तकफ़ीरी वहाबी विचारधारा सु्न्नियों की नज़र में

आज यह तकफ़ीरी वहाबी टोला अपने अक़ीदों से अलग हर अक़ीदा रखने वाले समुदाय को काफ़िर कह रहा है और उनकी हत्या को जायज़ ठहरा रहा है लेकिन स्वंय सुन्नी विचारधारा में कौन काफ़िर है और दीन से कौन निकल गया है हम अपने इस लेख में आपके सामने पेश कर रहे हैं

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
आज के दौर में वहाबियत इस्लाम के शरीर का नासूर बन गया है जो इस्लाम के पवित्र शरीर को निर्बल और उसकी आत्मा को कमज़ोर कर रहा है और हद तो यह है कि यह तकफ़ीरी वहाबी अपने तमाम इस्लाम विरोधी कार्य इस्लाम के नाम पर कर रहे हैं और यह अपने आप को सुन्नी मुसलमान कहते हैं और यह दिखावा कर रहे हैं कि यही इस्लाम के सच्चे अनुयायी है, लेकिन यह सही है? और क्या स्वंय सुन्नी मुसलमान इनको इस्लामी फ़िरक़ा मानते हैं...
आज यह तकफ़ीरी वहाबी टोला अपने अक़ीदों से अलग हर अक़ीदा रखने वाले समुदाय को काफ़िर कह रहा है और उनकी हत्या को जायज़ ठहरा रहा है लेकिन स्वंय सुन्नी विचारधारा में कौन काफ़िर है और दीन से कौन निकल गया है हम अपने इस लेख में आपके सामने पेश कर रहे हैं

