्टिकोणों को दृष्टिगत रखा जाए और भ

 

अधिकांश विवाहित जोड़े बड़ी कल्पनाओं के साथ अपना नया जीवन आरंभ करते हैं। वे अपने जीवन को आदर्श बनाने के प्रयास में रहते हैं। इनमे से वास्तव में कुछ ही जोड़े सुखमई जीवन का अनुभव कर पाते हैं। यह जोड़े अपने विवाह के वर्षों बाद भी विवाह की वर्षगांठ को बहुत खुशी के साथ मनाते हैं। यहां पर सवाल यह पैदा होता है कि यह बातें समस्त विवाहित जोड़ों के साथ क्यों नहीं होती? ऐसा केवल कुछ जोड़ों के साथ ही क्यों होता है? यह वह विषय है जिसपर पारिवारिक मामलों के विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक लंबे समय से विचार करते आ रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि वैवाहिक जीवन की सफलता का प्रमुख कारण सकारात्मक सोच, आशावादी होना और एक-दूसरे के प्रति अच्छे विचार रखना है।

विशेषज्ञों का कहना है कि सकारात्मक सोच रखने से मनुष्य स्वयं भी बहुत सी चिंताओं से बचता है और इस सोच के स्वामी परिवार में समस्याएं कम होती हैं। इस प्रकार की विचारधारा वाले लोगों को जब किसी समस्या का सामना होता है तो वे उसके सकारात्मक आयामों के बारे में सोचते हैं और उसके नकारात्मक आयामों में बारे में सोचने से बचते हैं या उन्हें अनदेखा कर देते हैं। आशावादी होने को एक अच्छी कला भी कहा जा सकता है। इसका संबन्ध सामान्यतः मनुष्य के मन व मस्तिष्क से होता है। देखा यह गया है कि धार्मिक प्रवृत्ति वाले लोग सकारात्मक विचारों के स्वामी होते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि धार्मिक शिक्षाएं सदैव ही सकारात्मक सोच के लिए प्रेरित करती हैं और भ्रांतियों तथा नकारात्मक विचारों से रोकती हैं। इस्लामी शिक्षाएं बताती हैं कि घरेलू वातावरण में नैतिकता पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। जीवनसाथी के बारे में सकारात्मक विचारों से घर का वातावरण सुगंधित रहता है।  इससे पारिवारिक संबन्धों में सुदृढ़ता आती है।

मनोवैज्ञानिकों ने संयुक्त जीवन में सकारात्मक सोच को सुदृढ़ करने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं। वे कहते हैं कि आरंभ में तो आपको चाहिए कि अपने जीवनसाथी के सकारात्मक आयामों को दृष्टिगत रखिए। इनको आप जीवन भर महत्व की दृष्टि से देखिए। परस्पर वार्ता के दौरान आपको अपने जीवन साथी के सकारात्मक आयामों का उल्लेख करना चाहिए। आप जब यह देखें कि आपके जीवन साथी के भीतर थोड़ी सी भी निराशा आ रही है तो आप उसे इस सोच से निकालकर सकारात्मक वातावरण में लाने का प्रयास करना चाहिए। यदि आप अपने जीवन साथी के भीतर कोई ऐसी विशेषता देखना चाहते हैं जो वर्तमान समय में उसके भीतर नहीं है तो एसे में आपको उसका अपमान नहीं करना चाहिए। आपको अपमान या अनादर का मार्ग अपनाने के स्थान पर अन्य शैली अपनानी चाहिए। एसे में उसे ढारस दिलाना और सकारात्मक सोच के लिए प्रेरित करना एक उचित कार्य हो सकता है। यदि आप अपने जीवन साथी को इस कार्य के लिए लगातार प्रेरित करते रहेंगे तो उसके भीतर अच्छी विशेषताएं उत्पन्न होने लगेंगी।

उदाहरण स्वरूप यदि आप यह सोचते हैं कि आपका जीवनसाथी, समस्याओं के मुक़ाबले में बहुत कमज़ोर है और वह उन्हें सहन करने में सक्षम नहीं है तो आप उससे यह कह सकते हैं कि मैं तुम्हारी योग्यताओं और क्षमताओं को समझता हूं और मुझको विश्वास है कि समस्याओं से मुक़ाबले में तुम उनके सामने झुकोगे नहीं बल्कि उनपर विजय प्राप्त कर लोगे। कुछ मिलाकर यह कहा जा सकता है कि संतुलित परिवारों में जीवनसाथी एक दूसरे के भीतर सकारात्मक सोच को बढ़ाते हैं और पाई जाने वाली बुराइयों का उल्लेख करने से बचते हैं।

