क्या पैग़म्बरे इस्लाम पर सलाम पढ़ना शिर्क है?

आज के युग में यह वहाबी टोला और उसके साथियों ने क़सम खा रखी है कि मुसलमानों की हर आस्था और उनके हर विश्वास पर टिप्पणी अवश्य करेंगे चाहे वह सही हो या न हो, और कितने आश्चर्य की बात है कि यह सब करने के बाद भी यह वहाबी अपने आप को मुसलमान कहते हैं,

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

आज के युग में यह वहाबी टोला और उसके साथियों ने क़सम खा रखी है कि मुसलमानों की हर आस्था और उनके हर विश्वास पर टिप्पणी अवश्य करेंगे चाहे वह सही हो या न हो, और कितने आश्चर्य की बात है कि यह सब करने के बाद भी यह वहाबी अपने आप को मुसलमान कहते हैं,

इनके इन्हीं बेबुनियाद ऐतेराज़ों में से एक पैग़म्बर और औलिया पर सलाम पढ़ना है, यह कहते हैं कि अगर कोई मुसलमान पैग़म्बर पर सलाम भेज रहा है तो यह अनेकेश्वरवाद है और वह शिर्क कर रहा है, (जब्कि यह लोग भूल जाते हैं कि हर मुसलमान अपनी नमाज़ों में कम से कम पांच समय पैग़म्बर पर अवश्य सलाम भेजता है) 

अगरचे इन हबाबियों के सामने क़ुरआन की आयतों का पढ़ना ऐसा ही है जैसे भैंस के आगे बीन बजाना, लेकिन फिर भी हम यहां पर क़ुरआन से वह दलीले प्रस्तुत करने जा रहे हैं जो यह बताती हैं कि न केवल यह शिर्क नहीं है बल्कि यही सच्चा इस्लाम है, और यह दलीले देने का हमारा मक़सद केवल यही है कि अगर हमारा कोई मुसलमान भाई मुसलमानों की सूरत रखने वाले इन वहाबियों की ज़हरीली बातों से प्रभावित हो गया हो, या जिसको इस बारे में जानकारी न हो उसके सामने वास्तविक्ता रौशन हो जाए।

क्या पैग़म्बरे इस्लाम और नेक बंदों पर सलाम पढ़ना शिर्क है?

अगर ऐसा है तो ईश्वर न करें सारे मुसलमान...

क्या क़ुरआन नहीं फरमा रहा हैः

 وَسَلَامٌ عَلَيْهِ يَوْمَ وُلِدَ وَيَوْمَ يَمُوتُ وَيَوْمَ يُبْعَثُ حَيًّا (सुरा मरयम आयत 15)

और सलाम हो यहया पर जिस दिन वह पैदा हुए और जब मरेगें और जिस दिन दोबारा जीवित किए जाएंगे

 سَلَامٌ عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَارُ‌ونَ

(अलसाफ़्फ़ात आयत 120)

सलाम हो मूसा और हारून पर

فَسَلَامٌ لَّكَ مِنْ أَصْحَابِ الْيَمِينِ

(अलवाक़ेआ आयत 91)

तो सलाम हो तुम पर कि तुम असहाबे यमीन में से हो

यह आयतें साफ़ बता रही हैं कि नबियों पर सलाम करना कोई शिर्क नहीं है तो अगर एक आम नबी पर सलाम करना क़ुरआन के अनुसार शिर्क नहीं है तो वह पैग़म्बर जो सबसे बड़ा नबी है, वह नबी जिसको ईश्वर ने ख़ुद अपना हबीब कहा है उसपर सलाम करना शिर्क कैसे हो सकता है?।  

अब अगर इन आयतों को देखने के बाद भी कोई यह मानने को तैयार नहीं है कि सलाम भेजना शिर्क नहीं है तो उससे हमारा प्रश्न है कि

क्या क़ुरआन हमको शिर्क करना सिखा रहा है?

क्या शिया पैग़म्बर और अहलेबैत की ज़ियारत के समय इसके अतिरिक्त कुछ और कहते हैं कि

सलाम हो पैग़म्बर और एबादे सालेहीन पर।

अब हम इन वहाबियों जो कि भेड़ की खाल में छिपे भेड़िये हैं से कुछ प्रश्न करते हैं

वहाबियत जो ज़ियारत का विरोध करती है उसकी दलील क्या है?

क्या यह लोग भी यज़ीद की भाति पैग़म्बर के अहलेबैत को इस्लाम के बाहर मानते हैं?

क्या यह लोग शहीदों को जिन्हें क़ुरआन जीवित मानता है विश्वास नहीं रखते हैं?

क्या यह लोग पैग़म्बर की शहीदों से भी कम मानते हैं?

क्या यह लोग क़ुरआन की इन आयतें पर ईमान नहीं रखते हैं?

क्या यह लोग भी मैटेरियालिस्टों की भाति मौत को समाप्त हो जाना मानते हैं?

यह लोग क़ुरआन के इस वाक्य السلام علیک ایها النبی.. के बारे में क्या कहेंगे?

क्या नमाज़ में السلام علیک ایها النبی..  बेकार हैं?

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