खेलकूद और व्यायाम का महत्व

स्वस्थ मनोरंजन एवं ख़ाली समय को भरने के लिए इस्लाम व्यायाम एवं खेलकूद की सिफ़ारिश करता है। आप एक दिन में या एक सप्ताह में या एक महीने में अपना कितना समय व्यायाम एवं खेलकूद में बिताते हैं...

स्वस्थ मनोरंजन एवं ख़ाली समय को भरने के लिए इस्लाम व्यायाम एवं खेलकूद की सिफ़ारिश करता है। आप एक दिन में या एक सप्ताह में या एक महीने में अपना कितना समय व्यायाम एवं खेलकूद में बिताते हैं? दुर्भाग्यवश हमारा आधुनिक जीवन कुछ इस प्रकार का है कि व्यायाम करने के लिए हम कम ही समय निकाल पाते हैं। हालांकि यह कहा जा सकता है कि आज हमें किसी भी समय की तुलना में व्यायाम एवं कसरत की अधिक ज़रूरत है।

जैसा कि आप जानते हैं और निश्चित रूप से आपने अनुभव भी किया है कि मनुष्य एक काम को बार बार दोहराने से थक जाता है और उसे थकन दूर करने की ज़रूरत पड़ती है। विभिन्न प्रकार के व्यायाम न केवल शारीरिक थकन को दूर करते हैं बल्कि शरीर को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाते हैं। इसलिए व्यायाम एवं खेलकूद न केवल वांछित है बल्कि कुछ अवसरों पर आवश्यक एवं अनिवार्य है। इसलिए कि व्यायाम पर ध्यान नहीं देना शरीर को गंभीर रूप से नुक़सान पहुंचा सकता है।

बुद्धि एवं धर्म की दृष्टि से व्यायाम शरीर के स्वास्थ्य एवं मज़बूती के लिए ज़रूरी हैं। जिस व्यक्ति का शरीर स्वस्थ, शक्तिशाली एवं तरो ताज़ा नहीं है वह बुद्धि और सही विचार का उपयोग कम ही कर पाता है। एक प्रसिद्ध मुहावरा है, स्वस्थ बुद्धि स्वस्थ शरीर में होती है, इसलिए कि मन व शरीर का परस्पर प्रभाव पुष्ट एवं निर्विरोध विषय है। आलस्य एवं शारीरिक निष्क्रियता शरीर को कमज़ोर करती है या बहुत अधिक मोटा बना देती है, ऐसे लोग मानसिक रूप से शांत एवं प्रफुल्लित नहीं रह सकते। ऐसे लोग सामान्य रूप से चिड़चिड़े, झगड़ालू, टाल मटोल करने वाले और अनैतिक विचार एवं बीमार सोच रखने वाले होते हैं। यह विषय उनके शरीर पर भी बुरा प्रभाव डालता है। इस्लाम शारीरिक शक्ती एवं स्वास्थ्य को विशेष महत्व देता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है, खेलो कूदो और मनोरंजन करो, इसलिए कि मुझे तुम्हारे धर्म में हिंसा एवं उदासीनता पसंद नहीं है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में मनुष्यों के शारीरिक स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान एवं महत्व दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के जीवन के इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि वे महान हस्तियां व्यायाम करती थीं और दौड़, घुड़सवारी, निशाने बाज़ी एवं तैराकी जैसी प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेते थे। तैरना, निशानेबाज़ी, घुड़सवारी ऐसे खेलकूद हैं कि इस्लाम ने जिनकी सिफ़ारिश की है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है, बेटे का बाप पर अधिकार है कि वह उसे लिखना, तैरना, और निशानेबाज़ी सिखाए और उसे स्वच्छ एवं हलाल भोजन के अतिरिक्त कुछ नहीं खिलाए। इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर कहते हैं कि अपने बच्चों को तैरना एवं निशानेबाज़ी सिखाओ।

इस्लाम ने घुड़सवारी पर बल दिया है। ईश्वर जब मुसलमानों को नास्तिकों पर विजय प्राप्त करने एवं श्रेष्ठता के लिए प्रोत्साहित करता है तो घोड़ों की ओर संकेत करता है, सूरए अन्फ़ाल की 60वीं आयत में उल्लेख है कि जो भी बल और ताज़ा दम घोड़े तुम्हारे पास हैं, उन्हें तैयार करो ताकि इस प्रकार ईश्वर एवं अपने शत्रु को भयभीत कर सको।

घुड़सवारी में पैग़म्बरे इस्लाम के दक्ष होने के बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) कहत हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के काल में अनेकेश्वरवादियों का एक टोला भेड़ों को चुराने के लिए मदीने की चरागाह में घुस आया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) शत्रुओं को भगाने के लिए घोड़े पर सवार हुए और तीव्रता से चरागाह की ओर गए। उनके एक दो साथी भी उनके साथ हो गए, शत्रु पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके साथियों को देखकर भाग खड़े हुए, इस प्रकार से कि उनका कोई अता पता नहीं चला। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक साथी अबू क़तादा ने कहा कि अब जबकि शत्रु फ़रार हो गए हैं अवसर से लाभ उठाकर क्यों नहीं घुड़सवारी की प्रतिस्पर्धा का आयोजन किया जाए। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। मुक़ाबला शुरू हो गया पैग़म्बरे इस्लाम (स) सबसे आगे निकल गए। उसके बाद उपस्थित लोगों से कहा कि मैं क़ुरैश से हूं और यह अच्छी नस्ल का घोड़ा है।