संतुलित परिवारों में कार्यों में सहयोग एवं सहकारिता को भी महत्व प्राप्त होता है। वे घर के कार्यों में एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। इस बारे में मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यदि विभिन्न विषयों के बारे में अपने जीवनसाथी के दृष्टिकोणों को दृष्टिगत रखा जाए और भावनाओं का सम्मान का जाए तो बड़ी सरलता से सहमति पर पहुंचा जा सकता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि एसी स्थिति में परस्पर सहयोग में कोई कठिनाई नहीं आएगी। इस स्थिति में पति और पत्नी के संबन्ध अधिक सुदृढ़ होंगे। इस प्रकार के पति और पत्नी न केवल परस्पर एक दूसरे का सम्मान करते हैं बल्कि अन्य लोगों को भी सम्मान देते हैं जिससे समाज में उनकी छवि बहुत अच्छी हो जाती है।

मनोवैज्ञानिकों का यह कहना है कि जीवन में सहमति के लिए कुछ कार्यों की आवश्यकता होती है। उनका मानना है कि बातों को ध्यानपूर्वक सुनना एक कला है। वे कहते हैं कि अपने जीवनसाथी की बातों को आप पूरे ध्यान से सुनें। उसकी भावनाओं का सम्मान कीजिए। इस बात का प्रयास करना चाहिए कि अपनी बात सामने वाले की रूचि के किसी विषय से आरंभ की जाए। अपने जीवनसाथी की तुलना दूसरों के जीवनसाथियों से करने से बचिए। आपका यह व्यवहार जीवन साथी को प्रभावित करेगा। आपको यह जान लेना चाहिए कि आपके जीवनसाथी में कुछ विशेषताएं पाई जाती हैं जो दूसरों में नहीं हैं। ऐसी भी हो सकता है कि उसमें कुछ एसी सकारात्मक विशेषताए हों जो किसी दूसरे में न पाई जाती हों।

विशेषज्ञ, परस्पर सहमति उत्पन्न करने के बारे में यह सुझाव देते हैं कि हर निर्णय लेते समय अपने जीवनसाथी की इच्छाओं, उसकी भावनाओं और आदतों को दृष्टिगत रखा जाए। अपने निर्णयों से उसे अवगत करवाइए। एक-दूसरे के विचारों और सुझावों का सम्मान किया जाए। वैवाहिक जीवन में केवल अपनी राय को थोपने से कटुता आती है और जीवन में समस्याएं आ सकती हैं। वैवाहिक जीवन मे परस्पर सहमति से उद्देश्य यह है कि जीवन के अधिकांश मामलों में जीवन साथियों के दृष्टकोणों में समानता पाई जाती हो क्योंकि ऐसी संभव नहीं है कि दो लोग जीवन के समस्त विषयों के बारे में समान दृष्टिकोण रखते हों और उनमें किसी बारे में वैचारिक मतभेद न पाया जाता हो। जब पति और पत्नी एक-दूसरे का विशेष ध्यान रखेंगे तो उनके संबन्धों में प्रगाढ़ता आएगी और वे एक-दूसरे को उचित ढंग से अधिक से अधिक समझ सकेंगे। हालांकि इसके लिए समय की आवश्यकता होती है अतः नवविवाहितों में यदि परस्पर सहमति न पाई जाए तो इसके लिए प्रयास करने की आवश्यकता होगी।

संतुलित परिवार की एक अन्य विशेषता, एक-दूसरे के साथ सहयोग करना है। विवाह करके पति और पत्नी एक प्रकार का पूंजी निवेश करते हैं। यह कोई आर्थिक पूंजी निवेश नहीं होता बल्कि उच्चस्तरीय मानवीय पूंजी निवेश होता है। एसी स्थिति में जीवन में सफलता और विफलता में दोनो ही बराबर के भागीदार होते हैं। इस पूंजी निवेश का उद्देश्य, केवल एक-दूसरे की सहायता करना नहीं है बल्कि इसका मुख्य लक्ष्य, परिवार की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।

इस्लामी शिक्षाओं में घरेलू कामों में परस्पर सहयोग और आपसी सहायता को विशेष महत्व प्राप्त रहा है। परस्पर सहयोग का उल्लेख न केवल पवित्र क़ुरआन में मौजूद है बल्कि पैग़म्बरे इस्लाम की परंपरा में भी यह बात स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। महापुरूषों की शिक्षाओं में महिला और पुरूष को पारिवारिक कार्यों में एक-दूसरे का सहयोग करने को प्रेरित किया गया है। महापुरूषों के उपदेशों में कुछ एसे बिंदु पाए जाते हैं जो पति-पत्नी दोनों को परस्पर सहयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने महत्वपूर्ण पद और स्थान के बावजूद घरेलू कामों में सहायता किया करते थे। वे दूसरों से भी इस कार्य को करने के लिए कहा करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम का एक कथन है कि तुममे से सबसे अच्छा व्यक्ति मैं हूं जो अपने परिवार के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करता है।

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