यमन में जारी जनसंहार पर विश्व समुदाय की चुप्पी शर्मनाक

सयुंक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक लिस्ट बताती है कि 2015 में बच्चों के ऊपर पूरे विश्व में होने वाले हमलों में से 60 प्रतिशत अकेले सऊदी फौज ने यमन के बच्चों पर किये हैं। इसके बाद सऊदी अरब ने धमकी भरे अंदाज में संयुक्त राष्ट्र से कहा कि या तो संयुक्त राष्ट्र

पिछले डेढ़ साल से सऊदी अरब द्वारा यमन में निर्दोष लोगों का क़त्ले आम जारी है, स्कूलों पर बम बरसाये जा रहे हैं, हास्पिटलों पर बम बरसाये जा रहे हैं, राजधानी सनआ के कुछ हिस्सों में केमिकल बम गिराये गये हैं, 23 लाख लोग बेघर हो गए हैं, लगभग 2 करोड़ लोगों के पास पीने के पानी का अभाव है, 20 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। इस सब के बावजूद संयुक्त राष्ट्र और लोकतंत्र व मानवाधिकारों के ठेकेदार देश चुपचाप बैठे हैं।

सऊदी अरब के इस घिनौने कृत्य की आलोचना करने की बजाय ये पश्चिमी मुल्क उल्टा सऊदी अरब को हथियार मुहैया करा रहे हैं। इस हमले के शुरू होने से पहले ही यमन एक बहुत गरीब मुल्क रहा है, अब इस हमले के बाद उनका इंफ्रास्ट्रक्चर पूर्ण रूप से तबाह कर दिया गया है।

सयुंक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक लिस्ट बताती है कि 2015 में बच्चों के ऊपर पूरे विश्व में होने वाले हमलों में से 60 प्रतिशत अकेले सऊदी फौज ने यमन के बच्चों पर किये हैं। इसके बाद सऊदी अरब ने धमकी भरे अंदाज में संयुक्त राष्ट्र से कहा कि या तो संयुक्त राष्ट्र इस लिस्ट से उसका नाम हटा ले या फिर सभी अरब मुल्क संयुक्त राष्ट्र से अपना रिश्ता तोड़ लेंगे। इसके परिणाम स्वरूप, दबाव में आ के संयुक्त राष्ट्र ने सऊदी अरब का नाम उस लिस्ट से हटा दिया और संयुक्त राष्ट्र पर पक्षपात का एक और आरोप सिद्ध हो गया। संयुक्त राष्ट्र की एक और रिपोर्ट के अनुसार यमन में 51 से ज्यादा स्कूलों पर सऊदी अरब ने बमबारी की है जिसमें सैकड़ों निर्दोष बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया, लेकिन इसके बावजूद मानवाधिकारों के ठेकेदारों ने चूं तक नहीं की। आज यमन के अंदर हालात ये हैं कि रोजाना 25000 नये लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं। आधी से ज्यादा यमनी जनसंख्या भुखमरी से जूझ रही है।

यमन के अंदर जारी इस क़त्ले आम में एक बड़ा योगदान पश्चिमी देशों का भी रहा है। सऊदी अरब की फौज द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सभी हथियार पश्चिमी देशों खासकर अमरीका और ब्रिटेन के बने हुए हैं। इस क़त्ले आम में सूडान, मोरक्को, तुर्की, मिस्र, पाकिस्तान, यू ए ई, क़तर, जार्डन आदि ने भी सऊदी अरब का समर्थन अलग अलग स्वरूपों में किया है, इनमें से किसी ने ज़मीन पर लड़ाई लड़ने के लिए अपनी फौज भेजी है जैसे सूडान और मोरक्को, किसी ने नौसैन्य पाबंदियां लगाने के लिए अपनी नौसेना भेजी है जैसे मिस्र तो किसी ने अपनी राजनीतिक सहानुभूति सऊदी तानाशाही के साथ दिखाई है जैसे तुर्की और पाकिस्तान, आप लोगों को याद ही होगा जब मार्च 2015 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने कहा था कि "सऊदी अरब के हितों पर हमला पाकिस्तान पर हमला समझा जायेगा और पाकिस्तान की पूरी सैन्य ताकत सऊदी अरब के समर्थन में खड़ी है"।

इतने देशों का सहयोग होने के बावजूद जमीनी लड़ाई में सऊदी अरब को मुँह की खानी पड़ी है और यमन रिपब्लिकन गार्ड्स और पॉपुलर कमेटीज ने कई सऊदी शहरों पर कब्ज़ा कर लिया है। सऊदी सैनिक हथियार डाल कर भाग रहे हैं। ये होने के बाद सऊदी अरब ने अमरीका और ब्रिटेन की प्राइवेट कंपनियों जैसे ब्लैक वॉटर को अनुबंधित किया है और अब ये लोग सऊदी अरब के गठबंधन की तरफ से जमीनी लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन यमनी लोगों की देशभक्ति के सामने ये प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर्स भी नहीं टिक पा रहे हैं और इन्हें भी भारी नुक़सान उठाना पड़ रहा है। इन साम्राज्यवादी हमलों के खिलाफ यमनी लोगों का देशभक्ति से पूर्ण संघर्ष निरंतर जारी है और दिन प्रतिदिन यमनी लोगों का जज्बा ओर ज्यादा मज़बूत हो रहा है और बढ़ता जा रहा है जो आप हाल में राजधानी सनआ में पॉपुलर कमेटीज के समर्थन में हुई लाखों लोगों की रैली से साफ़ देख सकते हैं।

अंत में मैं यह ही कहना चाहूंगा कि इन सब में सबसे निंदनीय और शर्मिंदगी की बात ये है कि लोकतंत्र और मानवाधिकारों के झूठे ठेकेदार बन कर घूमने वाले पश्चिमी मुल्क न सिर्फ यमन में जारी इस नरसंहार पर चुप हैं बल्कि इस नरसंहार को अंजाम देने वाले सऊदी अरब का हर तरह से समर्थन भी कर रहे हैं।

                               लेखक ‘अभिमन्यु कोहर’

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