बच्चों एवं बड़ों के स्वास्थ्य के लिए व्यवस्थित व्यायाम एवं खेलकूद महत्वपूर्ण मार्ग है। शारीरिक सक्रियता सही वज़न को बनाए रखती है, हड्डियों को लम्बा करती है और अंततः हृदय रोगों के ख़तरे को कम करती है। सबसे उचित शारीरिक गतिविधि वह है कि जो आयु, शारीरिक स्थिति एवं मनुष्य की रूची के अनुकूल हो। खेलकूद से आलस्य एवं सुस्ती दूर होती है और मनुष्य प्रफुल्लित रहता है। खेलकूद से मनुष्य व्यक्तिगत एवं सामाजिक दायित्वों को पूरा करने के लिए तैयार रहता है, यहां तक कि यह नैतिकता को भी प्रभावित करता है। खेलकूद से मनुष्य में वीरता, त्याग, अत्याचार एवं अत्याचारी से मुक़ाबला एवं पीड़ित की रक्षा करने का भाव सशक्त होता है। जो लोग सही ढंग से खेलों में भाग लेते हैं या कसरत करते हैं वह स्वस्थ रहते हैं और उनकी आयु उन लोगों की तुलना में अधिक होती है कि जो शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं रहते हैं।

शोध से पता चलता है कि खेलकूद एवं व्यायाम की स्थिति में मांसपेशियों को आराम की तुलना में 10 से 18 गुना अधिक ख़ून की ज़रूरत होती है, 20 गुना अधिक शर्करा एवं ऑक्सीजन उपयोग करती हैं, 50 गुना अधिक कार्बोनिक गैस छोड़ती हैं, इन आंकड़ों के दृष्टिगत, खेलकूद एवं व्यायाम के दौरान हृदय के काम का महत्व उजागर हो जाता है। खेलकूद से रक्तचाप और यहां तक कि रक्त की भौतिक और रासायनिक संरचना में परिवर्तन हो जाता है। खेलकूद एवं व्यायाम से कुछ समय बाद हृदय की धड़कनों में संतुलन आ जाता है। फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि होती है और परिणाम स्वरूप, शरीर में अधिक ऑक्सीजन जाता है। सही एवं शरीर के दृष्टिगत संतुलित खेलकूद एवं व्यायाम से सांसे व्यवस्थित हो जाती हैं। कुछ समय तक व्यायाम करने से शरीर भोजन का सही उपयोग करता है तथा व्यायाम या खेलकूद से क्योंकि ऑक्सीजन समस्त मांस-तंतुओं में अच्छी तरह पहुंचता है आतंकरिक ग्रंथियों की गतिविधियां बेहतर हो जाती हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने स्वस्थ शरीर को बहुमूल्य अनुकंपाओं में से बताया है और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कहा है कि धर्म में आस्था रखने वाला स्वस्थ व्यक्ति अर्थात मोमिन अस्वस्थ मोमिन की तुलना में श्रेष्ठ है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने शरीर के अधिकारों का उल्लेख करते हुए कहा है कि ईश्वर का तुम पर अधिकार है, तुम्हारे शरीर का तुम पर अधिकार है और तुम्हारे परिवार का भी तुम पर अधिकार है।

जिस चीज़ का इस मूल्यवान हदीस में उल्लेख है, वह यह है कि महान पैग़म्बरे इस्लाम (स) के निकट शरीर का इतना महत्व है कि उसके अधिकार को ईश्वर एवं परिवार के अधिकारों के साथ रखा है। उस समय मनुष्य ईश्वर एवं परिवार के अधिकार को सही प्रकार से अदा कर सकता है कि जब स्वस्थ एवं शक्तिशाली शरीर का स्वामी हो।

हज़रत अली (अ) कि जो इतिहास के वीरों, पहलवानों एवं नायकों के आदर्श हैं ईश्वर की उपासना के समय स्वास्थ्य के महत्व का उल्लेख करते हुए दुआ करते हैं कि सेवा के लिए उनके शरीर के अंगो को मज़बूत बनाए। इमाम सज्जाद (अ) भी अधिकारों के संबंध में कहते हैं कि तुम्हारे शरीर का तुम पर अधिकार है, और वह यह कि उसे कठिनाईयों के मुक़ाबले में स्वस्थ स्थिर एवं शक्तिशाली रखें।

इस्लामी दृष्टिकोण में शरीर को स्वस्थ बनाने एवं उसकी हर प्रकार की देखभाल पर ध्यान दिया गया है। ईश्वर से स्वास्थ्य की दुआ मुसलमानों की दुआओं का महत्वपूर्ण भाग है और इस्लाम में मोमिनों से शक्तिशाली रहने, प्रफुल्लित रहने एवं शारीरिक स्वास्थ्य की सिफ़ारिश की गई है। इसलिए खेलकूद एवं व्यायाम हर मुसलमान के जीवन का अभिन्न अंग होना चाहिए।

वर्तमान समय में खेलकूद एक ऐसा विषय है कि जिसे विभिन्न शीर्षकों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है और विभिन्न गुट विभिन्न प्रकार से उससे जुड़े होते हैं। कुछ लोग प्रतिदिन खेलते कूदते हैं और कुछ केवल ख़ाली समय में ऐसा करते हैं। कुछ लोग खेलकूद द्वारा आजीविका की आपूर्ति करते हैं। खेलकूद के अधिक लाभों एवं अच्छाईयों के बावजूद, इस बिंदु सदैव मन में रखना चाहिए कि अगर खेलकूद मानवीय एवं नैतिकता के सिद्धांतों के साथ नहीं होगा तो उससे वांक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होगा। अतः अगर खेलकूद का उद्देश्य शरीर को स्वस्थ रखना, बुराईयों से दूर रहना, शारीरिक कला में दक्ष होना और मानसिक स्वास्थ्य है तो वह वांक्षित है और इस्लाम ने उसकी सिफ़ारिश की है।

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