तकफ़ीर सुन्नी विद्वानों के विचारों के विरुद्ध
शाफ़इयों का विचार
शाफ़ई समुदाय के प्रमुख इमाम शाफ़ई कहते हैं:
أقبل شهادة أهل الأهواء إلا الخَطّابية؛ لأنّهم يشهدون بالزور لموافقيهم
मैं तमाम अहले बिदअत की गवाही को स्वीकार करता हूँ सिवाए ख़त्ताबिया के क्योंकि वह अपने समर्थकों के मुक़ाबले में झूठी गवाही को सही समझते हैं (1)
अशअरियों का विचार
अशअरी समुदाय के प्रमुख अबुल हसन अशअरी लिखते हैं
اِخْتَلَفَ المُسْلِمُون بَعْدَ نَبِيِّهِمْ صلى الله عليه وسلم في أَشْياء ضَلَّلَ بَعْضُهُم بَعْضا ، وبَرِى‏ءَ بَعْضُهُم من بعضٍ فَصاروا فِرَقا مُتَبايِنِين وأحزابا مُتَشَتِّتِين إلاّ أنّ الإسلامَ يَجْمْعُهُم ويَشْتَمِلُ عَلَيْهِم
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बाद मुसलमानों के बीच बहुत सी चीज़ों में मतभेद पैदा हो गया इस प्रकार कि उनमें से कुछ ने दूसरों को पथभ्रष्ठ माना और उनसे तबर्रा किया और अगरचे वह विरोधी समुदायों में बट गए लेकिन इस्लाम उन सभी को शामिल होता है। (2)
अबुल हसन अशअरी के क़रीबी दोस्त ज़ाहिर बिन अहमद सरख़सी कहते हैं कि अबुल हसन ने अपने मृत्यु के समय मुझे आदेश दिया कि उनके सारे अनुयायियों को एकत्र करूँ, फिर उन्होने उनसे कहाः
اِشْهَدُوا عَلَيَّ أنَّنِي لا أُكَّفِرُ أحدا من أهل القِبْلَةِ بِذَنْبٍ ، لأنّي رأيتُهُم كُلَّهُم يُشيرُون إلى مَعْبُودٍ واحدٍ والإسلامُ يَشْمُلُهم ويَعُمُّهُم
गवाह रहना कि मैं किबले की तरफ़ खड़े होने वाले किसी को भी उसके पापों के कारण नास्तिक नहीं कहता हूँ, क्योंकि वह सभी एक अल्लाह पर विश्वास रखते हैं और वह सभी मुसलमान हैं। (3)
नास्तिकता का अरोप ईमान के विरुद्ध
अहलेसुन्नत के प्रसिद्ध विद्वान सुब्की कहते हैं
मोमिन को नास्तिक कहना बहुत कठिन है और हर मोमिन व्यक्ति बिदअत पैदा करने वालों और शारीरिक इच्छाओं का अनुसरण करने वालों को जो शहादतैन पढ़ते हैं को नास्तिक कहना बहुत ही कठिन और ख़तरनाक कार्य है। (4)
धर्मशास्त्रियों और फ़ोक़हा की आम राय
क़ाज़ी अज़ुदुद्दीन ईजा लिखते हैं
جمهور المتكلمين والفقهاء على أنّه لا يكفّر أحد من أهل القبلة... لم يبحث النبي عن اعتقاد من حكم بإسلامه فيها ولا الصحابة ولاالتابعون ، فعلم أنّ الخطأ فيها ليس قادحا في حقيقة الإسلام
तमाम धर्म शास्त्रियों और फ़ोक़हा का यह विश्वास है कि किसी भी अहले क़िब्ला को नास्तिक नहीं ठहराया जा सकता है... पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मुसलमान होने वाले व्यक्ति के विश्वासों के सम्बंध में कदापि प्रश्न नहीं किया और सहाबियों की रीत भी यही था इसलिये एक मुसलमान के अक़ीदे की गलती उसके इस्लाम को हानि नहीं पहुँचाती है। (5)
पैग़म्बर और सहाबा अक़ीदों की समीक्षा नहीं करते थे
तफ़ताज़ानी कहते हैं
إن مخالف الحق من أهل القبلة ليس بكافر ما لم يخالف ما هو من ضروريات الدين كحدوث العالم وحشر الأجساد، واستدل بقوله: إن النبي ومن بعده لم يكونوا يفتّشون عن العقائد وينبهون على ماهو الحق
अहले क़िबला को जो सच्चाई के विरोधी हों नास्तिक नहीं कहा जा सकता, मगर यह कि जो चीज़ें धर्म में सभी मानते हो (जैसे संसार का समाप्त हो जाना, महाप्रलय...) उसका इनकार करे। क्योंकि पैग़म्बर और उनके सहाबी लोगों की अक़ीदों की समीक्षा नहीं करते थे, और ज़ाहिर में जो सच हो लोगों से वही स्वीकार कर लेते थे। (6)
सहाबियों को बुरा कहना नास्तिक्ता नहीं है
हनफ़ी समुयाद के प्रसिद्ध विद्वान इब्ने आबेदीन कहते हैं
اتّفق الأئمّة على تضليل أهل البدع أجمع وتخطئتهم، وسَبُّ أحَدٍ من الصحابَةِ وَبُغضُهُ لا يكون كُفْرا ، لكن يُضَلَّل الخ.

तमाम धर्मगुरु बिदअत करने वालों की पथभ्रष्ठता पर एकमत हैं, लेकिन साहबियों को बुरा कहना और उनसे शत्रुता रखना नास्तिकता नहीं है बल्कि पथभ्रष्ठता की निशानी है। (7)
मोहम्मद रशीद रज़ा कहते हैं
إنّ من أعظم ما بُلِيت به الفِرَقُ الإسلامية رَمْيُ بَعضُهُم بعضا بالفسق والكفرِ
सबसे बड़ी आपदा जिसमें इस्लामी मिल्लत गिरफ़्तार हो गई है, एक दूसरों पर नास्तिकता और विधर्मता का आरोप लगाना है। (8)
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(1)शरहे सहीह मुसल्मि, जिल्द 1, पेज 60
(2)मक़ालातुल इस्लामीयीन, जिल्द 1, पेज 2
(3)अलयवाक़ीत वल जवाहिर पेज 58
(4)अलयवाक़ीत वल जवाहिर पेज 58
(5)अलमोवाफ़िक़ जिल्द 3, पेज 560 और शरहे मुवाफ़िक़ जिल्द 8 पेज 339
(6)शरहुल मक़ासिद जिल्द 5 पेद ज 227
(7)हाशिया रद्दुर मोहतार, जिल्द 4, पेज 422
(8)तफ़्सीरे अलमनार जिल्द 17, पेज 44

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